2600 करोड़ से ज्यादा के पीएफ घोटाले में 3 IAS अफसरों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति

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(www.arya-tv.com) मतदान से 10 दिन पहले सरकार के 3 खास अफसरों पर कार्रवाई की अनुमति मांगने के राजनीतिक गलियारों में कई मायने निकाले जा रहे हैं। इसका सीधा असर खुद मुख्यमंत्री की छवि पर भी पड़ेगा, क्योंकि करोड़ों रुपए के मामले में फंस रहे ये तीनों अफसर उनके भी करीबी माने जाते हैं।

दरअसल 2600 करोड़ से ज्यादा के पीएफ घोटाले से पर्दा मार्च 2019 में तत्कालीन यूपी पॉवर कॉरपोरेशन के चेयरमैन आलोक कुमार को मिली गुमनाम चिट्ठी से उठा था। इस मामले से यूपी सरकार की किरकिरी हुई थी। खुद सीएम योगी ने इस मामले की CBI जांच की सिफारिश कर डाली थी।

65% हिस्सा सिर्फ 3 कंपनियों में

CBI ने करीब 18 महीने की जांच के बाद यूपी सरकार के तत्कालीन 3 वरिष्ठ आईएएस अफसरों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी है। इनमें संजय अग्रवाल, आलोक कुमार और अपर्णा यू शामिल हैं। CBI ने जांच में पाया कि कर्मचारियों के पीएफ घोटाले में यह अफसर सीधे शामिल हैं। अब CBI को धारा 17 -ए के तहत संबंधित सरकार से अनुमति लेनी होती है।

आलोक कुमार के पास एक गुमनाम चिट्ठी

10 जुलाई 2019 को उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड के अध्यक्ष आलोक कुमार के पास एक गुमनाम चिट्ठी आती है। चिट्ठी में दावा किया जाता है कि उत्तर प्रदेश के बिजली विभाग में काम करने वाले कर्मचारियों की भविष्य निधि में भारी गड़बड़ी हुई है। 12 जुलाई, 2019 को इस मामले की जांच के लिए पावर कॉरपोरेशन खुद एक कमेटी बनाता है।

करीब 17 दिनों की जांच के बाद ये कमेटी बताती हैं कि पावर कॉरपोरेशन में काम करने वाले 45,000 कर्मचारियों की भविष्य निधि में 2000 करोड़ रुपए से ज्यादा की गड़बड़ी हुई है। कर्मचारियों के पीएफ का 65% हिस्सा सिर्फ 3 कंपनियों में लगाया गया है।

इस पैसे का भी 99% हिस्सा सिर्फ एक कंपनी में लगा है। इसका नाम है दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड यानी डीएचएफएल। इस बात की जानकारी सामने आने के बाद पावर कॉरपोरेशन ने 1 अक्टूबर को इस मामले की जांच अपनी सतर्कता विंग को सौंप दी।

एम्प्लाइज ट्रस्ट का सचिव सबसे पहले सस्पेंड हुआ

मामले ने तूल पकड़ा तो पावर कॉरपोरेशन ने 10 अक्टूबर को एम्प्लाइज ट्रस्ट के सचिव पीके गुप्ता को सस्पेंड कर दिया। इस दौरान राजनीतिक बयानबाजी शुरू हो चुकी थी। बीजेपी सरकार ने अखिलेश यादव की सपा सरकार पर आरोप लगाया था। सपा सरकार ने योगी आदित्यनाथ सरकार पर आरोप लगाया।

इसी दौरान योगी सरकार को पता चला कि डीएचएफएल की जांच प्रवर्तन निदेशालय कर रहा है। मुंबई हाई कोर्ट ने कंपनी के लेनदेन पर रोक लगा रखी है। इसके बाद सीएम योगी ने 2 नवंबर को ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा को बुलाया और एक्शन लेने को कहा। श्रीकांत ने इस मामले की जांच CBI से करवाने के लिए पत्र लिख दिया। इस तरह ये मामला CBI तक पहुंच गया।

पीएफ का पांच से 10% हिस्सा निजी बैंकों में
साल 2014 था। यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। इसी साल 21 अप्रैल को उत्तर प्रदेश स्टेट पावर सेक्टर एम्पलाइज ट्रस्ट के बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज की बैठक हुई। इस बैठक में तय किया गया कि अगर निजी बैंक, सरकारी बैंकों की तुलना में ज्यादा ब्याज देने को तैयार हैं, तो क्यों न पैसे निजी बैंकों में जमा किए जाएं। तय किया गया कि पीएफ का पांच से 10% हिस्सा निजी बैंकों में जमा किया जा सकता है।

ये बात बैंकों की थी। तो खतरा नहीं था। फिर दिसंबर 2016 में उस वक्त के यूपीपीसीएल के चेयरमैन संजय अग्रवाल ने तय किया कि प्रोविडेंट फंड के पैसे सरकारी हाउसिंग स्कीम में लगाए जा सकते हैं। इसके बाद पावर कॉरपोरेशन ने पंजाब नेशनल बैंक हाउसिंग स्कीम और एलआईसी हाउसिंग स्कीम में पैसे लगाने शुरू कर दिए। मार्च 2017 में ट्रस्ट के सचिव पीके गुप्ता और निदेशक वित्त सुधांशु द्विवेदी ने दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (डीएचएफएल) में पैसे लगाने की मंजूरी दे दी। इसके बाद मार्च 2017 से लेकर दिसंबर 2018 तक पैसे लगाए जाते रहे।

पैसे दो अलग-अलग एफडी के तौर पर लगाए गए
पावर कॉरपोरेशन के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, मार्च 2017 में पावर सेक्टर एम्प्लाई ट्रस्ट ने करीब 4,121 करोड़ रुपए का निवेश डीएचएफएल में किया था। ये पैसे दो अलग-अलग एफडी के तौर पर लगाए गए थे।

इसमें से 1,854 करोड़ रुपए की एफडी एक साल के लिए और 2268 करोड़ रुपए की एफडी तीन साल के लिए करवाई गई थी। एक साल वाली एफडी दिसंबर 2018 में पूरी हो गई। इसका पैसा ट्रस्ट के पास वापस आ गया था। तीन साल वाली एफडी मार्च 2019 में पूरी हुई। मुंबई हाई कोर्ट ने कंपनी के सारे लेन-देन पर रोक लगा दी।

सुधांशु द्विवेदी के खिलाफ नामजद एफआईआर 

  • उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड की ओर से साल 2019 में 2 नवंबर को हजरतगंज थाने में ट्रस्ट के तत्कालीन सचिव प्रवीण कुमार गुप्ता और तत्कालीन निदेशक वित्त सुधांशु द्विवेदी के खिलाफ नामजद एफआईआर हुई।
  • इस एफआईआर के मुताबिक मार्च 2017 से दिसंबर 2018 के बीच ट्रस्ट का काम प्रवीण कुमार गुप्ता देख रहे थे। उन्होंने निदेशक वित्त सुंधाशु द्विवेदी के आदेश पर प्रोविडेंट फंड का 50% से भी अधिक पैसा डीएचएफएल में ये जानते हुए लगाया कि डीएचएफएल वाणिज्यिक बैंक की श्रेणी में नहीं आती है और यह एक असुरक्षित प्राइवेट संस्था है।
  • भविष्य निधि के 2631.20 करोड़ रुपए डीएचएफएल में लगाए गए। इसमें से 1185.50 करोड़ रुपए ट्रस्ट को वापस मिल गए थे। बाकी के 1445.70 करोड़ रुपए अभी मिलने बाकी हैं।
  • इसी तरह से 1491.50 करोड़ रुपए और भी डीएचएफएल में लगाए गए थे। जिसमें से 669.30 करोड़ रुपए ट्रस्ट को मिल गए हैं। बाकी के 822.20 करोड़ रुपए अभी ट्रस्ट को मिलने हैं। इस तरह कुल 2267.90 करोड़ रुपए का मूलधन डीएचएफएल पर बकाया है। ये सब प्रवीण गुप्ता और सुधांशु द्विवेदी ने मिलकर किया है।
  • इसके बाद तत्कालीन वित्त निदेशक सुधांशु द्विवेदी और तत्कालीन सचिव (ट्रस्ट) पीके गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया गया। डीएचएफएल में निवेश शुरू होते वक्त पावर कॉरपोरेशन के एमडी रहे एपी मिश्रा को भी गिरफ्तार कर लिया गया था।
  • लखनऊ के शक्ति भवन में बने यूपी स्टेट पावर सेक्टर एम्प्लाइज ट्रस्ट के दफ्तर को भी सील कर दिया गया है। सरकार ने 4 नवंबर को पावर कॉरपोरेशन की एमडी अपर्णा यू को हटा दिया।

योगी सरकार बैकफुट पर आई

24 नवंबर 2019 को कर्मचारियों के हंगामे के बाद योगी सरकार बैकफुट पर आ गई थी। उत्तर प्रदेश में भविष्य निधि घोटाला मामले में उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) कर्मचारियों के फंसे पैसों पर सरकार ने लिखित वादा किया था।

तत्कालीन प्रमुख ऊर्जा सचिव अरविंद कुमार ने भरोसा दिलाया कि अगर कानूनी प्रक्रिया के तहत डीएचएफएल से पैसा वापस नहीं मिलता है तो सरकार का पॉवर कॉर्पोरेशन कर्मचारियों के पीएफ के पैसों का भुगतान करेगा। साथ में यह भी कहा था कि अगर पॉवर कॉर्पोरेशन के पास पैसे की कमी होगी तो सरकार की तरफ से ट्रस्ट को लोन दिया जाएगा। इससे कर्मचारियों का पैसा वापस किया जा सके। सरकार ने लिखित वादे का एक पत्र भी कर्मचारियों को दिया था।