(www.arya-tv.com) इस बार चाइनीज नहीं सूरत के धागे, राजकोट के पैंडल व स्टोन, मुम्बई के मोतियों से सजी राखियां भाइयों की कलाई पर सजेंगी। मेड इन इंडिया व मेक इन लखनऊ की तर्ज पर राजधानी के व्यापारियों ने इन्हें महिला कारीगरों से तैयार कर बाजार में उतार दिया है। इनकी खूबसूरती देखते ही बन रही हैं। इनकी कीमत 24 रुपये दर्जन से 300 रुपये दर्जन तक है।
चौपटिया में सिंदोहन देवी मंदिर के नाम से राखी बनाने वाले अनूप वर्मा बताते हैं कि इस बार चीन का कोई उत्पाद राखी बनवाने में प्रयोग नहीं किया गया है। व्यापारी मुकुल वर्मा ने बताया कि कोरोना महामारी के कारण व्यापार पर गहरा असर पड़ा है। उन्होंने बताया कि सूरत से धागा खरीदा, राजकोट से पैंडल और स्टोन खरीदे, मुम्बई और मलाट से मोती लाकर महिला कारीगरों से राखियां बनवाई गईं। नेशनल ट्रेडर्स के फैजी भाई ने बताया कि राखी का थोक मार्केट यहियागंज में लॉकडाउन के चलते अभी भीड़ नहीं है। भूतनाथ, जानकीपुरम, आलमबाग जैसे बाजारों में भी उनकी राखियां गई हैं।
राखी संग मास्क व सैनिटाइजर भी भेज रही बहनें
राजधानी में डाक विभाग की ओर से इस बार राखी पर्व को और भी सुरक्षित व नए अंदाज से मनाने की मिसाल पेश की है। जीपीओ के चीफ पोस्ट मास्टर आरएन यादव ने बताया कि उन्होंने राखी भेजने के लिये वाटर प्रूफ लिफाफे बनाए हैं। यह इतने बड़े हैं कि इसमें बहनों को अपने भाइयों को कोरोना से सावधानी बरतने के लिये मास्क व सैनिटाइजर रखने का विकल्प भी मिल रहा है। इस पैकेज में उन्होंने भाइयों की सलामती के लिये आयुर्वेदिक गिलोय की गोलियों को भी जोड़ दिया है। जीपीओ समेत अन्य बड़े डाकघरों में राखी भेजने के लिये अलग काउंटर बनाए व अलग बाक्स रखे गये हैं। अलग से बस्ते में रखकर डाकिये इनको पहुंचाने का काम कर रहे हैं।
समूह के माध्यम से त्योहारों में रोजगार से जोड़ा
सरोजनी नगर ब्लॉक स्थित कल्ली पश्चिम गांव में रहने वाली नारी शक्ति आवाह्न स्वयं सहायता समूह एवं नारी शक्ति उत्थान समूह की 20 महिलाओं ने कोरोना महामारी में मिलकर कुछ नया करने की सोची। राखियां बनाना शुरू किया। आवाहन द न्यू वॉइस और एचसीएल फाउंडेशन के सहयोग से कच्चा मॉल उपलब्ध हुआ। निर्मित सामानों की बिक्री सुनिश्चित की। इन महिलाओं ने मिलकर अब तक 2000 से ज्यादा राखियां बना कर लगभग 20 हजार रूपये कमाए। इनका लक्ष्य सामूहिक रूप से पांच हजार राखियां बनाकर बेचने का है।