राष्ट्र जागरण अभियान के तहत आर्यकुल के विद्यार्थियों को सुबूही ख़ान ने जागरूक किया

Lucknow
  • राष्ट्र जागरण अभियान के उत्तर प्रदेश प्रवास का शुभारम्भ हो गया है। अभी तक इस यात्रा मे इटावा, कानपुर, बिठूर, चौडगरा, फ़तेहपुर, बाँदा, महोबा, झाँसी व उसके पास के अन्य ज़िले, उरई, औरैया, कन्नौज, चित्रकूट, हमीरपुर, उन्नाव, रायबरेली से लखनऊ तक यात्रा पहुँची है।

(www.arya-tv.com)आर्यकुल ग्रुप ऑफ कॉलेजेज़, नटकुर, लखनऊ के प्रबंध निदेशक सशक्त सिंह ने ताया कि अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में स्वाधीनता महोत्सव का आयोजन किया गया, जिसमें राष्ट्र जागरण अभियान की संस्थापक व संयोजक सुबूही ख़ान ने मुख्य वक्ता के तौर पर राष्ट्र और उसके प्रति हमारे धर्म के प्रति विद्यार्थियों को जागृत किया साथ ही धर्म, पंथ व संस्कृति के अंतर को जानने और समझने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा मेरा धर्म सनातन है मेरा पंथ इस्लाम है और मेरी संस्कृति हिंदू है।

देश के सामने खड़ी चुनौतियों से अवगत कराया व कहा कि संगठित समाज द्वारा ही अखंड भारत सम्भव है। उन्होंने कहा भारत का हर नागरिक अपने देश का आंतरिक सुरक्षा बल है। अब उसको जागना ही होगा।

उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि समाज सत्ता ख़ासतौर पर युवा अपनी ताक़त पहचाने। अब हमे स्वतंत्रता का महत्व और उसके प्रति अपना कर्तव्य जानना पड़ेगा। देश बहुत सी चुनौतियों से घिरा है और हर नागरिक को कंधे से कंधा मिला कर खड़ा होना पड़ेगा। भारत विश्व गुरु और आर्यवर्त अपने संगठित समाज, प्राकृतिक सम्पत्ति और आध्यात्मिक चेतना शक्ति के कारण ही रहा है। राष्ट्र जागरण अभियान सीएए/एनआरसी के समय जन्मा और उस समय सुबूही ख़ान ने जो कि अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं व कबीर फ़ाउंडेशन नामक संस्था की संस्थापक हैं उन्होंने सीएए/एनआरसी के पक्ष में भारत के आठ से दस राज्यों में जाकर राजनैतिक, सामाजिक व वैधानिक सभी पहलुओं पर जागरण किया था। उत्तर प्रदेश के हाथरस प्रकरण के बाद इस अभियान को एक नयी दिशा दी गयी और राष्ट्र जागरण अभियान का नाम दिया गया।

अपने गुरु के. एन. गोविंदाचार्य के संरक्षण और मार्गदर्शन में सुबूही ख़ान अपनी टीम के साथ राष्ट्र जागरण अभियान के अंतर्गत भारत प्रवास पर हैं व देश की खंडित चेतना शक्ति और आध्यात्मिक बल को जगाने और एकत्र करने का काम कर रही हैं। हाल ही में वो बिहार व पंजाब होकर आयी हैं और कहती हैं राष्ट्र जागरण अभियान पूरे देश का अभियान है। हर व्यक्ति, संगठन, भाषा, जाति, क्षेत्र और सम्प्रदाय का अभियान है। इसमें उत्तर प्रदेश को केंद्र मानकर काम किया जाएगा क्योंकि उत्तर प्रदेश में पूरे देश का आध्यात्मिक बल बसता है। कोई कारण है कि श्रीराम, श्रीकृष्ण उत्तर प्रदेश में पैदा हुए हैं। मथुरा, अयोध्या, काशी उत्तर प्रदेश में है। भक्ति काल के अधिकतर कवि उत्तर प्रदेश की मिट्टी से हैं। 1857 की क्रांति उत्तर प्रदेश से शुरू हुई। इस आध्यात्मिक बल के कारण हमने उत्तर प्रदेश को केंद्र बनाया है।

सुबूही ख़ान कहती हैं, सात भारत विरोधी मानसिकताएँ अपना तन, मन, धन लगा कर भारत को तोड़ने का प्रयास कर रही हैं और हम लोग बँटे होने के कारण उनको पराजित नही कर पा रहे हैं। वो सात भारत विरोधी मानसिकताएँ हैं 1. वामपंथी और उनके हथियारबंद गिरोह माओवादी और नकसलवादी, 2. अलगाववादी, कट्टरवादी और आतंकवादी संगठन, 3. बौद्धिक आतंकवादी, 4. विधर्मी राजनैतिक दल, 5. अंतर्राष्ट्रीय ताक़तें, 6. धर्मांतरण माफ़िया, 7. विधर्मी कौरपोरेट माफ़िया। यह सभी ताक़तें एकजुट होकर हम से लड़ रही हैं और हमे खंड खंड में बाँट कर पराजित करना चाहती हैं।

माननीय गोविंदाचार्य जी कहते हैं चार कारक भारत के भू-मनोविज्ञान को प्रभावित करते हैं। वो कारक हैं भाषा, जाति, क्षेत्र और सम्प्रदाय। जब समाज में एकरसता होती है और समाज संगठित होता है तो यह चारों कारक भारत की ताक़त हैं। और जब समाज बँटा और टूटा होता है तो यही चार कारक अलगाववाद और विभाजन का कारण बनते हैं। उदाहरण के तौर पर पंजाब और हरियाणा को भाषा के आधार पर तोड़ा गया। देश की सबसे ज़्यादा जातीय विविधताएँ भारत में पायी जाती हैं तो उत्तर प्रदेश को जातियों के नाम पर बाँटने और तोड़ने की कोशिश होती है।

अब समय आ गया है कि हम देश की खंडित हुई चेतना शक्ति को पुनः जागृत और अखंड बनाना है। अपने देश के आध्यात्मिक और आत्म बल को जागृत कर एकात्मता के एहसास के साथ आक्रमण का प्रतिकार करना है।

माननीय गोविंदाचार्य जी का कहना है कि जब तक हम केवल समस्या का स्वरूप, स्वभाव और परिणाम सोच रहे हैं वो केवल चिंता है। जब तक उसको समाधान ना दिया जाए वो चिंतन नही बन सकता। इसी कारण राष्ट्र जागरण अभियान के अंतर्गत हम इस बात पर विशेष जागरण कर रहे हैं कि भारत की सभी समस्याओं का समाधान हमे प्रकृति की ओर लौटने से मिलेगा।

भारतीय सनातन संस्कृति के अनुसार वैदिक काल मे प्रकृति को पूजा जाता था। जिन पाँच तत्वों से हमारा शरीर बना है उन्ही पाँच तत्वों से यह सृष्टि बनी है। हम मानते हैं भगवान (भ+ग+व+अ+न) मतलब भूमि, गगन, वायु, अग्नि और नीर। इसी कारण भारतीय संस्कृति का मूल प्रकृति से मैत्री है। प्रकृति के साथ समन्वय, संतुलन, पारस्परिकता, सहकार और सहयोग ही भारतीय संस्कृति का मूल है जिससे दूर जाने के कारण ही हम अपना धर्म बोध और शौर्य बोध भूल गए हैं।

कार्यक्रम में आर.एस.एस. के जिला मार्ग प्रमुख नगेन्द्र सिंह,जिला कार्यालय प्रमुख देवेन्द्र,जिला सह मार्ग प्रमुख पुष्पेन्द्र, फार्मेसी के उप निदेशक प्रो.आदित्य सिंह,शिक्षा विभाग से स्वाती रानी, प्रदीप, प्रणव पाण्डेय,मैनेजमेंट विभाग से डॉ.अब्दुल रब खान, पत्रकारिता विभाग से डॉ.रेखा सिंह,जयकिशन उर्फ जैकी,विवेक कुमार साहू, मीडिया सलाहकार डॉ.अजय शुक्ला आदि लोग उपस्थित रहे।