(www.arya-tv.com) यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि हर साल अक्तूबर-नवम्बर में दिल्ली-एनसीआर तथा देश के कई भागों में प्रदूषण के कारण हवा की गुणवत्ता काफी खराब हो जाती है। इस साल भी यही हाल है और विशेषज्ञों ने अगले कुछ दिनों में हवा में प्रदूषण बढऩे का अनुमान लगाया है।
इस प्रदूषण के लिए किसानों द्वारा पराली जलाने को एक बड़ा कारण माना जाता है लेकिन वास्तविकता यह है कि पराली जलाना इस समस्या का एक कारण है। कुछ लोग पराली जलाने की प्रक्रिया को ऐसे प्रचारित करते हैं जैसे इस प्रदूषण का केवल यही एक कारण है। केवल पराली जलाने की प्रक्रिया को ही इस प्रदूषण के लिए जिम्मेदार नहीं माना जा सकता। इसके साथ अनेक कारण हैं जो इन दिनों प्रदूषण बढ़ाकर हवा की गुणवत्ता खराब करते हैं। हालांकि पंजाब रिमोट सेंसिंग सेंटर के अनुसार इस साल पराली जलाने की घटनाएं पिछले साल के मुकाबले करीब चार गुना अधिक दर्ज की गई हैं।
दरअसल तापमान कम होने और हवा की गति कम होने के कारण हवा के प्रदूषणकारी तत्व आसमान में ठहरे हुए हैं। इस मुद्दे पर राजनीति भी शरू हो गई है। दिल्ली सरकार हवा के प्रदूषण के लिए केन्द्र सरकार को जिम्मेदार ठहरा रही है। हालांकि कुछ जगहों पर पराली गलाने के लिए बायो डी कंपोजर का छिड़काव भी कराया जा रहा है। इसके माध्यम से पराली कुछ दिनों बाद खाद में तबदील हो जाती है।
दरअसल वायु प्रदूषण बढऩे से सांस के रोगियों की समस्या बढ़ जाती है और स्वस्थ व्यक्ति को भी सांस सम्बन्धी बीमारियां होने की आशंका बढ़ जाती है। वायु प्रदूषण के बढऩे से कोविड-19 की दूसरी लहर शुरू होने का खतरा भी बढ़ जाएगा। इस समय हवा की गुणवत्ता पिछले आठ महीने के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। यही कारण है कि दिल्ली सरकार ने केन्द्र और सम्बन्धित राज्यों की सरकारों से वायु प्रदूषण से निपटने के लिए कार्रवाई की अपील की है।
हालांकि केन्द्र सरकार, दिल्ली सरकार के दावों को गलत बता रही है और इस सम्बन्ध में दिल्ली सरकार पर आरोप लगा रही है। गौरतलब है कि कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट ने वायु प्रदूषण रोकने के लिए सरकार को कुछ सुझाव दिए थे। इसके कुछ समय बाद सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि इस सम्बन्ध में दिए गए निर्देशों के अनुसार सरकार ने काम क्यों नहीं किया दरअसल वायु प्रदूषण बढऩे पर सरकारें जरूर सक्रिय होती हैं लेकिन जैसे ही प्रदूषण कम होता है, सरकारें पुन: सो जाती हैं जबकि वायु प्रदूषण कम करने वाले उपायों पर पूरे साल सक्रियता के साथ काम होते रहना चाहिए। हमें यह समझना होगा कि कोई भी तकनीक प्रदूषण को कम करने में सहायता तो कर सकती है लेकिन इसे पूरी तरह से खत्म नहीं कर सकती।
कई बार मौसम में परिवर्तन भी इस प्रदूषण के लिए जिम्मेदार होता है। रही-सही कसर हमारी नासमझी और मानवीय गतिविधियां पूरी कर देती हैं। यही कारण है कि सरकारी नीतियों के सही ढंग से क्रियान्वयन के साथ जब तक जनता पूर्ण रूप से जागरूक नहीं होगी, वायु प्रदूषण को पूरी तरह से कम नहीं किया जा सकता।
दरअसल धूल, धुएं और कुहासे से बना स्मॉग हमारे लिए कई समस्याएं पैदा करता है। जब ईंधन जलता है, वायुमंडलीय प्रदूषण या गैसें हवा में मौजूद सूरज की रोशनी और वातावरण में इसकी गर्मी के साथ प्रतिक्रिया करती हैं, जिससे स्मॉग बनता है। इस मौसम में हर साल इस स्मॉग के कारण प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ जाता है। निमार्ण कार्य भी इस प्रदूषण के लिए जिम्मेदार होते हैं। इसके साथ ही वाहनों का प्रदूषण भी इस स्मॉग को बढ़ाता है। वाहनों से निकलने वाला इथाइलीन जैसा हाडड्रोकार्बन थोड़ी मात्रा में भी पौधों के लिए हानिकारक है।
वास्तविकता यह है कि आज पर्यावरण के अनुकूल तकनीक के बारे में सोचने की फुर्सत किसी को नहीं है। पुराने जमाने में पर्यावरण के हर अवयव को भगवान का दर्जा दिया जाता था। इसीलिए हम पर्यावरण के हर अवयव की इज्जत करना जानते थे। नये जमाने में पर्यावरण के अवयव वस्तु के तौर पर देखे जाने लगे और हम इन्हें मात्र भोग की वस्तु मानने लगे। यह समझ विकसित करने के लिए एक बार फिर हमें नये सिरे से सोचना होगा।
हमें मानना होगा कि प्रदूषण की यह समस्या किसी एक शहर, राज्य या देश के सुधरने से हल होने वाली नहीं है। इस समय सम्पूर्ण विश्व में पर्यावरण के प्रति चिन्ता देखी जा रही है। सवाल यह है कि क्या खोखले आदर्शवाद से वायु प्रदूषण का मुद्दा हल हो सकता है दरअसल जब हम प्रकृति का सम्मान नहीं करते हैं तो वह प्रत्यक्ष रूप से तो हमें हानि पहुंचाती ही है, परोक्ष रूप से भी हमारे सामने कई समस्याएं खड़ी करती है। इस सम्बन्ध में जब तक जनता जागरूक नहीं होगी, तब तक कोई सार्थक और ठोस हल नहीं निकल पाएगा।