ग्रेटर नोएडा में बिल्डर की लापरवाही, खराब विला देने पर आयोग ने पैसे वापस करने के दिए आदेश

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यूपी के ग्रेटर नोएडा में पैरामाउंट गोल्फ फॉरेस्ट हाउसिंग प्रोजेक्ट में विला की खरीदारी करने वाले एक दंपत्ति को खराब निर्माण गुणवत्ता और कब्जे में देरी का सामना करना महंगा नहीं, बल्कि बिल्डर के लिए भारी पड़ गया है.

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने मामले में बिल्डर की सेवा में कमी पाई और 12,32,430 रुपये मुआवज़ा देने का आदेश पारित किया है. यह आदेश छह प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित अगले 30 दिनों में भुगतान करने का निर्देश देता है.

अधिवक्ता ने दी यह जानकारी

अधिवक्ता आदित्य भाटी के अनुसार, अरुण कुमार चौधरी और निर्मला चौधरी ने वर्ष 2012 में पैरामाउंट गोल्फ फॉरेस्ट सोसाइटी में एक विला बुक किया था, जिसकी प्रारंभिक कीमत ₹32,22,700 तय हुई थी. बिल्डर ने 30 माह के भीतर कब्जा देने का वादा किया था, लेकिन न केवल कब्जा समय पर नहीं दिया गया, बल्कि विला की कीमत को बार-बार बढ़ाकर ₹44 लाख तक कर दिया गया.

समय पर नहीं मिला विला

खरीदारों ने ₹31.47 लाख से अधिक की राशि अदा कर दी, और शेष भुगतान आरटीजीएस के माध्यम से भी किया गया. बावजूद इसके उन्हें विला समय पर नहीं मिला और जब विला सौंपा गया, तो उसमें गंभीर निर्माण संबंधी खामियां पाई गईं.

विला में छत से पानी टपकना, प्लास्टर झड़ना, टूटी हुई टाइल्स, अधूरी सीवेज लाइन, और बेतरतीब वायरिंग जैसी समस्याएं पाई गईं. बेसमेंट में सीलन और बिजली की सुरक्षा को लेकर भी लापरवाही दिखाई दी. इससे तंग आकर खरीदारों ने जिला उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटाया.

आयोग ने सुनाया यह फैसला

फोरम के अध्यक्ष अनिल कुमार पुंडीर और सदस्य अंजू शर्मा की पीठ ने पैरामाउंट विलास प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर को नोटिस जारी कर कोर्ट में तलब किया था, लेकिन कोई हाज़िर नहीं हुआ. आयोग ने बिल्डर की सेवा में स्पष्ट कमी मानते हुए ₹12,32,430 रुपए छह प्रतिशत ब्याज के साथ 30 दिनों में लौटाने का आदेश पारित किया.

इसके साथ ही, वाद व्यय के रूप में ₹5,000 अलग से पीड़ित पक्ष को देने के निर्देश भी दिए गए. यह फैसला गृह खरीदारों के अधिकारों के लिए एक मिसाल बनकर सामने आया है. इससे यह स्पष्ट होता है कि अगर कोई बिल्डर समय पर कब्जा नहीं देता या मानक के अनुरूप निर्माण नहीं करता, तो कानून खरीदार के पक्ष में खड़ा होता है.

यह निर्णय न केवल पीड़ित उपभोक्ताओं को राहत देता है, बल्कि रियल एस्टेट सेक्टर में पारदर्शिता बढ़ाने की दिशा में एक सशक्त कदम भी है.