जनप्रतिनिधियों से गरिमापूर्ण व्यवहार करने के पीछे की क्या है कहानी

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(www.arya-tv.com) पिछले दिनों कर्नाटक विधान परिषद के उपाध्यक्ष एसएल धर्मे गौड़ा ने आत्महत्या कर ली। शव के साथ एक सुसाइड नोट भी मिला जिसमें 15 दिसंबर की उस घटना का भी जिक्र है, जिसमें वे सदन में धक्का-मुक्की और कुर्सी से जबरन हटाए जाने जैसे दुर्व्‍यवहार से काफी परेशान थे। इस घटनाक्रम के साथ ही दशकों से चले आ रहे नेताओं के व्यवहार का प्रश्न फिर से ताजा हो उठा है। गौरतलब है कि आज के डिजिटल युग में संसद, राज्यों की विधानसभाएं भी लाइव प्रसारण की जद में आ चुकी हैं। यह एक संसदीय संकल्पना रही है कि संसद में बैठने वाले लोग जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं। जनता की समस्याओं से सरकार को अवगत करवाते हैं। सरकार के विचारों को अर्थपूर्ण ढंग से प्रभावित करते हैं, लेकिन इन दिनों अधिकांशत: सदस्यों द्वारा महत्वपूर्ण मुद्दों पर या बिलों पर शांतिपूर्वक एवं गरिमापूर्ण तरीके से चर्चा के बजाय सदन से वाकआउट, कुर्सयिों को तोड़ने या आपस में हाथापाई जैसी कई हरकतें न चाहते हुए भी देखने को मिलती हैं।

अब प्रश्न यह उठता है कि राष्ट्रवाद, देशभक्ति और मूल कर्तव्यों की दलीलें देकर चुनाव जीतने वाले जनप्रतिनिधि आखिर इन बातों को अपने जीवन में क्यों नहीं उतार पाते है। संविधान के अनुच्छेद 51 (अ) में निहित मूल कर्तव्यों में सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखने एवं हिंसा से दूर रहने की बात कही गई है, लेकिन सदन में संसाधनों को तोड़ने और हिंसक घटनाओं से मूल कर्तव्य की धज्जियां उड़ाई जाती हैं तो ऐसे कर्तव्यों का पालन जनता कैसे करेगी? क्या इन जनप्रतिनिधियों से गरिमापूर्ण व्यवहार की उम्मीद नहीं की जा सकती? देखा जाए तो भारत ने आजादी के समय से ही लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाया है।

ऐसी शासन प्रणाली जो जनता द्वारा और जनता के लिए होती है। लोकतांत्रिक प्रणाली को सबसे अच्छी प्रणाली इसलिए माना जाता है, क्योंकि इसका कोई विकल्प नहीं मौजूद है। शासन की वर्तमान प्रणालियों में इसकी श्रेष्ठता बरकरार है। हालांकि यह बात उन देशों या लोकतंत्र के लिए सच साबित होती है जहां इसके सभी मानकों को वास्तविक रूप से लागू किया या अपनाया जाता है। माना जाता है कि परिपक्वता आने या एक निश्चित अंतराल के बाद किसी भी चीज में ठहराव आ जाता है एवं इस प्रक्रिया में बदलाव की मंशा बलवती होती दिखती है। ऐसा ही सवाल देश की मौजूदा लोकतांत्रिक प्रणाली को लेकर उठने शुरू हो चुके हैं। एक जनप्रतिनिधि समाज के लिए रोल मॉडल का काम करता है। अत: आवश्यक है कि सदन के अंदर एवं बाहर भी जनप्रतिनिधियों हेतु आचार संहिता का निर्माण किया जाए। सदन में तोड़-फोड़, कपड़े फाड़ने जैसी करतूतों हेतु आर्थिक दंड के साथ-साथ सदस्यता से निलंबित करने जैसे प्रावधान किए जाने चाहिए।