(AryaTvWebDesk:lucknow): journlist Pratima
उत्तर भारत के एक शहर में अक्सर ये सुनते हुए मैं बड़ा हुआ हूँ. आप में से कई लोगों ने भी अपने घर या दफ़्तर में किसी परिचित के बेटे या बेटी के रूस जाकर पढ़ाई करने के बारे में ज़रूर सुना होगा. खासतौर से मेडिसिन की पढ़ाई कर डॉक्टर बनने वालों के बारे में.
लेकिन क्या आप जानते हैं पिछले कुछ सालों में ये सिलसिला धीमा पड़ता गया है. मुझे भी इसी बात को समझने की जल्दी थी और मॉस्को पहुँच सबसे पहले इसी में लगा. क्योंकि रूस के इस हिस्से में इन दिनों रात का अँधेरा साढ़े ग्यारह के पहले नहीं होता इसलिए शाम छह बजे भी चहल-पहल थी!
भारतीय छात्र रूस में
उन्होंने बताया, “यहाँ सबसे बड़ी बात है कि ख़ुद से अपना ख़याल रखना है, अपनी सेफ़्टी का. यहाँ फ़ैमिली नहीं है, पेरेंट्स नहीं हैं और हमारा खुद का घर नहीं है. अपने-आप रहना है, ख़ुद से डील करना है कि किससे क्या बात करनी है, कहाँ जाना है. डिश वाश करनी है, खाना ख़ुद बनाना है. ओके, सब कुछ है तो बहुत अच्छा, लेकिन ये दुनिया के सबसे बड़े देश का कैपिटल है तो इट कैन नॉट बी 100% सेफ़”.
पढ़ाई का ख़र्च
कमरे में दो छात्र रहते हैं, कॉमन एरिया में पैंट्री में खाना बनाने और वॉशिंग मशीन की सुविधा भी है.
महीने का किराया 12,000 से लेकर 15,000 रुपए तक का आता है.
जबकि मेडिकल की साएक लाना फ़ीस दो लाख रुपए से लेकर चार लाख तक की हो सकती है.
रूस में 50 से ज़्यादा मेडिकल कॉलेज हैं और अगर मॉस्को में पढ़ना महंगा है तो कुर्स्क या त्वेर जैसे शहरों में पूरा ख़र्च कम आता है!
2017 में ‘स्मोलेंस्क स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी’ के 100 से भी ज़्यादा भारतीय छात्रों को एक साल पढ़ाई कर भारत वापस लौटना पड़ा था क्योंकि उनके मुताबिक़ “उन्हें नहीं बताया गया था कि पूरे छह साल रूसी भाषा में ही पढ़ना पड़ेगा.”