मिशन 2019: चुनावी घमासान के बीच अमित शाह-नीतीश की मुलाकात में अहम रहेगा ‘बड़े भाई’ का मुद्दा

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(Arya-tv.Lucknow)Kaushal
चुनावी घमासान के बीच भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के बीच 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे को लेकर कवायद शुरु हो गई है और अब सबकी नजरें बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और बिहार के सीएम नीतीश कुमार की बैठक पर सबकी नजरे टिकी हैं. हालांकि नीतीश कुमार ने दोनों दलों के बीच बेहतर रिश्तों का दावा किया है, लेकिन जेडीयू चाहता है कि सीटों के तालमेल को लेकर बीजेपी का रुख अमित शाह और नीतीश कुमार के बीच होने वाली आज की बैठक में ही साफ हो जायेगा की आगे की क्या रणनीति क्या होगी.और अब आगामी लोकसभा चुनाव में करीब 8 महीने बचे हैं लेकिन एनडीए के सभी घटक दलों ने बीजेपी पर सीटों के बंटवारे को लेकर दबाव बनाना शुरु कर दिया है. बीजेपी के रणनीतिकार चाहते हैं कि सीटों का बंटवारा 2014 लोकसभा चुनाव के अनुसार हो तो पार्टी के लिए उचित साबित हो सकता है ,

जिसमें बीजेपी को बिहार से 22 सीटों पर जीत मिली थी. रामविलास पासवान की लोजपा और उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा के साथ मिलकर गठबंधन में बीजेपी कुल 40 में से 30 सीटों पर चुनाव लड़ी थी.इस बार भी बीजेपी करीब 22 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है और ‘बड़े भाई’ की भूमिका चाहती है. लेकिन दूसरी तरफ जेडीयू 2015 लोकसभा चुनावों का हवाला देकर ‘बड़े भाई’ की भूमिका चाहती है. बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में इन 40 सीटों में से एनडीए को कुल 31 सीटों पर जीत हासिल हुई.एनडीए की 31 सीटों में बीजेपी ने 22, लोजपा ने 6 और रालोसपा ने 3 सीटों पर कब्जा जमाया था. तब जेडीयू अकेले चुनावी समर में उतरी थी तो चालीस सीटों में से दो सीटों पर ही जीत मिली थी. लेकिन जेडीयू का मानना है कि बुरे हालात में भी उसे 16-17 फीसदी वोट हासिल हुए.

सूत्रों की मानें तो जेडीयू चाहता है कि दोनो पार्टियां बराबर-बराबर लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़े. बाकी की सीटें एलजेपी और आरएलएसपी को दे दी जाएं. जेडीयू इसके अलावा यूपी और झारखंड में भी कुछ सीटें चाहती है. सियासी गलियारों में जेडीयू के आरजेडी और कांग्रेस नेताओं के साथ बातचीत की खबरें भी सुर्खियों में हैं. सियासत के जानकार इसे जेडीयू की प्रेशर पालिटिक्स का हिस्सा मान रहे हैं.
2014 से 2018 तक देश की सियासत में काफी बदलाव आ चुका है. विपक्षी दलों को बीजेपी के विधानसभा चुनावों में बढ़ते प्रभाव से अपने वजूद बचाने की चिंता सताने लगी है,
तो एनडीए के सहयोगी दलों पिछले 4 सालों में बीजेपी के साथ अपने खट्टे-मीठे अनुभवों के मद्देनजर अपने फैसलों पर पुनर्विचार करने में लगे हुए हैं.
लोकसभा चुनावों से पहले एनडीए में शामिल बीजेपी के कई सहयोगी एक-एक कर साथ छोड़ने लगे हैं. टीडीपी,जीतन राम मांझी की हम और पीडीपी एनडीए से बाहर निकल चुकी हैं. वहीं, शिवसेना ने 2019 में अलग चुनाव लड़ने का ऐलान कर एनडीए की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. अकाली दल ने भी राज्यसभा के उपसभापति पद पर दावेदारी ठोक कर बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी है. सहयोगियों को एकजुट रखना बीजेपी की सियासी मजबूरी है. ऐसे में बीजेपी और एनडीए के दूसरे घटक दलों की ही नहीं बल्कि देश के अन्य राजनैतिक दलों की नजर भी आज होने वाली अमित शाह और नीतीश कुमार की बैठक पर टिक गई है.