विमानन मंत्रालय ने भारत के सभी हवाईअड्डों पर एटीएफ खरीदने पर चुकाए जाने वाले अतिरिक्त करों को औचित्यपूर्ण बनाए जाने के लिए एक समिति का गठन किया है। कुछ वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने यह जानकारी दी है। ऐसे में एटीएफ पर कर कम होता है तो हवाई सफर भी कुछ सस्ता हो सकता है।
वर्तमान में विमानन कंपनियां को अपने विमानों के लिए किसी भी हवाईअड्डे पर एटीएफ खरीदने पर थ्रोपुट शुल्क (थ्रोपुट चार्ज), इनटू प्लेन शुल्क और फ्यूल इन्फ्रास्ट्रक्चर शुल्क जैसे कई शुल्क का भुगतान करना पड़ता है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘इन चार्जेस पर कई बार कर लगता है।’ एक अन्य सरकारी अधिकारी ने कहा कि विमानन कंपनियों और हवाईअड्डा परिचालकों के बीच एक प्रत्यक्ष बिलिंग व्यवस्था विकसित करने के लिए विमानन मंत्रालय ने विमानन कंपनियों, हवाईअड्डा परिचालकों, तेल कंपनियों सहित अन्य के प्रतिनिधित्व वाली एक समिति का गठन किया है। यह समिति जल्द ही अपनी रिपोर्ट जमा कर सकती है।
सालाना 400 करोड़ रुपये की बचत
सरकारी अनुमानों के मुताबिक, यदि प्रत्यक्ष बिलिंग व्यवस्था को लागू किया जाता है तो विमानन कंपनियों को सालाना 400 करोड़ रुपये की बचत होगी। भारत में विमानन कंपनियों के कुल खर्च में एटीएफ की हिस्सेदारी लगभग 40 फीसदी है। इसलिए एटीएफ पर किसी भी तरह के कर से विमानन कंपनियों पर खासा असर पड़ता है।
100 रुपये के शुल्क पर चुकाने होते हैं 164 रुपये
इस मामले के बारे में विस्तार से बताते हुए पहले अधिकारी ने कहा, ‘थ्रोपुट चार्ज के लिए बिलिंग का ही उदाहरण लें, जो हवाईअड्डा परिचालक द्वारा तेल कंपनी से वसूला जाता है। इसके बदले में तेल कंपनी इस चार्ज को विमानन कंपनी से वसूलती है।
हालांकि जटिल बिलिंग प्रक्रिया के चलते थ्रोपुट चार्जेस पर जीएसटी, उत्पाद शुल्क और वैट जैसे कर जुड़ जाते हैं।’ उन्होंने कहा कि दिल्ली हवाईअड्डे पर यदि हवाईअड्डा परिचालक सिर्फ 100 रुपये थ्रोपुट शुल्क वसूलता है तो विमानन कंपनी को 164 रुपये का भुगतान करना पड़ता है।