पोस्टमार्टम के लिए नई गाइडलाइन में 60 साल आयु तक के सभी डॉक्टरों की ड्यूटी तो लगा दी गयी है, मगर फोरेंसिक विशेषज्ञों को पोस्टमार्टम ड्यूटी से बाहर रखने का मामला बड़ा विवाद बनता जा रहा है। प्रांतीय चिकित्सा सेवा संवर्ग (पीएमएस) के चिकित्सक, जिन्हें हर माह पोस्टमार्टम का बोझ उठाना पड़ रहा है, विरोध जता रहे हैं। राजधानी समेत कई जिलों में चिकित्सकों ने इस व्यवस्था पर सवाल खड़े किये हैं।
जून 2025 में जारी गाइडलाइन में भले ही मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) व अपर मुख्य चिकित्साधिकारी को छोड़कर 60 साल आयु तक के डॉक्टरों से पोस्टमार्टम कराने की अनिवार्यता रखी गयी है, मगर जिला स्तर पर पूरा अनुपालन नहीं हो रहा है। क्रमानुसार पोस्टमार्टम में ड्यूटी करने के लिए जिलों में मौजूद डॉक्टरों की कॉमन सूची नहीं तैयार की गयी है। सीएमओ का तर्क है कि व्यवस्थातंर्गत ग्रामीण क्षेत्र के डॉक्टरों को पोस्टमार्टम में नहीं बुलाया जाता है, क्योंकि पोस्टमार्टम में 24 घंटे की ड्यूटी होने से ग्रामीण क्षेत्र के अस्पताल प्रभावित होते हैं। साथ ही केजीएमयू में फोरेंसिक विभाग के अध्यक्ष प्रो.अनूप वर्मा का कहना है 2015 तक लावारिस शवों का पोस्टमार्टम हमारे यहां के चिकित्सकों द्वारा किया जाता था, उसके बाद सीएमओ द्वारा रोक लगा दी गयी थी। उन्होंने बताया कि 2015 के शासनादेश के अनुसार, व्यवस्था लागू करने के लिए चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक एवं स्वास्थ्य महानिदेशक स्तर पर, संयुक्त योजना बनाकर अमल कराना चाहिए, ताकि जिन जिलों में फोरेंसिक शिक्षक हैं, वहां पर पोस्टमार्टम करने का मौका फोरेंसिक एक्सपर्ट को मिल सके, क्योंकि विभाग में पोस्टमार्टम भी विषय है।