दीपिका ने इंटरव्यू में बताया- मोबाइल जनरेशन से इस तरह सहेजे अपने रिश्ते

Fashion/ Entertainment

दीपिका पादुकोण के पिता प्रकाश पादुकोण उन्हें बैडमिंटन खिलाड़ी बनाना चाहते थे। नेशनल लेवल तक उन्होंने ये खेल खेला भी लेकिन इसमें उनका दिल नहीं लगा। वह कैमरे के सामने ज्यादा सहज महसूस करने लगीं। रत्ती रत्ती हिम्मत समेट वह मेहनत करती रहीं। अब भी वह हर दिन 16 घंटे काम करती हैं। रविवार को 34 साल की हो रहीं दीपिका ने अपने करियर, अपने हौसलों और अपने रिश्तों पर खुलकर ये खास बातचीत की पंकज शुक्ल से।
पद्मावत के बाद छपाक तक आने में इतना समय क्यों लगा?
मैं जब छपाक जैसी फिल्म करती हूं तो इसके लिए भावनात्मक तौर पर तरोताजा महसूस करना बहुत जरूरी है। कुछ किरदार आपको भावनाओं के तौर पर निचोड़ देते हैं, पद्मावत में वही हुआ। हर फिल्म के साथ तो ऐसा नहीं होता लेकिन कुछ फिल्मों में होता है कि किरदार निभाने के बाद मैं भावनाओं का एक बोझ महसूस करती हूं। पद्मावत के बाद भी मैं चाहती थी कि मैं खुद को फिर से भरूं। इस दौरान तमाम निर्देशकों से मिली, खूब सारी किताबें पढ़ीं। ये मौका बहुत कम आता है जीवन में। कलाकार के तौर पर हम अक्सर एक चक्र में घुस जाते हैं, ये चक्र टूटे नहीं इससे घबराते हैं। छुट्टी नहीं ले पाते। मैंने बिल्कुल नए सिरे से छपाक में काम किया और इसमें खूब आनंद आया।
कम ही होता है कि किसी कलाकार के लिए कि लोगों को उसके निभाए किरदारों के नाम याद रह जाएं। जब आप खुद की उम्मीद से बेहतर कर पाती हैं तो कितना संतुष्ट महसूस करती हैं?
मैं बहुत संतुष्ट महसूस करती हूं हालांकि जब मैं इस तरह की फिल्में करने का फैसला लेती हूं तो ये दूसरों को संतुष्ट करने के लिए नहीं होता। मैं खुद को संतुष्ट करने के लिए सिनेमा करती हूं। खुद को चुनौती देने के लिए करती हूं। जब दर्शकों को लगता है कि इस कलाकार ने अच्छा किया है। खुद को बेहतर किया है। उम्मीदों से आगे जाकर काम किया है तो अच्छा लगता है कि चलो जो भी मैं कर रही हूं, जिस तरह के फैसले मैं ले रही हूं, वह कहीं न कहीं सही हैं।
कम ही होता है कि किसी कलाकार के लिए कि लोगों को उसके निभाए किरदारों के नाम याद रह जाएं। जब आप खुद की उम्मीद से बेहतर कर पाती हैं तो कितना संतुष्ट महसूस करती हैं?
मैं बहुत संतुष्ट महसूस करती हूं हालांकि जब मैं इस तरह की फिल्में करने का फैसला लेती हूं तो ये दूसरों को संतुष्ट करने के लिए नहीं होता। मैं खुद को संतुष्ट करने के लिए सिनेमा करती हूं। खुद को चुनौती देने के लिए करती हूं। जब दर्शकों को लगता है कि इस कलाकार ने अच्छा किया है। खुद को बेहतर किया है। उम्मीदों से आगे जाकर काम किया है तो अच्छा लगता है कि चलो जो भी मैं कर रही हूं, जिस तरह के फैसले मैं ले रही हूं, वह कहीं न कहीं सही हैं।
फोर्ब्स की लिस्ट में सबसे शक्तिशाली महिला का खिताब मिलना, सबसे कामुक महिला चुना जाना या फिर सबसे ज्यादा मेहनताना पाने वाली अदाकारा का तमगा मिलना, ये सब आपके लिए कितना मायने रखता है?
तमगे मिल गए तो अच्छा लगता है, नहीं होता तो भी अच्छा होता। आज मैं सबसे ज्यादा कमाने वाली अभिनेत्री हूं कल कोई और होगा। आज मैं कामयाब हूं कल कोई और होगा। इन तमगों को मैं ज्यादा तवज्जो नहीं देती हूं। मैंने हमेशा अपने काम का आनंद महसूस किया है। काम को मैं सबसे आगे रखती हूं। ये सब तमगे जो लोग मुझे देते हैं उन्हें मैंने कभी आगे नहीं रखा।
सिनेमा में कमाई की असमानता पर खूब बहस होती रही है, क्या आप मानती हैं कि जब कोई अभिनेत्री अपने बूते किसी फिल्म को कामयाब बनाती है तो यह बहस अपने आप विराम पा जाती है?
मैं मानती हूं कि कहीं न कहीं ये असमानता तो है लेकिन इसे समझना इतना आसान नहीं है। सीधे ये तुलना कर देना कि एक अभिनेता को इतना मिल रहा और एक अभिनेत्री को इतना मिल रहा, ये इतना आसान नहीं है, काफी पेचीदा बात है ये। कितने सालों से किसी ने काम किया, उनकी सफलता क्या है, बॉक्स ऑफिस पर उनका योगदान क्या है, उनका कौशल क्या है, उनका अनुभव क्या है, ऐसे सब हम कैसे नापेंगे? असमानता तो है लेकिन ये कैसे ठीक करना है, कैसे इसको बराबर लाना है, ये सोचना होगा। ये इतना आसान नहीं है।
फिल्म छपाक का ट्रेलर रिलीज होने के बाद कंगना रनौत की बहन रंगोली ने ट्वीट किया। क्या आप भी अपने समकालीन कलाकारों के ट्रेलर या फिल्में देखती हैं?
कंगना हो, आलिया हो या फिर रणवीर सिंह ही क्यों न हो। मैं सबकी फिल्मों के ट्रेलर देखती हूं। ये हमारा काम है। हमारी इंडस्ट्री है ये। सबका काम देखना चाहिए। जब भी मुझे मौका मिलता है मैं फिल्में भी देखती हूं। कभी खास स्क्रीनिंग में जाने का मौका मिलता है तो देखती हूं नहीं तो बाद में सामान्य दर्शकों की तरह जाकर देखती हूं। पंगा का ट्रेलर मुझे बहुत अच्छा लगा। मुझे इसे देखने का मौका इसकी रिलीज से पहले ही मिल गया था। शुक्रिया ये पूछने के लिए क्योंकि किसी ने पूछा भी नहीं। ऐसी कहानियां है जो कंगना करती हैं मुझे पसंद हैं। अश्विनी (फिल्म पंगा की निर्देशक) का काम भी मुझे पसंद है। एक कलाकार के तौर पर नहीं पर एक दर्शक की तरह मैं ये फिल्म देखना चाहूंगी।
एक इंटरव्यू में आपने अपने हाईस्कूल के दिनों की दिनचर्या बताई थी कि आप सुबह 5 बजे उठती हूं, व्यायाम करती हैं, बैडमिंटन खेलती हैं, फिर स्कूल जाती हैं, लौटकर आती हैं तो फिर बैंडमिंटन खेलती हैं और सो जाती हैं तो ये रूटीन अब भी वही है? बस बैडमिंटन की जगह सिनेमा हो गया है?
हां, रूटीन तो वही है। सुबह उठके मैं नाश्ता करती हूं, फिर मैं जिम जाती हूं, फिर मैं काम पर चली जाती हूं। फिर मैं वापस आती हूं फिर थोड़ा अगले दिन के लिए होमवर्क करती हूं। अगले दिन के लिए अगर कोई शूट है तो उसकी तैयारी करती हूं। कोई कार्यक्रम है या फिर कहीं बतौर वक्ता जाना है तो उसकी तैयारी करती हूं और फिर सो जाती हूं।
तो औसतन कितने घंटे काम करती हैं, 16 घंटे तो अब भी हो ही जाते होंगे?
आराम से। मेहनत तो सबको करनी होती है। आज के युवाओं को मैं ज्यादा कहूंगी। आजकल के जो युवा हैं, उन्हें सीधे शीर्ष पर पहुंचना है। जैसे हमने किया है कि रत्ती रत्ती मेहनत करके हम यहां तक पहुंचे हैं। आप ऑफिस में हो, फिल्म जगत में हो, स्कूल में हो चाहे कहीं भी हो। लगातार मेहनत करना और उसकी प्रक्रिया से गुजरना बहुत जरूरी है। मैं आज के तमाम युवाओं को देखती हूं कि वे हर चीज तुरंत चाहते हैं। मैं कहती हूं थोड़ा सब्र करो।
डिजिटल विस्फोट के युग में व्यक्तिगत संवाद कम हो रहा है, आपका क्या सुझाव है इसके बारे में?
मेरा मानना ह कि जितना हम बातचीत के तरीकों को पारंपरिक रख सकें, करना चाहिए। सोशल मीडिया पर सबको सब पता है। महसूस होता है कि हम सबसे जुड़े हुए हैं पर होते नहीं हैं। रेस्तरां में, खाने की मेज पर सब फोन पर लगे रहते हैं। अगर फोन पर ही लगे रहना है तो बाहर जाते ही क्यों हैं? हमारे घर में फोन इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं है। खाने की मेज पर फोन प्रतिबंधित है। इसके लिए स्व अनुशासन बहुत जरूरी है। सोशल मीडिया के लिए समय निर्धारित करना। फोन के लिए समय निर्धारित करना, ये सब बहुत जरूरी है। रिश्तों का रखरखाव हमारी जिम्मेदारी है।
शादी के बाद दिनचर्या में कितना परिवर्तन आया? कभी ये लगा कि काम जल्दी पूरा करना चाहिए, घर में रणवीर इंतजार कर रहे होंगे?
हम दोनों एक दूसरे का संबल हैं। ये अच्छी बात है कि हम दोनों एक ही पेशे में हैं तो एक दूसरे को समझते हैं। हम दोनों ने एक दूसरे का बहुत साथ दिया है, एक दूसरे को प्रोत्साहित करते हैं। कभी दबाव नहीं डालते दूसरे पर, नहीं तो हमारी एकाग्रता हमारे काम को लेकर कम हो जाएगी। रिश्तों का समय देना चाहिए। ऐसा नहीं है कि हम एक दूसरे से सिर्फ काम के बारे में ही बात करते हैं। पूरे हफ्ते काम के बाद सप्ताहांत में एक दूसरे के बारे में सोचना, दोस्तों के बारे में सोचना, परिवार के बारे में सोचना बहुत जरूरी है।
ये भारी भारी बातों वाली दीपिका तो ठीक है लेकिन वो लव आजकल और कॉकटेल वाली दीपिका कब लौटेगी परदे पर?
मेरी अगली फिल्म वैसी है। बहुत दिनों से मैं लव आजकल जैसी फिल्म करना चाह रही थी। निर्देशक शकुन बत्रा की इस फिल्म की शूटिंग हम मार्च में शुरू करेंगे। फिल्म में सिद्धांत चतुर्वेदी हैं। अनन्या पांडे भी है। कोई एक और लड़का होगा। नया होगा या फिर कोई स्थापित कलाकार, ये हम देखेंगे।