शिकायत को चौखट पर नहीं फेंका जा सकता, चेक बाउंस होने पर याची को बड़ी राहत

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(www.arya-tv.com)चेक बाउंस होने के मामले की सुनवाई करते हुए मंगलवार को हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने कहा कि शिकायत को चौखट पर नहीं फेंका जा सकता है। शिकायत को केवल इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता है कि इसमें उस तारीख का जिक्र नहीं है। जिस पर कथित डिफॉल्टर/ड्रॉअर को डिमांड नोटिस तामील किया गया था।

ज‌स्ट‌िस विवेक वर्मा की सिंगल बेंच ने अनिल कुमार गोयल बनाम यूपी राज्य और अन्य के मामले की सुनवाई करते हुए माना है कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट- 1881 की धारा 138 के तहत चेक के अनादर की शिकायत को केवल इस आधार पर चौखट पर नहीं फेंका जा सकता है कि उसे सूचना नहीं मिली।

डाक से भेजी गई नोटिस साक्ष्य के रूप में मान्य
कोर्ट ने उक्त फैसले के लिए सीसी अलवी हाजी बनाम पलापेट्टी मुहम्मद और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जहां यह निर्धारित किया गया था कि अभियुक्त को नोटिस तामील करने के बारे में शिकायत में अभिकथन का अभाव साक्ष्य का विषय है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा था कि जब नोटिस पंजीकृत डाक द्वारा भेजा जाता है, तो अधिनियम की धारा 138 के खंड (बी) के अनुसार नोटिस जारी करने की अनिवार्य आवश्यकता का पालन हो जाता है। जब प्रतिवादी यह नहीं कह सकता कि उसको नोटिस के बारे में जानकारी नहीं थी, उसके पते पर नहीं आई, डाकिया ने उसे नहीं दिया, या डाकिए की रिपोर्ट गलत थी आदि।

नोटिस प्राप्त होने के 15 दिन में करना होता है भुगतान
इसी तरह, सुबोध एस सालस्कर बनाम जयप्रकाश एम शाह और अन्य में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एक व्यक्ति जो अधिनियम की धारा 138 के तहत शिकायत की प्रति के साथ अदालत से सम्मन प्राप्त होने के 15 दिनों के भीतर भुगतान नहीं करता है, वह स्पष्ट रूप से यह नहीं कह सकता कि मुझे नोटिस नहीं मिली।

इस पृष्ठभूमि में, हाईकोर्ट की स‌िंगल बेंच ने माना है कि सम्मन के चरण में, मजिस्ट्रेट को केवल यह देखना होता है कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है या नहीं। नोटिस की विवादित तामील के तथ्य के लिए साक्ष्य के आधार पर निर्णय की आवश्यकता होती है और वही केवल ट्रायल कोर्ट द्वारा किया जा सकता है, न कि इस न्यायालय द्वारा धारा 482 सीआरपीसी द्वारा दिए गए अधिकार क्षेत्र के तहत।

दूसरा नोटिस केवल रिमाइंडर है, पहली सूचना नहीं
सिंगल बेंच ने यह भी कहा कि शिकायत दर्ज करने की कार्रवाई का कारण अधिनियम की धारा 138 के प्रावधान के खंड (सी) है, जिसके तहत 19 सितंबर 2012 को पहला नोटिस भेजने से पैदा हुआ, न कि 2 नवंबर 2012 की नोटिस से। 2 नवंबर को भेजा गया दूसरा नोटिस केवल रिमाइंडर नोटिस है, न कि इसे शिकायतकर्ता पहली सूचना माने। दूसरे नोटिस की कोई प्रासंगिकता नहीं है। दूसरे नोटिस को प्रतिवादी के दायित्व के निर्वहन के लिए एक रिमाइंडर माना जाएगा।