बरेली।(www.arya-tv.com) बभिया गांव जहां किताबें कम, तमंचे का शौक रखने वाले लोग ज्यादा थे। उस गांव की तीन बेटियां अपने बूते पढ़ीं, आगे बढ़ीं। साइकिल चलाकर दस किमी दूर पढ़ाई करने जातीं। उनमें से दो सरकारी नौकरी में चली गईं, जबकि तीसरी ने बीटीसी करने के बाद गांव के बच्चों को भविष्य की राह दिखाना शुरू कर दिया। वह कहती हैं कि गांवों में अभी भी बेटियों की पढ़ाई के लिए तमाम मुश्किलों का सामना करना होता है। बेटियों खुद आगे बढ़ें और अपने भविष्य के रास्ते तैयार करें।
गांव में रहने वाली रचना अपनी पढ़ाई के दिनों को याद करते हुए कहती हैं कि शुरूआती पढ़ाई सरकारी स्कूल में की। इसके आगे की पढ़ाई के लिए बरेली कॉलेज जाना होता था। मगर गांव का माहौल मुफीद नहीं था। मैं, छोटी बहन रूबी और पूनम साइकिल से शहर जाती थी तो लोग टोकते थे। फिर भी हम लोगों ने परवाह नहीं की। रचना कहती हैं कि बीटीसी करने के बाद दूसरे कॉलेज में नौकरी के बजाय दूसरा रास्ता तय किया। तय किया कि गांव के बच्चों को पढ़ाएंगे।
इसके लिए घर-घर गए। सभी को अपने यहां बुलाकर पढ़ाना शुरू किया। कोशिश रहती है कि गांव की बच्चियां अधिक संख्या में आएं। मगर, यह काम अभी भी थोड़ा मुश्किल भरा हो रहा। कोशिश कर रही हूं कि लोगों की सोच बदले। बेटियों को पढ़ाने के लिए वे आगे आएं। कहती हैं कि इस वक्त करीब चालीस बच्चे चार बैच में अलग-अलग पढ़ाई करने आते हैं। सबसे छोटी बहन रूबी का चयन पुलिस विभाग में महिला आरक्षी के रूप में हो चुका है।
वह मुरादाबाद पीटीसी में ट्रेनिंग ले रही हैं। वह भी रचना के इस कदम में मददगार हैं। रचना को भरोसा दिया है कि संसाधनों की जरूरत पडऩे पर मदद करेंगी मगर बच्चों को पढ़ाने का क्रम जारी रहेगी। रचना की छोटी बहन पूनम ग्राम विकास अधिकारी बन चुकी हैं। फरीदपुर में उनकी तैनाती है। रचना कहती हैं कि बेटियों की स्थिति सुधारने के महिलाओं को आगे आना होगा। हम लोगों की पढ़ाई में व्यवधान आए मगर परिजन लगातार साथ खड़े रहे।