अंतरराष्ट्रीय जासूसी रैकेट का भंडाफोड़ :20 साल चली परमाणु जासूसी

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रूसी डिज़ाइन ईरान को, BARC के राज़ ISI को! दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल और मुंबई क्राइम ब्रांच ने एक ऐसे अंतरराष्ट्रीय जासूसी रैकेट का भंडाफोड़ किया है, जो भारत की परमाणु सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन चुका था।
59 वर्षीय “मुहम्मद आदिल हुसैनी” और उसके भाई “अख्तर हुसैनी” (60) ने दो दशकों तक एक ऐसा खतरनाक खेल खेला, जिसमें रूसी परमाणु वैज्ञानिक से गुप्त डिज़ाइन खरीदी गई, फिर उसे ईरान की एटॉमिक एनर्जी ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ़ ईरान (AEOI) के एजेंट को बेच दिया गया, और साथ ही पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के हैंडलर्स के लिए भारत के BARC (भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर) की संवेदनशील जानकारी भी चुराने की कोशिश की गई।
जांच में सामने आया है कि “आदिल हुसैनी” ने एक रूसी मूल के परमाणु वैज्ञानिक से परमाणु रिएक्टर से जुड़ी डिज़ाइन और तकनीकी दस्तावेज़ खरीदे थे। यह रूसी वैज्ञानिक कौन था, यह अभी तक पूरी तरह से उजागर नहीं हुआ है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक वह रूस के परमाणु इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ा हुआ था।
रूस में पिछले कुछ सालों में कई परमाणु वैज्ञानिकों को देश की गुप्त जानकारियां बेचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।
2015 में “व्लादिमीर गोलूबेव” नामक एक रूसी परमाणु वैज्ञानिक को विस्फोटकों पर एक लेख चेक जर्नल में प्रकाशित करने के बाद राज्य के राज़ उजागर करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
इसी तरह, कई अन्य रूसी वैज्ञानिकों को हाइपरसोनिक हथियार तकनीक और परमाणु रिएक्टर डिज़ाइन से जुड़ी जानकारी विदेशों में साझा करने के आरोप में जेल भेजा गया है। ऐसे में यह स्पष्ट है कि आदिल हुसैनी ने जिस रूसी वैज्ञानिक से परमाणु डिज़ाइन खरीदी, वह भी एक देशद्रोही और भ्रष्ट व्यक्ति था, जिसने अपने ही देश रूस के राज़ पैसे के लालच में बेच दिए।
“आदिल हुसैनी” ने रूसी वैज्ञानिक से खरीदी गई परमाणु रिएक्टर से जुड़ी डिज़ाइन को ईरान की एटॉमिक एनर्जी ऑर्गनाइज़ेशन (AEOI) के एक एजेंट को बेच दिया। यह ईरान का मुख्य परमाणु अनुसंधान और विकास संगठन है, जो ईरान के परमाणु हथियार कार्यक्रम से जुड़ा हुआ है। और इसी आधार पर ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहा था।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने 2006 में AEOI को ईरान की परमाणु हथियार गतिविधियों में शामिल होने के कारण प्रतिबंधों की सूची में डाला था। अमेरिका और यूरोपीय संघ ने भी AEOI को परमाणु हथियार प्रसार में शामिल होने के आरोप में ब्लैकलिस्ट किया है।
हुसैनी ब्रदर्स ने इस सौदे से अनुमानित 5 मिलियन डॉलर की कमाई की , जिसका एक हिस्सा उसने दुबई में प्रॉपर्टी खरीदने में लगाया। पुलिस अभी भी फाइनैंशियल ट्रेल की जांच कर रही है, और यह कमाई अनुमान से भी कहीं बहुत ज्यादा हो सकती है।
सबसे खतरनाक पहलू यह है कि आदिल हुसैनी और उसके भाई अख्तर हुसैनी पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के हैंडलर्स के सीधे संपर्क में थे। दिल्ली पुलिस की एंटी-टेरर यूनिट ने आदिल को ISI की ओर से BARC के कर्मचारियों से संपर्क करने की कोशिश करते हुए पकड़ा।
आदिल ने कई बार पाकिस्तान की यात्रा की थी, और वहां उसके ISI के साथ गहरे संबंध थे।
दोनों ने एक तीसरे शख्स जमशेदपुर, झारखंड के “मुनज़्ज़िर खान” की मदद से फर्जी पासपोर्ट, आधार कार्ड, पैन कार्ड, और ड्राइविंग लाइसेंस, फर्जी पासपोर्ट और आईडी कार्ड का नेटवर्क चलाया, जिसके ज़रिए समय समय पर विदेशी एजेंटों के भारत में घुसपैठ किये जाने की आशंका है।
आदिल और अख्तर के पास BARC (भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर) के दो फर्जी आईडी कार्ड थे—एक अलेक्जेंडर पालमर के नाम पर और दूसरा अली राजा हुसैन के नाम पर। इन फर्जी आईडी का इस्तेमाल करके वे विदेशी जासूसों को भारत की परमाणु सुविधाओं की गुप्त जानकारी देने का दावा करते थे।
“अलेक्जेंडर पालमर” के नाम पर तीन फर्जी पासपोर्ट बनाये गये और कई बार विदेश यात्रायें की गयीं।
मुंबई पुलिस ने अख्तर हुसैनी के घर से 14 संवेदनशील नक्शे और परमाणु बम से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां बरामद की हैं। यह जानकारी भारत के परमाणु केंद्रों की सुरक्षा व्यवस्था, रणनीतिक स्थानों, और तकनीकी विवरण से संबंधित थी। केंद्रीय एजेंसियां अब इस रैकेट के अन्य सदस्यों और विदेशी संपर्कों का पता लगा रही हैं।
आदिल हुसैनी ने सिर्फ जासूसी की कोशिश नहीं की—उसने परमाणु डिज़ाइन बेच दी है, संवेदनशील जानकारी ट्रांसफर कर दी है, और ISI तथा ईरान के AEOI एजेंट को वो सब कुछ दे दिया है जो भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए घातक है। यह मामला भारत की परमाणु सुरक्षा, आंतरिक खुफिया तंत्र, और दस्तावेज़ सत्यापन प्रणाली में भी गंभीर कमियों को उजागर कर रहा है, कि कैसे यह सब 20 वर्षों से अनवरत चल रहा था।किन्तु अब सवाल यह नहीं है कि “क्या हो सकता था”, बल्कि यह है कि “कितना नुकसान हो चुका है और हम इसे कैसे ठीक कर सकते हैं”।
भारत को अब डैमेज कंट्रोल, रणनीतिक पुनर्मूल्यांकन, और भविष्य की जासूसी रोकने के लिए कड़े उपाय करने होंगे। अन्यथा यह तो स्पष्ट हो चुका है कि यहां हुसैनों की कमी नहीं है, जो फिर किसी घर से से निकल कर भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है।