बाबा साहेब डा• अम्बेडकर चाहते थे, कि भारत का प्रत्येक नागरिक शिक्षित हो।

# ## Lucknow

(www.arya-tv.com) भारत रत्न बोधिसत्व बाबा साहब डा• भीमराव अंबेडकर साहब की 134वीं जयंती समारोह दिनांक 27 अप्रैल 2025 को सेक्टर- आई (पानी की टंकी) आशियाना, लखनऊ में बड़े धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। कार्यक्रम में इं• भीमराज साहब को विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया। इं• भीमराज साहब ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि वर्तमान अप्रैल माह अम्बेडकर माह के रूप में भी जाना जाता है। वर्तमान में अम्बेडकर जयंती विश्व के 102 देशों में मनायी गयी है। बाबा साहब की जयंती मनाने के इस माह में जो कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं, ऐसे तमाम कार्यक्रमों में अनुसूचित जाति एवं अन्य पिछड़े समाज के लोग बाबा साहब के आदर्शों पर चलने की बात तो करते हैं, परन्तु यथार्थ में ऐसा सही दिशा में पूर्ण रूप से नहीं हो पा रहा है। फिर भी लोग बाबा साहब एवं तथागत बुद्ध के बताए हुए रास्ते पर चलने का प्रयास करते रहते हैं। आजादी के 77 वर्ष बाद भी अनुसूचित जाति एवं अन्य पिछड़े वर्ग की दशा जो बदलनी चाहिए थी, वह बदल नहीं पायी है। इसका मूल कारण शैक्षणिक, राजनैतिक,सामाजिक, आर्थिक विषमता के अलावा समाज का दब्बूपन भी है। कोई भी समाज और व्यक्ति तरक्की तभी कर सकता है ,जब उस व्यक्ति एवं उस समाज के लोगों के अंदर साहस हो, और अपनी बात शालीनता के साथ रखने की कला हो। उस काल में जब लोगों को पढ़ने- लिखने की ठीक से आजादी नहीं थी, तब बाबा साहब ने पढ़- लिख कर वंचित समाज के लोगों के लिए इतना काम किया कि, आज तक उतना काम भारत में किसी ने नहीं किया।

बाबा साहब समतामूलक शिक्षा के पक्षधर थे। वह ऐसी शिक्षा के पक्ष में थे जो भेदभाव, जातिवाद मिटा सके। समाज में ऊंच-नीच को खत्म कर सकें। समतामूलक शिक्षा से ही समतामूलक समाज का निर्माण हो सकता है। ऐसी शिक्षा से व्यक्ति सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त होकर अपना उन्नत जीवन व्यतीत कर सकता है। अंबेडकर जातिवाद, छुआछूत, भेदभाव, असमानता, लिंग भेद के विरोधी थे। उन्होंने भारतीय समाज में मौजूदा सामाजिक, असमानता और सामाजिक अन्याय को खत्म करने और समानता, भाईचारा सह -अस्तित्व और पारस्परिकता स्थापित करने के लिए शिक्षा को बहुत महत्वपूर्ण माना। शिक्षा का कार्य है कि लोगों को इस प्रकार शिक्षित करें कि, वह नागरिक के रूप में देश का निर्माण करें, और व्यक्ति के रूप में समतामूलक समाज के निर्माण में योगदान दें। “शिक्षा ऐसी वस्तु है जो प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचानी चाहिए, शिक्षा सस्ती से सस्ती हो ताकि निर्धन से निर्धन व्यक्ति भी शिक्षा ग्रहण कर सके”।

बाबा साहब ने धर्म के विषय में पारिवारिक, धार्मिक संस्कार तथा बुद्धि चरित्र के अध्ययन से बाबा साहेब में धर्म का तुलनात्मक अध्ययन करने की प्रवृत्ति विशेष रूप से जाग्रत हुयी। उन्होंने मुख्यतः बौद्ध धर्म, इस्लाम धर्म, हिंदू धर्म का तुलनात्मक अध्ययन किया। उन्होंने संसार के नाना प्रकार के धर्मों के विविध स्वरूपों को भली-भांति, समझा- बूझा। जितनी ही उन्होंने तरह-तरह के धर्म के स्वरूपों का विवेक की कसौटी पर जांच पड़ताल की उतनी ही उनकी बौद्ध धर्म के प्रति आस्था और विश्वास बढ़ता गया। अंततः वे इस निर्णय पर पहुंचे कि, हमारे वर्तमान समाज की आदर्श आधारशिला बौद्ध धर्म की नींव पर ही रखी जा सकती है। बाबा साहेब डा• अंबेडकर के अनुसार निम्न प्रकार के चार निष्कर्षों पर धर्म को खरा उतरना चाहिए। यद्यपि एक समय के बाद महापुरूष जिन्दा नहीं रहता है, परन्तु उसका विचार अनन्त काल तक जिंदा रहता है
1• समाज की एकता के लिए कानून अथवा नैतिकता की स्वीकृति होनी चाहिए। दोनों के बिना समाज के टुकड़े-टुकड़े हो जायेंगे। धर्म को नैतिकता के रूप में समाज के शासन का मुख्य सिद्धांत होना चाहिए।

2• नैतिकता के सिद्धांत के रूप में धर्म को मौलिक दृष्टि से स्वतंत्रता, समानता तथा भ्रातृत्व के सिद्धांतों का परिचालन भी करना चाहिए।
3• धर्म को विज्ञान के अनुकूल होना चाहिए। यदि धर्म विज्ञान अनुरूप नहीं होता तो, उसका सम्मान ही नहीं घटता, वह हास्यास्पद भी हो सकता है, वह जीवन के सिद्धांत के रूप में समाप्त हो सकता है और कालांतर में अपना अस्तित्व भी खो बैठता है। दूसरे शब्दों में यदि धर्म को वास्तविक ढंग से कार्य करना है तो उसे बुद्धि के अनुरूप होना चाहिए। बुद्धि या तर्क विज्ञान का दूसरा नाम है।

4• धर्म को निर्धनता की अवस्था को पवित्र स्थिति नहीं मानना चाहिए।
उपरोक्त चार निष्कर्षों के आधार पर डा• अंबेडकर ने इस्लाम, हिंदू तथा ईसाई धर्म को अस्वीकार किया। उनकी दृष्टि में बौद्ध धर्म ही ऐसा धर्म रहा जो इन चार निष्कर्षों की प्रतिपूर्ति करता है। इसीलिए बाबा साहब ने 14 अक्टूबर 1956 में बौद्ध धर्म को ग्रहण करके समाज को संदेश दिया कि बौद्ध धर्म ही वैज्ञानिक धर्म है, जो बद्धि, विवेक और तर्क पर आधारित है। कार्यक्रम में मुख्य रूप से श्रद्धेय महेश चन्द्र दोहरे साहब , उप सचिव, भारत सरकार , श्रद्धेय सी• पी• चौधरी जी, श्रद्धेय सत्य राम जी, श्रद्धेय अरविन्द कुरील जी, श्रद्धेया रचना कुरील जी, श्रद्धेय रामाश्रय प्रसाद जी कार्यक्रम के संचालक श्रद्धेय बीर बहादुर जी एवं श्रद्धेय भारत सिंह आदि लोग मुख्य रूप से उपस्थित रहे। जिसमें क्षेत्रीय लोगों की काफी संख्या में उपस्थिति थी।