- कॉरिडोर का विरोध इसीलिए कम हुआ क्योंकि भाजपा और उससे जुड़े लोगों ने स्थानीय लोगों को यह विश्वास दिलाया कि कॉरिडोर के बहाने ज्ञानवापी को गिरा देने की योजना है
- कॉरिडोर निर्माण का काम जब शुरू हुआ और मस्जिद साफ दिखने लगी तो हमने देखा कि यह तो पूरी तरह मंदिर के ऊपर बनाई गई है
- मस्जिद वहां सालों से थी लेकिन पहले वह भवनों के पीछे छिपी हुई थी, अब तो मंदिर में प्रवेश करते हुए सबसे पहले मस्जिद के ही दर्शन होते हैं और यह दृश्य किसी टीस की तरह से चुभता है
(www.arya-tv.com) काशी विश्वनाथ मंदिर के गेट नंबर 4 के बाहर सोनू की एक छोटी-सी दुकान है। मुश्किल से तीन बाई तीन फीट की इस दुकान में सोनू पूजा सामग्री बेचते हैं। पास के अन्य दुकानों की तरह ही इस दुकान पर छोटे-छोटे कई लॉकर बने हुए हैं। जो भी श्रद्धालु इन दुकानों से पूजा सामग्री ख़रीदते हैं, वे मंदिर जाते हुए अपना मोबाइल, कैमरा, बेल्ट, घड़ी आदि सामान इन्हीं लॉकरों में सुरक्षित रख जाते हैं। वह इसलिए कि मंदिर परिसर में कुछ भी ले जाने की अनुमति नहीं है।
90 के दशक से पहले हालात ऐसे नहीं थे। काशी विश्वनाथ के दर्शन तब सहज ही हो जाया करते थे। लेकिन जब राम मंदिर आंदोलन उग्र हुआ और अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिरा दी गई तो काशी में भी हालात बदलने लगे। विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के बीच लोहे की ऊंची-ऊंची बैरिकेड खड़ी कर दी गई, हर आने वाले की ज़बरदस्त तलाशी होने लगी और पूरे परिसर को सुरक्षाबलों से पाट दिया गया। यही स्थिति आज तक बरकरार है।
सीआरपीएफ, पीएसी, ब्लैक कैट कमांडो, बम निरोधक दस्ते और उत्तर प्रदेश पुलिस के जवानों की लगभग पूरी फौज ही अब चौबीस घंटे मंदिर परिसर में तैनात रहती है। आने वाले हर श्रद्धालु को तीन-तीन बार सुरक्षा जांच से पार होने के बाद ही परिसर में दाखिल होने दिया जाता है। लोहे के बैरिकेड और कदम-कदम पर तैनात हथियारबंद सुरक्षाकर्मियों की मौजूदगी यहां के माहौल में घुले हुए तनाव की गवाही देते हैं।
इस पूरे परिसर में विश्वनाथ मंदिर के शिखर और ज्ञानवापी मस्जिद की मीनारों से भी ऊंचा अगर कुछ है तो वह सुरक्षाबलों का वॉच टॉवर ही है। इस पर तैनात सुरक्षाकर्मी यहां होने वाली हर गतिविधि पर बारीक नजर बनाए रखते हैं। बीते तीस सालों से लागू यह व्यवस्था स्थानीय लोगों को अब सामान्य लगने लगी थी लेकिन काशी विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना ने परिस्थितियों को एक बार फिर से बदल दिया है।
कॉरिडोर निर्माण के लिए विश्वनाथ मंदिर के आस-पास के क़रीब 300 भवन अधिग्रहीत करके तोड़े जा चुके हैं। इन भवनों के टूट जाने से ज्ञानवापी मस्जिद अब मुख्य सड़क से ही दिखने लगी है और इससे कई लोगों को मंदिर-मस्जिद के मुद्दे को दोबारा उछालने का मौका मिल गया है।
‘काशी विश्वनाथ मुक्ति आंदोलन’ चलाने वाले सुधीर सिंह कहते हैं, ‘कॉरिडोर निर्माण का काम जब शुरू हुआ और मस्जिद साफ दिखने लगी तो हमने देखा कि यह तो पूरी तरह मंदिर के ऊपर बनाई गई है। मस्जिद के पिछले हिस्से में मौजूद वो दीवार अब दूर से ही देखी जा सकती है जिस पर आज भी मंदिर के निशान मौजूद है। यह देखकर ही हमने मन बनाया कि अब विश्वनाथ बाबा को मुक्त करा कर ही मानेंगे।’
लगभग ऐसी ही उत्तेजना काशी के कई अन्य लोगों में भी कॉरिडोर निर्माण के बाद से देखी जा सकती है। विश्वनाथ मंदिर के अर्चक श्रीकांत मिश्रा कहते हैं, ‘मस्जिद वहां सालों से थी लेकिन पहले वह भवनों के पीछे छिपी हुई थी। अब तो मंदिर में प्रवेश करते हुए सबसे पहले मस्जिद के ही दर्शन होते हैं और यह दृश्य किसी टीस की तरह से चुभता है। हमें ही नहीं, किसी भी हिंदू को यह दृश्य चुभेगा। उस ढांचे को वहां से जल्द से जल्द हटा देना चाहिए।’
कॉरिडोर निर्माण का जब काम शुरू हुआ तो यह बात भी तेजी से फैली कि यहां अयोध्या का दोहराव करने की रणनीति तैयार हो रही है। विश्वनाथ मंदिर के आस-पास पहले इतनी संकरी गलियां हुआ करती थीं कि मंदिर में सीमित लोग ही एक बार में दाखिल हो सकते थे। लेकिन कॉरिडोर निर्माण के चलते जब आस-पास के सभी भवन तोड़ डाले गए तो वहां लाखों लोगों के एक साथ जमा होने की जगह बन गई।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद तो यहां तक कहते हैं कि कॉरिडोर का विरोध इसीलिए कम हुआ क्योंकि भाजपा और उससे जुड़े लोगों ने स्थानीय लोगों को यह विश्वास दिलाया कि कॉरिडोर के बहाने ज्ञानवापी को गिरा देने की योजना है। वे कहते हैं, ‘भाजपा और विश्व हिंदू परिषद से जुड़े लोग उस दौरान हमारे पास भी आए। उन्होंने हमसे कहा कि आप कॉरिडोर का विरोध मत कीजिए क्योंकि असल में यह योजना विश्वनाथ बाबा को ज्ञानवापी से मुक्त कराने का एक तरीका है।’
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद आगे कहते हैं, ‘कॉरिडोर के नाम पर भारी पाप इस सरकार ने किया है। काशी के इतिहास में कभी इतना बड़ा हमला नहीं हुआ जितना कॉरिडोर की आड़ में इस सरकार ने किया है। औरंगजेब ने तो यहां एक मंदिर तोड़ा था लेकिन कॉरिडोर के लिए सैकड़ों मंदिर और हजारों मूर्तियां तोड़ डाली गई। जो देवता विश्वनाथ मंदिर में मौजूद शिवलिंग में हैं वही देवता उन तमाम शिवलिंगों में भी हैं जिन्हें इन लोगों ने उखाड़ कर फेंक दिया। काशी के इस ऐतिहासिक स्वरूप का जिक्र स्कन्द पुराण के काशीखण्ड तक में मिलता है और इन लोगों उस पौराणिक स्वरूप को बदलने का दुस्साहस किया है।
कॉरिडोर बनने से ज्ञानवापी मस्जिद को कोई खतरा होने की बात पर मस्जिद के प्रवक्ता एसएम यासीन कहते हैं, ‘यहां दो घटनाएं ऐसी हुई जिनसे लगा कि आगे कोई बड़ी अनहोनी हो सकती है। एक तो कॉरिडोर निर्माण के दौरान मस्जिद का एक चबूतरा तोड़ दिया गया था। लेकिन उसी वक्त यह खबर सब जगह फैल गई और वहां भीड़ जमा हो गई तो प्रशासन ने रातों-रात उसे वापस बनवा दिया। दूसरी घटना कुछ लोगों द्वारा मूर्ति स्थापित करने की हुई। ये लोग मस्जिद की दीवार के पास मूर्ति गाड़ने की कोशिश कर रहे थे लेकिन रंगे हाथों पकड़े गए।