पाकिस्तान में तालिबानी असर:कट्‌टरपंथ की तलब बढ़ी, शरिया की भी सुगबुगाहट

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(www.arya-tv.com)अफगानिस्तान में तालिबानी शासन का महीना पूरा हो चुका है और तालिबानी कट्‌टरवाद अब सीमा पार कर पाकिस्तान में भी पैठ बढ़ा रहा है। राजनीतिक पार्टियों से पाकिस्तानी जनता का मोहभंग हो रहा है और शरिया कानून लागू करने और तालिबान की तर्ज पर सरकार बनाने के सुर उठ रहे हैं। पाकिस्तान के कुछ लोग तो अफगानिस्तान में तालिबानी राज को आध्यात्मिक वरदान साबित करने की कोशिशों में जुटे हुए हैं।

पाकिस्तान में सियासी इस्लाम और कट्टरवादी वहाबी इस्लाम की जड़ें गहरी हो रही हैं। बता दें अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को पाकिस्तान का सैन्य समर्थन हासिल है। ऐसे में एक्सपर्ट्स का कहना है कि पाकिस्तानी अवाम का तालिबान की तरफ रुझान होना स्वाभाविक जान पड़ता है।

पलटवार भी हो सकता है दांव
पाकिस्तानी हुकूमत और सेना भले ही तालिबानी सरकार के गठन पर उछल रही हो, लेकिन ये दांव पलटवार भी साबित हो सकता है। इंटरनेशनल मामलों के एक्सपर्ट अलम मेहसूद का कहना है कि तहरीक-ए-तालिबान जैसे प्रतिबंधित संगठन अपना दायरा बढ़ा सकते हैं और आम नागरिकों पर तहरीक के हमले बढ़ने की आशंका है।

इमरान की तालिबानपरस्ती
पाकिस्तान के PM इमरान खान खुद भी इस्लामी कट्‌टरपंथ के समर्थन में उतर आए हैं। उन्होंने महिलाओं के कपड़ों को लेकर दकियानूसी बयान दिया था। महिला उत्पीड़न को कपड़ों से जोड़कर दिए गए उनके बयान की काफी निंदा भी हुई थी। पाक मानवाधिकार आयोग के उपाध्यक्ष असद बट ने बताया कि ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार पाकिस्तान के तालिबानीकरण का समर्थन कर रही है।

तालिबान से पाक में इस्लामी हवा
अफगानिस्तान में तालिबान का पहला शासन 1996 से 2001 तक चला। इस दौरान पाकिस्तान में जेहादी संगठनों और इस्लामी कट्टरपंथियों को और हवा मिली। इन संगठनों ने पाक में शिया और अन्य अल्पसंख्यकों को निशाने पर लिया। 1999 में जनरल परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ सरकार का तख्तापलट कर सत्ता पर कब्जा जमाया। पाकिस्तान में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया।

समुदायों में तनाव बढ़ेगा

पाक में राजनीतिक मामलों के जानकार एहसान रजा का कहना है कि तालिबान को राजनीतिक प्रश्रय और सुन्नी संगठनों के समर्थन से समुदायों के बीच तनाव बढ़ेगा। तालिबान को सियासी सहोदर मानने वाले कट्टरपंथी संगठन इस्लामी राज से काफी उत्साहित हैं। 90 के दशक में शरीफ सरकार के दौरान भी शरिया कानून का दायरा बढ़ाने के लिए कई स्तर पर आंदोलन हुए थे।