वाराणसी।(www.arya-tv.com) सनातन धर्म में वैशाख शुक्ल तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया कहते हैं। इस दिन स्नान-दान व व्रत का विशेष महत्व होता है। तृतीया तिथि 25 अप्रैल को सुबह 10.28 बजे लग रही है, जो 26 अप्रैल को सुबह 11.12 बजे तक रहेगी। प्रदोष में तृतीया मिलने से 25 अप्रैल को परशुराम जयंती मनाई जाएगी और उदया तिथि अनुसार अक्षय तृतीया का पर्व विधान 26 अप्रैल को मनाया जाएगा।
ख्यात ज्योतिषाचार्य पं ऋषि द्विवेदी के अनुसार अक्षय पुण्य कामना से स्नान-दान, पूजन-विधान पूरे दिन किए जा सकेंगे तो इसी दिन वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी भी मनाई जाएगी।
धर्मशास्त्रों में अक्षय तृतीया सनातन धर्मियों का प्रधान पर्व बताया गया है। इस दिन स्नान, दान, होम-जप आदि समस्त कर्मों का फल अक्षय होता है। इसके चलते ही इस व्रत को अक्षय कहा गया। किसी भी क्षेत्र में सफलता की आशा से व्रत के अतिरिक्त दान में जलकुंभ, शर्करा समेत व्यंजन आदि पुरोहित या पात्र जरूरतमंद को देना चाहिए।
वर्तमान में लोक मान्यता के अनुसार इस तिथि पर स्वर्ण व चांदी के आभूषण खरीदने का प्रचलन बढ़ा है। कहा जाता है कि इस दिन कोई शुभ कार्य, दान के साथ स्वर्णादि खरीदने पर वह भी अक्षय हो जाता है।
वैशाख शुक्ल तृतीया को नर नारायण परशुराम व हयग्रीव अवतरित हुए थे। ऐसे में इस तिथि को उनकी जयंती मनाई जाती है। इस दिन ही त्रेता युग का भी आरंभ हुआ। वहीं उत्तराखंड के अधिष्ठाता बद्रीनाथ का ग्रीष्मकालीन पट इसी दिन खुलता है। काशी में गंगा स्नान के साथ त्रिलोचन महादेव की यात्रा, पूजन-वंदन का विशेष महत्व है।
अक्षय तृतीया तिथि विशेष पर किसी भी शुभ कार्य को किया जा सकता है। कई च्योतिषाचार्य आगामी वर्ष की तेजी व मंदी जानने के लिए भी इस तिथि का उपयोग करते हैं।
पूजन विधान
तिथि विशेष पर व्रतियों को स्नानादि कर हाथ में जल अक्षत लेकर श्रीहरि के पित्यर्थ संकल्प लेना चाहिए। भगवान का यथा विधि पंचोपचार पूजन कर पंचामृत से स्नान कराकर सुगंधित फूल-माला अर्पित करना चाहिए। नैवेद्य में नर नारायण के निमित्त सेंके हुए जौ व गेहूं का सत्तू, परशुराम के निमित्त कोमल ककड़ी व हयग्रीव के निमित्त भीगे चने की दाल अर्पित कर उपवास-व्रत आरंभ करना चाहिए।
शास्त्रों में मानस पूजा का विधान बताते हुए इसे प्रमुखता भी दी गई है। कोरोना संकट और लॉकडाउन को देखते हुए जल तीर्थों का स्मरण करते हुए घरों में ही स्नान व पूजन करें। जरूरतमंदों को अन्न, सत्तू, शीतल जल का पात्र आदि दान करें।