- शिक्षा और समाज के संदर्भ में मातृभाषा एवं बहुभाषा की अवधारणा का महत्व पर आर्यकुल ग्रुप ऑफ कालेज में ई सेमिनार का आयोजन
(www.arya-tv.com)लखनऊ। बिजनौर स्थित आर्यकुल ग्रुप ऑफ कालेज में एजुकेशन विभाग द्वारा समाज के संदर्भ में मातृभाषा एवं बहुभाषा की अवधारणा का महत्व विषय पर ई सेमिनार का आयोजन किया गया। इसमें मुख्य अतिथि के तौर पर महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वाविद्यालय के प्रो.(डॉ.) वृषभ जैन, विशिष्ट अतिथि के तौर पर विद्याभारतीय पूर्वी के क्षेत्रीय मंत्री और केकेवी कालेज के विभागाध्यक्ष डॉ. जय प्रताप सिंह, आमंत्रित अतिथि के तौर पर एएनडीएनएन महिला महाविद्यालय कानपुर की गृह विज्ञान की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. हितैषी सिंह के साथ आर्यकुल ग्रुप ऑफ कालेज के प्रबंध निदेशक डॉ.सशक्त सिंह ने विशेष तौर पर सहभागिता की।

ई सेमिनार में वक्ता के रूप में बोलते हुए श्री जैन ने कहा कि मातृभाषा और बहुभाषा की अवधारणा को समझने के लिए हमें अपनी मातृभाषा के महत्व को समझना होगा। मातृभाषा हमें संसार से जुड़ने का अवसर प्रदान करती है। क्योंकि यही यह मार्ग है कि जिसके दम पर हमारी एक विशेष पहचान बनी हुई है। साथ ही अगर बहुभाषा की बात करें यह हमारे ज्ञान को विस्तार देती है न कि हमें पहचान देती है। हमारी पहचान सिर्फ हमारी मातृभाषा से ही मिल सकती है। उन्होंने कहा कि मनुष्य की मनुष्यता का निर्माण मातृभाषा से ही होता है। अगर दुनिया को देखना,परखना और समझना है तो वह मातृभाषा से ही संभव है। दूसरी भाषा के ज्ञान से हमें ज्ञान तो मिल सकता है हमारी पहचान का कारक सिर्फ हमारी मातृभाषा ही हो सकती है। उन्होंने कहा कि हमारा देश तो आजाद हुआ पर यह सोचने वाली बात है कि हम अपनी मातृभाषा को आजादी के बंधन से आजाद नहीं करा सके।
आज भी देश में मातृभाषा के कई कानून लागू है पर उनका पालन करना बहुत ही कठिन हो रहा है। अंग्रेजी में बोलने वाले को हमारा समाज अच्छे नजरिए से देखता है जबकि मातृभाषा के मायने धीरे—धीरे कम हो रहे हैं। अगर वास्विकता की बात की जाए तो हमारी मूल भाषा संस्कृत जो अब पूरी तरह से खो रही है अगर आज वो समाज में जिंदा होती है जो हमारे पूर्वजों के ग्रंथों को समझने में कोई भी दिक्कत न होती। देश की मातृभाषा का संबंध उसकी संस्कृति से होता है। अगर हम अपने देश की मातृभाषा की रक्षा न कर सके तो समझिए अपनी संस्कृति की रक्षा कैसे पर पायेंगे। उन्होंन समाज में हिन्दी के वक्ताओं के लिए संदेश रूप में कहा कि ऐसा समय आ गया है हिन्दी के व्याख्यान में 40 से 50 प्रतिशन अंग्रेजी शब्दों का ही प्रयोग होता है। इसी के साथ श्री जैन ने कहा कि समय बदल रहा है पर अगर हम अभी भी अपनी मातृभाषा की रक्षा न कर सके तो आगे परिणाम अच्छे नहीं होंगे। बहुभाषा होना अच्छी बात है पर ज्ञान के तौर पर पर संस्कृति को बचाए रखना हम सभी की मौलिक जिम्मेदारी हैं।

विशिष्ट अतिथि के तौर पर बोलते हुए डॉ.जय प्रताप ने कहा कि मातृभाषा ही हमारी असली भाषा होती है यह जरूरी नहीं कि हम किसी अन्य भाषा में ही बोलकर अपने आप को समाज में स्थान दिलाये बल्कि अगर हमें अच्छा ज्ञान है तो मातृभाषा की भाषा में बोलकर भी हम अपने आप को एक अच्छा वक्ता साबित कर सकते हैं।

इसी क्रम में डॉ.हितैषी सिंह ने मातृभाषा और बहुभाषा के विभिन्न पहलुओं की जानकारी साझा की और कहा कि मातृभाषा सामाजिक रूप से हमारे समाज को आपस में जोड़ने का काम करती है। अगर हम कहीं बाहर भी जाते हैं तो उसका अलग ही सम्मान होता है।

अंत में आर्यकुल के प्रबंध निदेशक ने सभी अतिथियों को ई सेमिनार में अपने विचार रखने के लिए आभार दिया और मातृभाषा को आगे निरंतर बढ़ाने के लिए संकल्प दिलाया जिससे कि समाज में मातृभाषा को सही स्थान मिल सके और देश की संस्कृति की रक्षा हो सके। कार्यक्रम का सफल संचालन एन.वर्मा द्वारा किया गया।