निर्भया के दोषी मुकेश की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने विचार करने से किया मना, अब फांसी होनी तय

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निर्भया मामले में मौत की सजा पाए चार दरिंदों में से एक मुकेश कुमार सिंह की फांसी अब तय है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने उसकी याचिका पर कोई भी समीक्षा करने, या कोई भी विचार करने से मना कर दिया है। अदालत ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि उन्हें राष्ट्रपति के फैसले में दखल देने की जरूरत है। इस तरह से अब निर्भया के एक दोषी मुकेश के सभी कानूनी विकल्प खत्म हो चुके हैं और अब उसकी फांसी होना तय है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि उन्हें राष्ट्रपति के फैसले में कोई जल्दबाजी नजर नहीं आती। उन्होंने सभी दस्तावेज देखकर ही फैसला दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि जेल में मुकेश के साथ खराब व्यवहार हुआ यह उसकी दया का आधार नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि दया याचिका पर शीघ्र कार्रवाई करने का मतलब ये नहीं है कि अच्छे से फैसला नहीं लिया गया है।

बता दें कि मुकेश की वकील ने कहा था दया याचिका को जल्द खारिज करने की वजह से उस पर ठीक से गौर नहीं किया गया है। इसके साथ ही मुकेश के सभी कानूनी विकल्प खत्म हो गए हैं।

दिल्ली में दिसंबर 2012 में हुए इस जघन्य अपराध के लिये चार मुजरिमों को अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी। इन दोषियों में से एक मुकेश की दया याचिका राष्ट्रपति ने 17 जनवरी को खारिज कर दी थी।
फांसी से 3 दिन पहले सुप्रीम कोर्ट पहुंचा निर्भया का गुनहगार अक्षय
निर्भया कांड के दोषी मौत की सजा में देरी के लिए रोज नए-नए हथकंडे अपना रहे हैं। फांसी की तारीख (एक फरवरी) से तीन दिन पहले एक और दोषी ने सुप्रीम कोर्ट में सुधारात्मक याचिका दायर की है।

तिहाड़ जेल अधिकारियों ने बताया कि अक्षय कुमार सिंह ने मंगलवार को याचिका दाखिल की। इस मामले में मुकेश और विनय की सुधारात्मक याचिका पहले ही खारिज हो चुकी है।

मुकेश की दया याचिका भी राष्ट्रपति खारिज कर चुके हैं। अक्षय के वकील एपी सिंह ने बताया कि इस क्यूरेटिव याचिका में हमने सभी नए तथ्य डाले हैं और उसी के आधार पर हमें सकारात्मक फैसले की उम्मीद है।
कल अदालत में मुकेश की वकील ने तिहाड़ में लगाए थे ये आरोप
अदालत में क्या-क्या हुआ…
केस की जिरह शुरू करते ही मुकेश की वकील अंजना प्रकाश ने कहा कि अदालत न्यायिक विवेक का इस्तेमाल करते हुए देखे क्या इस केस में उचित रूप से फैसला लिया गया है। मुकेश की वकील ने अदालत के सामने केहर सिंह बनाम भारत सरकार (1989) 1 एससीसी 204 का उदाहरण देते हुए कहा, यहां तक कि राष्ट्रपति की शक्ति भी मानवीय भूल के लिए खुली है।
मुकेश की वकील ने ये भी कहा कि यहां तक कि सबसे ज्यादा प्रशिक्षित लोग भी गलतियां कर सकते हैं। जब बात मौत और निजी स्वतंत्रता की हो तो इसे और ऊंची सत्ता के हाथ में सौंपना चाहिए। इस दौरान उन्होंने शत्रुघ्न चौहान केस का भी जिक्र किया।
माफी पाना कोई निजी कार्य नहीं है बल्कि यह संवैधानिक प्रणाली का हिस्सा है। राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका कबूल किया जाना एक महान संवैधानिक दायित्व है, जिसे लोगों की भलाई को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।
वरिष्ठ वकील प्रकाश ने आगे कहा कि इस मामले में एकांत कारावास के नियमों का उल्लंघन किया गया। दया याचिका खारिज होने के बाद ही एकांतवास हो सकता है। जबकि जेल की कई यात्राओं से पता चला है कि इस मामले में ऐसा नहीं है।
मुकेश की वकील अंजना ने आगे कहा कि जो भी सामग्री गृहमंत्री को भेजी जाने वाली हो उसे एक बार में भेजा जाना चाहिए। देरी से बचने के लिए इसका सख्ती से पालन होना चाहिए। जबकि इस केस में दोषियों को देर से कानूनी सहायता दी गई।
इसके बाद मुकेश की वकील ने मुकेश की गवाही को पढ़कर अदालत में सुनाया, जिसमें कहा गया है कि राम सिंह और अक्षय ठाकुर का डीएनए ही निर्भया के ऊपर से पाया गया है। इस पर जस्टिस भूषण ने कहा, लेकिन आपने कहा था कि आप केस के महत्व में नहीं जाएंगी।
तब मुकेश की वकील ने कहा कि मैं नहीं जा रही हूं… यह तो उस संदर्भ में है कि क्या राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका के साथ ये दस्तावेज पेश किए गए थे।
मुकेश की वकील ने आगे कहा कि वो सभी दस्तावेज जरूरी थे। सिर्फ केस डायरी ही पढ़ ली जाए तो वह दिखाती है कि उसमें किसी और का नाम था मुकेश का नहीं। उन्होंने कहा कि विवाद इस बात का है कि सत्र न्यायालय का फैसला राष्ट्रपति के सामने पेश नहीं किया गया। इस पर सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि सभी फैसले राष्ट्रपति के पास भेजे गए थे।
वकील की जिरह पर जस्टिस भानुमति ने उनसे पूछा कि क्या ये आपका केस है कि संबंधित दस्तावेज राष्ट्रपति के सामने नहीं रखे गए। इस पर मुकेश की वकील ने कहा कि, हां। हमारे रिकॉर्ड में ये है। हमने आरटीआई के जरिए पता लगाया है कि सत्र न्यायालय के फैसले राष्ट्रपति के समक्ष नहीं रखे गए। अदालत ने केस की सुनवाई लंच तक रोक दी गई।
भोजनावकाश के बाद जब सुनवाई दोबारा शुरू हुई तो मुकेश की वकील अंजना प्रकाश ने कहा कि राष्ट्रपति के समक्ष सभी दस्तावेज नहीं रखे गए। दया याचिका जरूरी दस्तावेज देखे बिना ही खारिज कर दी गई।
इस संबंध में जेल सुपरिटेंडेंट की सिफारिशें भी राष्ट्रपति के सामने नहीं रखी गईं।
इस पर जस्टिस बोपन्ना ने शत्रुघ्न केस के फैसले का जिक्र करते हुए कहा, लेकिन क्या यह जेल अधीक्षक की राय नहीं है, यदि कोई है? इस पर मुकेश की वकील ने कहा कि जेल अधीक्षक ने कोई राय नहीं दी थी। साथ ही यह भी बताया कि कैदी का जेल में यौन शोषण भी हुआ।
मुकेश की वकील ने उसकी तरफ से कहा कि अदालत ने मुझे मौत की सजा दी थी… पर क्या मेरा रेप होने की भी सजा दी थी?
वकील ने अदालत को बताया कि जेल में जब सब देख रहे थे तब मुकेश का अपमान किया गया। उसे पहले दिन से ही बुरी तरह पीटा गया। अक्षय के साथ सबके सामने शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर किया गया। इस दौरान जेल प्रशासन सारी चीजें सिर्फ देखता रहा।
मुकेश के वकील उसकी तरफ से आगे कहा कि उसके एक सह कैदी की हत्या कर दी गई। मैं पिछले पांच साल से सो नहीं पाया हूं। जब मैं सोने की कोशिश करता हूं तो मुझे मरने और पीटे जाने के सपने आते हैं।
मुकेश की वकील ने कोर्ट में कहा कि निर्भया केस में आरोपी राम सिंह की जेल में हत्या हुई थी, लेकिन इसे आत्महत्या के केस के रूप में बंद कर दिया गया।
अंजना ने सुप्रीम कोर्ट में ये भी जानकारी दी कि कैसे मुकेश ने राम सिंह की मौत का प्रश्न उठाया था। उसे किसने मारा मुकेश इस बारे में जानता है। वकील ने कोर्ट को बताया कि मुकेश को क्यूरेटिव पिटीशन के बाद से ही एकांत कारावास में रखा है। इस पर जस्टिस भानुमति बोलीं कि मुकेश को एकांत कारावास में नहीं रखा जाना चाहिए था।
अंजना प्रकाश की दलीलों के बाद वरिष्ठ वकील रीबेका जॉन अब मुकेश के लिए दलीलें दे रही हैं। उन्होंने बताया कि जेल प्रशासन ने इस बात की पुष्टि की है कि मुकेश अपने सेल में अकेला ही था। उन्होंने आगे कहा कि राष्ट्रपति ने कुछ घंटो के अंदर ही दया याचिका खारिज कर दी। आखिर वो क्या आधार थे जिन पर गृहमंत्रालय ने दया याचिका खारिज करने की सिफारिश की… आखिर ऐसे कौन से सबूत थे?
इसके बाद वकील अंजना ने कहा कि अब कहा जाएगा कि यह फांसी लटकाने की तरकीब है। आश्वस्त हो जाइए कि ये कोई डिले टैक्टिक नहीं है। हमने पांच आरटीआई राष्ट्रपति, गृहमंत्रालय, दिल्ली सरकार आदि को डाले। सिर्फ तिहाड़ ने हमें दस्तावेज दिए जो हम अदालत में जमा कर रहे हैं।
इसके बाद सॉलिसीटर जनरल(एसजी) ने अपनी दलीलें देनी शुरू कीं। उन्होंने कहा कि यह आश्चर्य वाली बात है कि यहां जीवन की पवित्रता की बात उठाई जा रही है। राष्ट्रपति को सिर्फ खुद को संतुष्ट करना होता है कि माफी देनी है कि नहीं नाकि हर एक क्रिया पर ध्यान देना। इस न्यायालय का अधिकार क्षेत्र बहुत सीमित है। इसके बाद एसजी ने कोर्ट में एफिडेविट दिया कि राष्ट्रपति के पास कौन-कौन से रिकॉर्ड भेजे गए हैं।
एसजी ने कहा बताया कि यह एफिडेविट आज ही दोपहर 12 बजे मिला है, इसलिए इसे आज कोर्ट में पेश किया गया है। जब दया याचिका फाइल की गई थी तो उसे तुरंत क्रियांवित कर नियमों के हिसाब से राष्ट्रपति को भेज दिया गया। उन्होंने आगे कहा कि जिस आरटीआई के बारे में बात की जा रही है उसमें सिर्फ उन रिकॉर्ड की बात है जो जेल प्रशासन ने दी थी। इसमें उस रिकॉर्ड की बात नहीं है जो गृहमंत्रालय ने राष्ट्रपति को भेजा था।
एसजी ने मुकेश द्वारा लगाए गए यौन शोषण के आरोप पर कहा कि उसका यौन शोषण हुआ या फिर जेल में उसके साथ बुरा बर्ताव हुआ यह बात दया पाने के लिए कोई वजह नहीं हो सकती। अगर जेल में बुरा बर्ताव हुआ है तो उसका मामला अलग फोरम पर उठाया जा सकता है।
एसजी ने कहा कि अगर यह मान भी लिया जाए कि दोषी के साथ जेल में बुरा बर्ताव हुआ था तो यह दया पाने का आधार नहीं हो सकता। एसजी ने निर्भया गैंगरेप की भयावह डिटेल दी। यह कोई लक्जरी क्षेत्राधिकार नहीं है कि हालांकि मैं इस जघन्य अपराध का दोषी हूं, क्योंकि मेरे साथ बुरा व्यवहार किया गया था, मुझे दया दी जानी चाहिए।
वहीं एकांत कारावास पर एसजी ने दलील दी कि मुकेश को मल्टीपल रूम वार्ड के सिंगल रूम में रखा गया था जहां वह अन्य कैदियों के साथ घुल मिल सकता था और उसे जेल के नियमों के हिसाब से ही ट्रीट किया जा रहा था।
एसजी ने बताया कि मुकेश दिन में यार्ड में अन्य कैदियों के साथ ही रहता था और सिर्फ रात में अपने सेल में जाता था। यह भी सिर्फ कुछ दिनों के लिए ही किया गया था वो भी सुरक्षा कारणों की वजह से।
एसजी ने दया याचिका के त्वरित खारिज होने पर बोलते हुए कहा कि, आप नहीं कह सकते कि त्वरित एक्शन लिया गया इसलिए आप फैसले को चैलेंज कर सकते हैं। ऐसे केस में जब दोषी फांसी का सोचकर हर रोज मर रहा हो तो सभी कार्रवाई जल्दी होनी चाहिए।
एसजी ने ये भी बताया कि यह राष्ट्रपति का अपना अधिकार है कि वह जैसे मामले को देख सकते हैं। एसजी ने ये भी कहा कि जेल राष्ट्रपति को कभी यह सलाह नहीं देता कि कैदी दया पाने का अधिकारी है या नहीं। राय उस वक्त दी जा सकती है जब कैदी की मानसिक स्थिति ठीक न हो और स्वास्थ्य अधिकारी कहे कि उसे फांसी पर नहीं लटकाया जा सकता। स्वास्थ्य अधिकारी भी सिर्फ अपनी रिपोर्ट दे सकता है कि कैदी स्वस्थ्य है।
इस पर मुकेश की वकील अंजना ने कहा कि एसजी की बात पर आपत्ति करते हुए कहा कि दया याचिका दस्तावेजों के साथ भेजी जानी चाहिए थी। हम वही तो पूछ रहे हैं कि वह दस्तावेज कहां हैं? सरकारी वकील आपको संतुष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं कि दया याचिका के साथ ये दस्तावेज दिए गए थे। इन दस्तावेजों को आपको नहीं राष्ट्रपति को भेजा जाना था, ताकि वह दया याचिका पर गौर करते समय उन्हें देखें।
जब मुकेश की वकील ने कहा कि मैं आपको बता दूं कि एसजी बस यहां कह रहे हैं कि राष्ट्रपति के पास दस्तावेज भेजे गए थे, लेकिन वो कौन सी सामग्री थी जो भेजी गई थी वो नहीं बता रहे। आखिर केस डायरी कहां है? वो मुझे क्यों नहीं दी गई, चार्जशीट कहां है?
मुकेश की वकील अंजना प्रकाश, वृंदा ग्रोवर और रिबेका जॉन ने मिलकर कहा कि एकांत कारावास दया याचिका का आधार हो सकता है। हमें पाप से घृणा करनी चाहिए पापी से नहीं।
इसके बाद मुकेश की वकील ने फिर से उन दस्तावेजों की मांग की तो सुनवाई कर रही पीठ ने कहा कि अदालत वकीलों को कोई दस्तावेज देने से इनकार करती है। इसके बाद अदालत ने कल यानी 29 जनवरी तक के लिए अपना आदेश सुरक्षित रख लिया।