इलियो या कांतारा किसका पलड़ा भारी…, किसकी होगी 300 करोड़ के क्लब में एंट्री

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षभ शेट्टी ने एक बार फिर कांतारा वर्ल्ड में जादू बिखेरा हैउनका लेखननिर्देशन और अभिनयसब दमदार है  साथ ही गुलशन देवैयारुख्मिणी वसंत और जयराम का अभिनय भी दमदार रहा है। तीन साल पहले आई कंतारा सिर्फ 16 करोड़ में बनी थीइस बार निर्माता ने  षभ के लिए 125 करोड़ का बजट रखा था और यह पर्दे पर भी साफ दिखाई देता है। एक बार तो हमें यह एहसास होता है कि इतने बजट में इतनी बढ़िया फिल्म कैसे बन सकती है। फिल्म के दृश्य बेहद शानदार हैंहर फ्रेम खूबसूरत लगता है। तकनीकी रूप से भी फिल्म एकदम सही है। बीजीएम और गाने कमाल के हैंमैंने कई सालों बाद किसी फिल्म में शास्त्रीय संगीत सुना है। मुझे ये कहानी बहुत पसंद आई षभ इसी चीज को भारतीय सिनेमा में लेकर आए।

कहानी वहीं से आगे बढ़ती हैजहां कंतारा खत्म हुई थी और फ्लैशबैक में हमें कदंब राज्य दिखाया जाता है। कदंब राज्य का राजाजो कंतारा वन चाहता हैलेकिन वहीं मर जाता हैफिर उसका बेटा (जयरामवहां वापस जाने की हिम्मत नहीं करता। जब बेटा बड़ा होता है तो वो राजा बनता है और उसके एक बेटा (गुलशन देवैयाऔर एक बेटी (रुखमणी वसंतहोती है। बेटे (गुलशन देवैयाको राजगद्दी पर बिठाकर राजा बना दिया जाता हैलेकिन जो बेटा राजा हैवो अय्या के साथ ही रहता है। यहांकोई एक नवजात शिशु बर्मी ( षभ शेट्टीको कंतारा वन में छोड़ देता है और वहां एक महिलाजिसके कोई बच्चे नहीं हैंउसकी देखभाल करती है। फिल्म शुरू से अंत तक बांधे रखती हैएक भी फ्रेम हमें बोर नहीं करता। एक्शन कोरियोग्राफी कसी हुई हैयुद्ध भी दिखाया गया हैवहां तकनीकें भी अच्छी थीं। हमें यह भी देखने को मिलता है कि उस समय के लोग कैसे धीरेधीरे आगे बढ़ रहे थे। स्क्रीन प्ले को उस समय को ध्यान में रखकर और हर चीज को ध्यान में रखकर दिखाया गया है।