वाराणसी (www.arya-tv.com) शाम ढल रही है, सिहरन जगाने वाली पुरवाई मचल रही है फिर भी पसीने-पसीने हुए जा रहे हैं भाई सुरेंद्र जैन (प्रबंधक भदैनी जैन मंदिर)। कभी घाट के ढालुआं पर उकेरी जा रही ‘अहिंसा परमो धर्म: का संदेश देती अल्पनाओं की सुघड़ता सुधारने की गरज से सीढिय़ां फलांगते ऊपर तक जाना, तो कभी तन्मयता से दिया-बाती की संभाल में जुटे स्यादवाद महाविद्यालय, भदैनी के विद्यार्थियों को गुड़-पानी देने के लिए दौड़कर वापस लौट आना।
उनके लिए देवों के त्योहार देव दीपावली की तैयारी बिटिया के बरात के स्वागत की स्वाभाविक हड़बड़ी से कम नहीं है। शुक्रवार को अंबर से धरा पर महोत्सव मनाने आ रहे देवताओं की अभ्यर्थना में कोई कमी न रह जाए, बस इसी की चिंता। एक रात की नींद काशी के इस महाउत्सव के नाम छूट भी जाए तो कोई गम नहीं।
जैन घाट की यह दृश्यावली मात्र एक उदाहरण है यह समझने-समझाने के लिए कि भगवान शिव की नगरी काशी अपने अधिपति त्रिपुरारि के त्रिपुर विजय के उत्सव को लेकर कितनी उत्कंठित व उल्लसित है। इस पौराणिक महापर्व की लतिकाएं युगों के अंतराल के बाद भी किस तरह एक धरोहरी परंपरा के रूप में पुष्पित-पल्लवित हैं।
महापर्व की पूर्व संध्या पर गुरुवार को काशी के घाटों की परिक्रमा के दौरान ऐसा ही उछाह हर छोटे-बड़े घाट पर नजर आया। गंगा के समानांतर प्रवाहित ज्योति गंगा से आकाशगंगा के संगम का विहंगम दृश्य कैसा होगा, यह एक काल्पनिक छवि के रूप में आज ही अंतस में आ समाया। कहां-कहां की बात करें। दशाश्वमेध घाट पर महा ज्योतिपर्व को बलिदान पर्व के रूप में मनाने वाली संस्था गंगा सेवा निधि के कर्ता-धर्ता सुशांत मिश्र अपने सहयोगी हनुमान यादव के साथ दौड़ते-भागते इंडिया गेट की अनुकृति को ढालने में लगे कारीगरों को चाय पिलाने के जतन में जुटे हुए हैं।
ऊपर कार्यालय में दीप भराई का काम सुस्त तो नहीं पड़ रहा, इस पर भी नजर रखे हुए हैैं। नीचे के हाल में उत्सव के दिन छत्र-चंवर संभालने वाली बालाओं का प्रशिक्षण चल रहा है। ऊपर आवास में आरती के पात्रों को चमकाने के लिए किशोरों का एक दल उन्हें क्लीनिंग पाउडर से मल रहा है।
पाश्र्ववर्ती प्राचीन दशाश्वमेध घाट पर भी देर शाम तक इस वर्ष पहली बार उत्सव के पूजन-अनुष्ठान में प्रतिष्ठित हो रही 108 किलोग्राम वजनी अष्टधातु की गंगा प्रतिमा के पुष्प शृंगार की जोरदार तैयारी है। पहली बार ही आरती अनुष्ठान में तय की गई पंचकन्याओं की सार्थक भागीदारी है। आयोजन के सूत्रधार पं. किशोरी रमण दूबे (बाबू महाराज) का कहना है- ‘बीते कई वर्षों से आरती अनुष्ठान में बालिकाओं को सम्मिलित करने का ध्यान बना हुआ था। इस बार हमने इस संकल्प को पूरा किया।
थीम की होड़, उत्सव को नया मोड़
काशी केदार सेवा समिते के प्रबंधक गौरव प्रकाश बताते हैैं कि अभी बीते कुछ वर्षों तक प्राय: घाटों पर दीपों से आलोकित अल्पनाओं पर ही विशेष ध्यान था। अब प्रयोगधर्मी युवाओं ने थीम आधारित झांकियों का नया चलन चलाया है। इससे महोत्सव का रूप-रंग और निखर आया है। इस बार अलग-अलग घाटों पर नई-नई थीम की कल्पनाओं को जमीं पर उतारा जा रहा है। शुक्रवार को आपको इन्हीं घाटों पर सात समंदर पार से अपने धाम काशी में लौटीं अन्नपूर्णेश्वरी के साथ भारत माता की ज्योतिर्मय झांकी मिलेगी। कहीं समुद्र मंथन की छवि तो कहीं सुरसरि के धरा पर उतरने की दृश्यावली खिलेगी।
कुंडों-सरोवरों पर भी देवता आएंगे, आस्था के संगम में नहाएंगे
नगर के कुंड-तालाब और सरोवर भी गुरुवार की सारी रात जागते रहे। साफ-सफाई से लेकर साज-सज्जा के प्रबंधन में जुटे टोले-मुहल्लों के युवा व किशोर यहां से वहां से भागते रहे। लक्ष्मीकुंड, ईश्वरगंगी सरोवर हो या पुष्कर तालाब सारी रात तैयारी की धूम से मनसायन रहे। दीप सज्जा के साथ आतिशबाजी की जोरदार योजनाएं हैं। नगर के छोटे-बड़े देवायतन भी इस महापर्व की ज्योति से वंचित न रह जाएं, इसलिए काशीवासी अपनी-अपनी बस्ती में चक्कर लगा रहे हैं। छोटे-बड़े मंदिरों को दीपमालिकाओं से सजा रहे हैं।