डॉन की कहानी: 25 साल की उम्र में सीएम को मारने की ली थी सुपारी, नाम सुनते ही कांप जाते थे लोग

Gorakhpur Zone UP

गोरखपुर(www.arya-tv.com) उत्तर प्रदेश में जब-जब बदमाशों का नाम लिया जाता है तो उसमें श्रीप्रकाश शुक्ला का नाम सबसे ऊपर आता है। 25 साल के इस युवा बदमाश का खौफ इतना ज्यादा था कि प्रशासन को इससे निपटने के लिए एसटीएफ (स्पेशल टॉस्क फोर्स) गठन करना पड़ा। इस बदमाश ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को जान से मारने की सुपारी ले ली थी।

श्रीप्रकाश शुक्ला का जन्म गोरखपुर जिले के ममखोर गांव में हुआ था। उसके पिता एक स्कूल में शिक्षक थे। श्रीप्रकाश ने पहली बार 1993 में बहन पर छिंटाकशी करने वाले शख्स को बीच बाजार में गोली मारी थी। इस कांड के बाद वह बैंकॉक भाग गया और वहां से वापस पर उसने मोकामा (बिहार) के सूरजभान गैंग को ज्वाइंन कर लिया।

इसके बाद उसने 1997 में बाहुबली राजनेता वीरेंद्र शाही को लखनऊ में दिन दहाड़े मौत के घाट उतार दिया था। इस घटना के बाद से यूपी में श्रीप्रकाश शुक्ला का आतंक कायम हो गया। इसके बाद उसने 13 जून 1998 को पटना स्थित इंदिरा गांधी अस्पताल के बाहर बिहार सरकार के मंत्री बृज बिहारी प्रसाद को उनके सुरक्षाकर्मियों के सामने ही फिल्मी अंदाज में गोलियों से भून दिया था। उसने इस घटना में एके-47 राइफल का इस्तेमाल किया था। देश का यह पहला बदमाश जिसने हत्या के लिए एके-47 राइफल का प्रयोग किया था।

इन तमाम घटनाओं के बाद 4 मई 1998 को यूपी पुलिस के तत्कालीन एडीजी अजय राज शर्मा ने 50 बेहतरीन जवानों को छांटकर स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) बनाई। इस फोर्स का पहला टास्क श्रीप्रकाश शुक्ला को जिंदा या मुर्दा पकड़ना था। इसी दौरान श्रीप्रकाश उस समय सूबे के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की हत्या की सुपारी (ठेका) ले ली थी। बताया जाता है कि यह सौदा 5 करोड़ में तय हुआ था। श्रीप्रकाश शुक्ला की एक प्रेमिका भी थी जो दिल्ली में रहती थी। एसटीएफ को इस बात की जानकारी मिल गई थी।

23 सितंबर 1998 को एसटीएफ के प्रभारी अरुण कुमार को सूचना मिली कि श्रीप्रकाश दिल्ली से गाजियाबाद की तरफ आ रहा है। जैसे उसकी कार इंदिरापुरम के सुनसान इलाके में दाखिल हुई, एसटीएफ ने उसे घेर लिया। श्रीप्रकाश शुक्ला को सरेंडर करने को कहा गया लेकिन वह नहीं माना और फायरिंग शुरू कर दी। पुलिस की जवाबी फायरिंग में श्रीप्रकाश मारा गया।  श्रीप्रकाश की मौत के बाद उसका खौफ भले ही खत्म हो गया था लेकिन जयराम की दुनिया में उसके आज भी चर्चे होते हैं।