(www.arya-tv.com)अमेरिकी वैज्ञानिकों ने खास तरह की चप्पल विकसित की है। यह पानी या मिट्टी में 16 हफ्तों से अधिक रहने पर अपने आप घुल जाएगी। इसका लक्ष्य समुद्र और मिट्टी से प्लास्टिक का कचरा कम करना है। चप्पल को बनाने में पॉलीयूरेथीन फोम का इस्तेमाल किया गया है। इसे समुद्री शैवाल के तेल से तैयार किया गया है।
प्लास्टिक को गलने में हजारों साल लगते हैं
चप्पल को तैयार करने वाली कैलिफोर्निया सैन डिएगो यूनिवर्सिटी के मुताबिक, प्लास्टिक की चप्पलें समुद्र में पहुंचकर जीवों के लिए खतरा बनती हैं। इन्हें गलने में हजारों साल लगते हैं इसलिए हमने ऐसा मैटारियल तैयार किया जो अपने आप इसमें घुल जाता है। इसकी मदद प्लास्टिक और रबर से होने वाला प्रदूषण घटाया जा सकेगा।
भारत में मिले प्लास्टिक कचरे में 25 फीसदी जूते-चप्पल
शोधकर्ताओं के मुताबिक, पिछले 50 सालों में इंसानों ने 6 मिलियन मीट्रिक टन का प्लास्टिक कचरा इकट्ठा किया है। इसमें से केवल 9 फीसदी कचरे को ही रिसायकल किया गया है। 79 फीसदी अभी या तो जमीन के नीचे दबा है या फिर पर्यावरण में मौजूद है। वहीं, 12 फीसदी जलाया गया है।
भारत के कई आइलैंड्स पर चप्पल और जूते मिले हैं। यहां मिलने वाले प्लास्टिक कचरे में से 25 फीसदी जूते-चप्पल थे।
ऐसे उत्पाद को जनता तक पहुंचाने की तैयारी
पॉलीयूरेथीन मैटेरियल को लोगों तक पहुंचाने के लिए कैलिफोर्निया सैन डिएगो यूनिवर्सिटी ने अमेरिकी स्टार्टअप एल्गेनेसिस मैटेरियल के साथ हाथ मिलाया है। इससे तैयार होने वाले जूते-चप्पल लोगों तक जल्द पहुंचने की उम्मीद है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, अभी हम जिस पॉलीयूरेथीन मैटेरियल का इस्तेमाल कर रहे हैं उसमें 50 फीसदी ही बायो कंटेंट है। इसका मतलब है, इसे तैयार करने में 50 फीसदी ही जीवित या मृत जीव का इस्तेमाल किया गया है। शोधकर्ताओं का लक्ष्य इसे 100 फीसदी करने का है।
सस्ती और सॉफ्ट होगी चप्पल
इसे तैयार करने वाले शोधकर्ताओं के मुताबिक, यह प्लास्टिक काफी फ्लेक्सिबल और सस्ता है। यह न तो समुद्र को प्रदूषित करता है और न ही समुद्री जीवों के लिए कोई खतरा पैदा करता है। इसे जूतों के बीच में मिड-सोल के तौर पर भी लगाया जा सकेगा।