(www.arya-tv.com) वैश्विक महामारी कोरोना की दवा बनाने के लिए पूरी दुनिया के वैज्ञानिक लगे हुए हैं। हालांकि अभी इस वायरस की वैक्सीन ही उपलब्ध हुई है। लेकिन, वो दिन दूर नहीं जब इसकी दवा भी बाजार में उपलब्ध होगी। गोरखपुर में दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय के दो शिक्षकों ने कोरोना वायरस को रोकने का इलाज ढूंढ लिया है। नीम, ग्रीन टी और कुट्टू के साथ भारतीय संजीवनी में कोराना वायरस का इलाज छिपा है। इनसे मिलने वाला रसायन जहां कोरोना वायरस को निष्क्रिय कर रहा है, तो वहीं इसका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं है। ये रिसर्च ब्रिटेन की आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के जनरल में प्रकाशित होने के साथ सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला रिसर्च है।
विश्वविद्यालय के दो प्रोफसरों ने किया कमाल
विश्वविद्यालय के बॉयोटेक्नोलॉजी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर शरद कुमार मिश्रा और भौतिकी विभाग के प्रोफेसर उमेश यादव ने 10 माह के गहन अध्ययन के बाद इस रिसर्च को पूरा किया है। इसमें उनका सहयोग नोएडा की पाथ फाइंडर रिसर्च एंड ट्रेनिंग फाउंडेशन के डॉक्टर विवेक धर द्विवेदी और दक्षिण कोरिया के युंगनम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सांग गु कांग ने किया। बॉयोटेक्नोलॉजी विभाग के अध्यक्ष और प्रोफेसर डॉ शरद मिश्रा ने बताया कि कोरोना वायरस की कोई दवाई अभी उपलब्ध नहीं है। कोरोना वायरस की दवा को खोजने के क्रम में उन लोगों ने रिसर्च किया है। कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने वाले 653 कंपाउंड (रसायन) पर अध्ययन किया है। ये सभी प्राकृतिक रसायन हैं।
600 कंपाउंड पर किया गया रिसर्च
प्रो. शरद कुमार मिश्रा ने बताया कि कोरोना वायरस के संक्रमण और फैलाव में सबसे अहम भूमिका प्रोटीएज की होती है। नए-नए कोरोना वायरस के पार्टिकल उस प्रोटीएज के माध्यम से बनते हैं। उसके फैलाव को रोकने हम रिसर्च कर रहे थे। कोरोना वायरस के प्रोटीएज को ब्लॉक कर दें, तो उसकी वृद्धि को रोक देता है। 600 से अधिक कंपाउंड में चार का रिजल्ट बहुत ही अच्छा आया। उसे मेन कंपाउंड के रूप में विकसित करें, तो कोरोना के अगेंस्ट बहुत अच्छा रिजल्ट सामने होगा।
हमें लैब में और प्रयोग करके वैरीफाई करना होगा। ये अलग-अलग प्राकृतिक चीजों से मिलकर बनते हैं। उन्होंने बताया कि बेहद खास चार कंपाउंड को परखा गया है। इन चारों का साइड इफेक्ट शरीर पर नहीं होता है। इसमें पहला कंपाउंड ‘रुटीन’ है। इसे विटामिन ‘पी’ भी कहते हैं।
यह कंपाउंड नीम, कुट्टू और ग्रीन टी में पाया जाता है। इसके अलावा उत्तराखंड की पहाडि़यों पर मिलने वाली भारतीय संजीवनी पौधे में भी कोरोना के संक्रमण को रोकने का इलाज मौजूद है। इस पौधे को विशेषज्ञ सिलेजिनेला साइनेन्सिस कहते हैं। इसमें कम्पाउंड पोडोकारपस फ्लोवोन-बी मिलता है। ब्राजील में मिलने वाले पौधे वायरसोमिना क्रासा में क्वेर्सिमेरीटीन आरबिनो पायरानोसाइड कंपाउंड मिलता है। उन्होंने बताया कि इस रिसर्च से भविष्य में कोरोना की दवा को बाजार में लाने में मदद मिलेगी।
प्रोटीएज टूटकर नए वायरस बनाता है: उमेश यादव
भौतिकी विभाग के प्रोफेसर उमेश यादव ने बताया कि वायरस शरीर में एंट्री करने के बाद सक्रिय हो जाता है। संक्रणम फैलाने के लिए वायरस शरीर में आकार और आबादी को तेजी से बढ़ाता है। इसमें मुख्य भूमिका में वायरस का मेन प्रोटीएज होता है। वह विखंडित होकर नए वायरस बनाता है। रिसर्च में मिले चारों कंपाउंड मेन प्रोटीएज को ही निष्क्रिय कर देते हैं। इससे वायरस का विकास रुक जाता है।
उन्होंने बताया कि इस रिसर्च में 653 कंपाउंड ऐसे मिले हैं, जो वायरस के मेन प्रोटीएज की सक्रियता को नियंत्रित कर रहे हैं। इनमें से ज्यादातर के साइड-इफेक्ट भी रहे हैं। इस रिसर्च में तलाशे गए कंपाउंड के साइड-इफेक्ट को भी ध्यान में रखा गया है, जो न के बराबर हैं। उन्होंने कहा कि इस रिसर्च को आगे की प्रक्रिया के तहत दवा के रूप में बाजार में लाने में आसानी होगी।