ग्रामीण भारत हुआ बदलाव

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तीव्र गति से कृषि और ग्रामीण रोजगार विकास हमेशा से देश के नीति निर्माताओ के केंद्र में रहे हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भारत की परिकल्पना स्वायत्त आत्मनिर्भर गांवो के लोकतंत्र के रूप में की थी। भूमि, ग्रामीण अस्तित्व और कृषि ढांचा भारत के विकास के सबसे महत्वपूर्ण निर्धारक हैं। जमीन का असमान वितरण खेती के पिछड़ेपन के लिए जिम्मेदार था। ग्रामीण भारत में जमीन के महत्वपूर्ण आय का साधन होने को देखते हुए ग्रामीण जनसंख्या की समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए खेती के अधिकार ढांचे में बदलाव आवश्यक था। इसलिए देश की नीति, राज्य सरकार द्वारा भूमि सुधार कानूनो को बनाने और इनका क्रियान्यवन करने पर केंद्रित हुई। इनमें भूमि की अधिकतम सीमा, काश्तकारी और भूमि राजस्व अधिनियम और खेतीहर नीति में भूमि को विस्तृत रूप में सम्मिलित करना था। अधिक कृषि योग्य सरकारी भूमि निर्धनो और जरूरतमंद खेतीहरो को आजीविका के लिए वितरित की गई। इन नीतियो की परिकल्पना कृषि विकास को प्रोत्साहन देने और ग्रामीण निर्धनता को समाप्त करने के लिए की गई सामाजिक बैंकिग नीति के रूप में ग्रामीण क्षेत्रो में बैंको की शाखाओ का तेजी से विस्तार, कृषि और इससे जुडे कागर्यों के लिए लिए बैंक ऋण का विस्तार, प्राथमिक आधार पर ऋण देने और ब्याज दरो की शुरूआत की ई। ग्रामीण क्षेत्रो में बैंको की शाखाओ के विस्तार ने ग्रामीण निर्धनता में कमी लाने और गैर-कृषि वृद्धि के विस्तार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। हालांकि समय बीतने के साथ राज्यो में विकास के स्तर में अतंर महसूस होने लगा। समृद्ध और तेजी से प्रगति कर रहे राज्य जहां ग्रामीण निर्धनता में कमी लाने में सफलता रहे, वहीं निर्धन राज्यो में विकास दर अस्थिर रही। तेजी से विकास कर रहे राज्यो ने जहां जमीन के पट्टो को निवेश,उत्पादन और वृद्धि के लिए प्रयोग करने हेतु एकीकरण कानून बनाए, वहीं निर्धन राज्यो में छोटे और मझौले किसानो की खेती से दूरी और इसके बाद उनके भूमिहीन कृषि मजदूर बनने ने उन्हें बाजार की अनिश्चितता पर पूरी तरह से निर्भर कर दिया। वर्षा पर आधारित खेती वाले क्षेत्रो में बड़े स्तर पर श्रमिको का पलायन देखा गया है। समृद्ध राज्यो ने निर्धन राज्यो के मुकाबले अधिक निवेश और आधारभूत ढांचे का विकास किया। राज्यो ने ग्रामीण क्षेत्रो के लिए कई कल्याणकारी कार्यक्रमो का क्रियान्वयन किया। इनमें रेगिस्तान विकास कार्यक्रम, सूखाग्रस्त विकास क्षेत्र कार्यक्रम और कृषि विकास कार्यक्रम शामिल हैं। इन कार्यक्रमों को विकेंद्रीकृत भागीदारी विकास मॉडल पर लागू किया गया। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य विस्तृत कृषि क्षेत्र का विकास चैक डैम और चारागाहो का निर्माण कर और पशु पालन गतिविधियो का विकास करना था।फरवरी, 2016 में प्रारम्भ किए गए राष्ट्रीय रूर्बन मिशन के अंर्तगत प्रत्येक गांववासी को शहरी जीवन का अनुभव दिलाने और उन्हें शहरी सुविधाओं का लाभ दिलाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। भारतीय किसान हमेशा से ऋण की उचित दरो और समय पर मिलने के प्रति चितिंत रहे है। इस दिशा में उठाए गए प्रमुख कदमों का उद्देश्य वित्तीय रूप से सबको शामिल करना था। प्रधानमंत्री जनधन योजना वित्तीय सेवाओं तक सबकी पहुंच सुनिश्चित करने के राष्ट्रीय मिशन को दर्शाती है। जनधन योजना ने बैकों में वंचित जनसंख्या तक ऋण सुविधा पहुंचाने संबंधी आवश्यक आत्मविश्वास जगाया है। जिसके फलस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रो में दिए जाने वाले ऋण में महत्वपूर्ण वृद्धि प्रदर्शित हुई है। जिससे किसानों को महत्वपूर्ण जानकारी मिल सकेगी।