प्रतिकूलता का अनुपात मानसिक स्वास्थ्य पर नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है

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  • प्रतिकूलता का अनुपात मानसिक स्वास्थ्य पर नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है
  • लॉकडाउन के बाद भी प्रतिकूलता के अनुपात को समायोजित करना अत्यंत आवश्यक है। बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या ने नियत समय पर दवाईयां न लेने की समस्या पर प्रकाश डाला है

(www.arya-tv.com)जून। लॉकडाउन के दौरान अवसाद और आत्महत्या के मामलों में वृद्धी देखी गई है। लेकिन जैसा कि अनलॉकिंग शुरू हो गई है, तो यह बहुत आवश्यक है कि कोविड-19 के संक्रमण के इस दौर में अनलॉकिंग के विभिन्न चरणों के दौरान शारीरिक और मानसिक रूप से कैसे अनुकूलित हुआ जाए, तनाव का प्रबंधन कैसे करें, लॉकडाउन के पूरी तरह समाप्त होने के पश्चात जीवन को किस तरह से नए रूप में सामान्य बनाया जाए, इस पर जागरूकता फैलाना जरूरी है। इसके साथ ही अपने प्रतिकूलता के अनुपात को कैसे बढ़ाया जाए, ताकि लॉकडाउन का दौर समाप्त होने के बाद भी अवसाद, और उसके चलते होने वाले आत्महत्या के मामलों से बचा जा सके। यही कुछ ज्वलंत मुद्दे हैं, जिनको हील – तुम्हारा सम्वाद के दौरान संबोधित किया गया।

  • कोई व्यक्ति कैसे प्रतिक्रिया देता है या व्यवहार करता है, जब उसे जीवन में विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है

हील – तुम्हारा सम्वाद को संबोधित करते हुए और प्रतिकूलता के अनुपात के महत्व पर प्रतिक्रिया देते हुए इंस्टीट्यूट ऑफ बिहेवियर एंड अलाइड साइंसेज़ के निदेशक डॉ. निमेश जी. देसाई ने कहा कि एडवर्सिटी क्वाशेंट (एक्यु) यानि प्रतिकूलता का अनुपात यह देखने का एक उपाय है कि कोई व्यक्ति कैसे प्रतिक्रिया देता है या व्यवहार करता है, जब उसे जीवन में विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। इसलिए हमें मजबूत, स्मार्ट और भावनात्मक रूप से लचीला होने की आवश्यकता पर ध्यान देने की आवश्यकता है। आत्महत्या और अवसाद के मामलों को कम करने के लिए लॉकडाउन के बाद भी एक मजबूत प्रतिकूलता अनुपात की आवश्यकता होगी। हम अवसादग्रस्त व्यक्ति को भावनात्मक संबल देकर आत्महत्या करने से बचा सकते हैं। अगर हमारा एक्यु मजबूत है तो हम तनाव के स्तर का भी बेहतर तरीके से प्रबंधन कर सकते हैं।

  • बहुत सारे मनोरोगियों में यह प्रवृत्ति देखी है, जो अपनी निर्धारित दवाओं को लेना बंद कर देते हैं

 हो सकता है सुशांत सिंह राजपूत के मामले में यह सौ प्रतिशत सही न हो लेकिन जहां तक नियत समय पर अपनी दवाईयां लेने की बात है, आमतौर पर, हमने बहुत सारे मनोरोगियों में यह प्रवृत्ति देखी है, जो अपनी निर्धारित दवाओं को लेना बंद कर देते हैं। विशेषज्ञों और डॉक्टरों द्वारा दी गई दवाईयां निर्धारित समय और अवधि तक न लेने के परिणामस्वरूप मानसिक स्वास्थ्य का प्रबंधन ठीक प्रकार से नहीं हो पाता, जो आत्महत्या की प्रवृत्तियों का कारण बन सकता है।

महामारी के डर को कम करने और स्वच्छता की आदत को दिनचर्या का हिस्सा बनाने,स्वस्थ शरीर और मस्तिष्क के लिए भोजन का महत्व, लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी घर से बाहर निकलने के दौरान क्या-क्या सावधानियां रखी जाएं और अपने जीवन को सामान्य बनाने के लिए कौन-कौनसे प्रयास किए जाएं जैसे मुद्दों को भी विशेषज्ञों द्वारा विस्तारपूर्वक संबोधित किया गया।

  • स्वस्थ रहने का असली मंत्र

स्वस्थ शरीर और मस्तिष्क के लिए सही प्रकार के भोजन के महत्व पर विचार व्यक्त करते हुए, मैक्स मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल की कंसल्टेंट न्युट्रीशनिस्ट सुश्री मंजरी चंद्रा ने कहा कि हालांकि, कोविड-19 का डर अभी भी काफी बड़ा है, फिर भी घबराने की जरूरत नहीं है, बल्कि सतर्क रहें और उचित भोजन का सेवन करें, जिसमें स्वदेशी खाद्य पदार्थ अधिक मात्रा में हों। स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं, नियमित रूप से व्यायाम करें और घर पर पके हुए खाद्य पदार्थों का सेवन करने पर ध्यानकेंद्रित करना ही स्वस्थ रहने की कुंजी है। हमें थोड़े-थोड़े समय/नियमित अंतराल पर उपवास रखने चाहिए, जिसका पालन भारतीय लोग अनंतकाल से करते आ रहे हैं और हमारे यहां घर पर ही साफ-सफाई से खाना बनाने की प्राचीन परंपरा रही है। यही हमेशा स्वस्थ रहने का असली मंत्र है।

  • सम्वाद (संवाद), शिक्षा का एक माध्यम है, जो लोगों को व्यापक रूप से संदेशों को सीखने और उनका प्रसार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता

महाभारत में वर्णित भागवत गीता से अर्जुन और भगवान श्रीकृष्ण के मध्य सम्वाद (संवाद) का उल्लेख करते हुए तथा इसके महत्व के बारे में जानकारी देते हुए, आईसीसीआईडीडी के अध्यक्ष और पूर्व विभाध्यक्ष, सामुदायिक चिकित्सा एम्स डॉ. सी.एस. पांडव ने कहा कि सम्वाद (संवाद), शिक्षा का एक माध्यम है, जो लोगों को व्यापक रूप से संदेशों को सीखने और उनका प्रसार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कोविड-19 महामारी के बारे में अत्यधिक गलत जानकारियां फैलाई जा रही हैं। अब हम भय की महामारी, दुःख की महामारी और प्रवासियों की महामारी में प्रवेश कर रहे हैं। शारीरिक प्रतिरक्षा बढ़ाने के साथ हमें इस महामारी का सामना करने और इससे लड़ने के लिए अपनी सामाजिक और आर्थिक प्रतिरक्षा में सुधार करना होगा और हमें अपने स्वास्थ्यकर्मियों – डॉक्टरों, नर्सों और पुलिसकर्मियों को सम्मान देना चाहिए, जो इस महामारी से लोगों को बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर अपना कर्तव्य निभा रहे हैं।

हील – तुम्हारा सम्वाद– हमारे समाज में उपजे स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर संवाद की एक पाक्षिक श्रृंखला है, जिसका आयोजन ‘स्वास्थ्य सेवा का समर्थक’ समूह – हील फाउंडेशन द्वारा आईसीसीआईडीडी और कंसोर्टियम ऑफ पब्लिक हेल्थ इम्पैक्ट पार्टनर्स (सीपीएचआईपी)के सहयोग किया जा रहा है। इसका पहला / उद्घाटन एपिसोड 18 जून 2020 को आयोजित किया गया।

  • हील फाउंडेशन के बारे में

हील फाउंडेशन एक गैर लाभकारी संगठन और एक ‘स्वास्थ्य सेवा का समर्थक’समूह है जो अपनी प्रमुख पहल कोविड फायटर्स के तहत लगन से काम कर रहा है – कोविड-19 महामारी से लड़ने के लिए समर्पित है, जैसे कि, कोरोना वायरस के प्रकोप के बाद से, इसकी विभिन्न श्रृंखलाओं का आयोजन वेबिनार और अन्य संबद्ध गतिविधियों के माध्यम से किया जा रहा है। इसने हाल ही में हील-तुम्हारा सम्वाद नाम की एक श्रृंखला शुरू की है, जिसका आयोजन महीने के पहले और तीसरे गुरूवार कोकिया जाएगा। हील फाउंडेशन के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारी वेबसाइट : www.healfoundation.in,पर जाएं और कोविड-19 पर इसके समर्पित कार्यक्रमों के बारे में@ www.covidfighters.in. स जनकरी प्राप्त करें।

  • आईसीसीआईडीडी के बारे में:

आयोडीन की कमी के विकार के नियंत्रण के लिए भारतीय गठबंधन के लिए संगठन (आईसीसीआईडीडी) की स्थापना 1997 में की गई। इसकी स्थापना आयोडीन की कमी के विकारों और अन्य माइक्रोन्युट्रिएंट्स, पोषण और स्वास्थ्य सेवा, वितरण, पर्यावरण और विकास की समस्याओं पर शोध करने और समाधान सुझाने के लिए की गई थी।