(www.arya-tv.com) आखिरकार भारत और अमेरिका के बीच उस बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (बेका) पर समझौता हो गया जिस पर बरसों से काम चल रहा था। यह दोनों देशों के बीच सामुहिक सहयोग बढ़ाने की समझ के तहत किया जाने वाला चौथा समझौता है।
इससे पहले दोनों देश 2002 में जनरल सिक्यॉरिटी ऑफ मिलिट्री इनफॉर्मेशन एग्रीमेंट, 2016 में लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरैंडम ऑफ एग्रीमेंट और 2018 में कॉम्पैटिबिलिटी एंड सिक्यॉरिटी एग्रीमेंट पर दस्तखत कर चुके हैं। माना जा रहा है कि बेका समझौता दोनों देशों के बीच रक्षा और भू-राजनीति के क्षेत्र में सहयोग और तालमेल को पूर्णता प्रदान करने वाला है।
हालांकि अमेरिका जैसी सुपरपावर के साथ रक्षा सहयोग बढ़ाने की बात जब भी उठती है तब उसके साथ कई तरह की आशंकाएं भी जुड़ी होती हैं। इसी बेका समझौते को लेकर जब बातचीत शुरू हुई तो तत्कालीन यूपीए सरकार ने कई तरह की चिंताएं जाहिर की थीं। समझौते के इस बिंदु तक पहुंचने में अगर इतना वक्त लगा तो उसका कारण यह था कि लंबी बातचीत के जरिए दोनों पक्षों ने एक-दूसरे की आशंकाओं को दूर करने के रास्ते खोजे और फिर सहमति को पक्का किया।
बहरहाल, इस समझौते के बाद अब भारत को अमेरिकी सैन्य उपग्रहों द्वारा जुटाई जानी वाली संवेदनशील सूचनाएं और चित्र रियल टाइम बेसिस पर उपलब्ध हो सकेंगे। अमेरिका वैसे महत्वपूर्ण आंकड़े, मैप आदि भी भारत के साथ शेयर कर सकेगा जिनके आधार पर अपने सामुहिक लक्ष्य पूरी सटीकता से हासिल करना भारत के लिए आसान हो जाएगा।
खासकर दो पड़ोसी राष्ट्रों के साथ मौजूदा तनावपूर्ण रिश्तों के संदर्भ में देखें तो यह समझौता विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो जाता है। लेकिन ऐसे समझौते तात्कालिक संदर्भो तक सीमित नहीं होते। न ही ये एकतरफा तौर पर फायदेमंद होते हैं। ध्यान रहे, यह समझौता ऐसे समय हुआ है जब अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव अपने अंतिम दौर में है।
दो देशों के बीच कोई समझौता यूं भी किसी खास सरकार का मामला नहीं होता, लेकिन अमेरिकी आम चुनाव की मतदान तिथि से ऐन पहले हुआ यह समझौता इस बात को भी रेखांकित करता है कि दोनों देशों के संबंध अब खास नेताओं के बीच की पर्सनल केमिस्ट्री पर निर्भर नहीं रह गए हैं। यह दोनों देशों के बीच बढ़ते सहयोग और बेहतर होते तालमेल का ठोस संकेत है। किसी भी अन्य रिश्ते की तरह यह नजदीकी भी दोनों देशों को लाभ पहुंचा रही है।
सिर्फ रक्षा क्षेत्र की बात करें तो भारत-अमेरिका सहयोग बढऩा शुरू होने के बाद से, यानी 2007 से अब तक अमेरिकी कंपनियां भारत को 21 अरब डॉलर से ज्यादा के हथियार बेच चुकी हैं। बदली परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए दोनों देशों के रिश्तों में बढ़ता तालमेल न केवल भारत और अमेरिका के राष्ट्रीय हितों की दृष्टि से बल्कि विश्व शांति और क्षेत्रीय संतुलन के लिए भी उपयोगी है।