अभिषेक राय
(www.arya-tv.com)
यदि आप भी एआई टूल इस्तेमाल करते हैं तो यह खबर आपको सोचने पर मजबूर कर सकती है कि आपके एआई इस्तेमाल से भी CO₂ उत्सर्जन बढ़ रहा है और धरती गर्म हो रही है। एक नई स्टडी में यह चौंकाने वाली बात सामने आई है कि जब AI चैटबॉट्स जटिल सवालों पर “सोचने” लगते हैं यानी विश्लेषणात्मक और तर्कसंगत जवाब देने की कोशिश करते हैं, तो वे सीधे-सपाट जवाब देने वाले मॉडल्स की तुलना में छह गुना तक अधिक कार्बन उत्सर्जन करते हैं।
तर्क करने वाला AI ज्यादा ऊर्जा खपाता है
जर्मनी के होचस्चुले मुन्चेन यूनिवर्सिटी ऑफ एप्लाइड साइंसेज के शोधकर्ता मैक्सिमिलियन डॉउनर ने बताया, “हमने पाया कि जो मॉडल तर्क और विश्लेषण करते हैं, वे छोटे, संक्षिप्त उत्तर देने वाले मॉडल्स की तुलना में 50 गुना तक ज्यादा CO₂ उत्सर्जन कर सकते हैं।” यह अध्ययन फ्रॉन्टियर इन कम्युनिकेशन नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है, जिसमें 14 जनरेटिव AI मॉडल्स (जैसे DeepSeek और Cogito) के प्रदर्शन और पर्यावरणीय प्रभाव का तुलनात्मक विश्लेषण किया गया।
किन विषयों पर किया गया था परीक्षण?
AI को 1,000 सवाल दिए गए जिनमें 500 मल्टीपल चॉइस, 500 वर्णनात्मक/लिखित उत्तर वाले शामिल थे। ये सवाल 5 विषयों दर्शनशास्त्र, हाई स्कूल इतिहास, अंतरराष्ट्रीय कानून, एब्स्ट्रैक्ट एल्जेब्रा, हाई स्कूल गणित से थे।
सोचने से हमेशा सही जवाब नहीं मिलता
स्टडी में यह भी पाया गया कि लंबा, तर्कसंगत उत्तर देना हमेशा सही उत्तर की गारंटी नहीं है। डॉउनर ने कहा, “जो मॉडल 500 ग्राम CO₂ से कम उत्सर्जन करते हैं, वे 80% से ज़्यादा सटीकता नहीं दे पाए।” Cogito मॉडल, जो reasoning करता है, ने सबसे बेहतर प्रदर्शन (लगभग 85% सटीकता) दी, लेकिन उसने उसी आकार के संक्षिप्त मॉडल्स की तुलना में तीन गुना अधिक उत्सर्जन किया।