(www.arya-tv.com) बिहार चुनाव में जूतों में दाल तो बंटी, पर जूते नहीं चले। जूतों के बदले प्याज चली। ऐसा नहीं है कि प्याज सस्ती हो गयी, इसलिए चली। प्याज सस्ती हो, आलू सस्ते हों, टमाटर सस्ते हों तो वे सड़कों पर बिखेरे जाते हैं, नेताओं पर नहीं फेंके जाते। जब यह महंगे होते हैं तो नेताओं की मालाओं में सजते हैं। प्याज के महंगी होने पर सरकार को शर्मिंदा करने के लिए सरकार विरोधी नेता प्याज की माला पहनते हैं। एक जमाना था, जब बेसुरे गायक या खराब प्रदर्शन कर रहे कलाकार पर टमाटर या अंडे फेंके जाते थे। वह जमाना चला गया क्योंकि प्याज, टमाटर आदि सब महंगे हो गए। अब यह फेंकने के लिए नहीं है।
प्याज, टमाटर और आलू को फेंकने की हिम्मत अभी भी किसान ही कर सकता है, जब वे मंडी में पिट जाएं। वह तो दूध सस्ता हो जाए तो उसे भी सड़कों पर बिखेर देता है। गणेश जी को भी नहीं चढ़ाता और न ही सांप को पिलाता है। अलबत्ता नेताओं को वोट जरूर देता है, अगर उसे उस अर्थ में लिया जाए तो। खैर, सस्ता होने पर किसान तो अपने गन्ने को भी आग लगा देता है। घर फूंक तमाशा देखने की हिम्मत उसके अलावा कौन कर सकता है। वह तो आत्महत्या करके भी घर फूंक तमाशा ही देखता है। अब तीन कृषि कानून बनाकर सरकार तमाशा देख रही है।
खैर, बिहार में नेताओं पर जूते नहीं चले, प्याज चली। न प्याज सस्ती है और न ही जूते सस्ते हैं। कमाल है, फिर भी चल रहे हैं। अभी हम इसी बात पर खुश हो रहे थे कि देखो पाकिस्तान में आटा सत्तर रुपये किलो बिक रहा है। भाई लोगों ने हमारी इस खुशी को बरकरार नहीं रहने दिया। अब प्याज सत्तर रुपये किलो बिक रहा है।
इसे मियां की जूती, मियां के सिर नहीं कहा जा सकता। सत्तर रुपए किलो प्याज खरीद कर पेट भरना मुश्किल है, अलबत्ता पाकिस्तानी सत्तर रुपये किलो का आटा खरीद कर अपना पेट भर सकते हैं। यह प्याज और आटे का फर्क है। प्याज और आटे का फर्क यह भी है कि प्याज सरकार पलट देता है, आटा नहीं पलट पाता। हालांकि, पिछले कुछ दिनों से प्याज की यह ताकत भी घटी है। वह कई बार महंगी हुई, पर सरकार को हिला नहीं पाई। सरकार वैसे ही स्थिर रही जैसे जमीं जुंबद, न जुबंद गुल मोहम्मद।
लेकिन लोगों को लग रहा है कि बिहार में शायद वह फिर अपना पुराना चमत्कार दिखा दे। यह चमत्कार प्याज का होगा या लालूजी के नाम का, पता नहीं। रही बात जूतों की तो जूतों को तो अगर पांव में भी पहनो तो भी वे सिर पर ही बजते हैं। फिलहाल तो सिर पर प्याज ही बज रही है, नेताओं के भी और मतदाताओं के भी।
सहीराम