डॉ. बाबासाहब और डॉ हेडगेवार दोनों ने ही राष्‍ट्र के लिये जीवन खपाया : डॉ. मोहन जी भागवत

Lucknow
  • कानपुर में नवनिर्मित संघ कार्यालय ‘केशव भवन’ का उद्घाटन

कानपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन जी भागवत ने सोमवार को जनपद के कारवालो नगर क्षेत्र में नवनिर्मित संघ कार्यालय ‘केशव भवन’ का उद्घाटन किया। कार्यक्रम के दौरान डॉ मोहन जी भागवत ने कहा कि हिंदू समाज में एकता-समानता बनाने के लिये डॉ बाबासाहब भीमराव अम्‍बेडकर और डॉ केशवराव बलिराम हेडगेवार जी ने अपना पूरा जीवन खपा दिया। यही हमारा उद्देश्य है। भारत को एक मजबूत, आत्मनिर्भर और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राष्ट्र बनाने का। संघ का कार्य राष्ट्र निर्माण से जुड़ा है और इस नये कार्यालय से समाज में और भी प्रभावी ढंग से कार्य किया जाएगा।

  • ‘आक्रामकों ने लूटा’

अपने उद्बोधन में संघ प्रमुख ने कहा कि संघ का काम केवल संघ का काम नहीं है। वह वास्‍तव में समाज का काम है। पूरे समाज को वह काम करना चाहिये। अपने स्‍वयं के लिये। देश के लिये परिवार के प्रत्‍येक व्‍यक्ति के लिये। उन्‍होंने कहा कि आज बड़ा उत्सव का वातावरण है बहुत बार स्थान पर आया हूं लेकिन स्थान के सामने ऐसी भीड़ कभी नहीं देखी आज संगत कार्यालय का लोकार्पण हो रहा है संघ का काम केवल संघ का काम नहीं है वह वास्तव में समाज का काम है पूरे समाज को यह काम करना चाहिए। अपने स्वयं के लिए अपने देश के लिए। समाज के एक-एक व्यक्ति और परिवार के लिये। दुनिया में कहीं भी किसी भी देश में समाज जब इस काम को करता है तब उसका प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक परिवार सुखी होता है। समाज के नाते समाज भी सुखी प्रतिष्ठित सुरक्षित होता है और उस समाज के कारण विश्‍व भी लाभान्वित होता है। अपने समाज में पिछले 2000 वर्षों से जो आत्मविस्‍मृति आई उसके कारण हम आपसी स्वार्थों में उलझ गए। भेद पैदा हुये। अधिकाधिक भेदों की खाइयॉं चौड़ी होती चली गयीं, और हम अपने कर्तव्य से विमुख हो गए जिसका लाभ विदेशी आक्रांताओं ने लिया। हमको पीटा-लूटा और यह बात चलती चली आई। इसलिए यह काम पूर्णत: तरीके से बंद हो गया। जो काम पूर्णत: बंद हो गया, वह काम समाज फिर करे। इसके लिये पहले प्रारम्‍भ करना पड़ता है। प्रारम्‍भ करने वाले अलग दिखाई देते हैं क्योंकि बाकी समाज नहीं करता है। शुरू में ऐसा लगता है कि वह काम उनका ही है जिन्‍होंने आरम्‍भ किया है। मगर वह काम तो पूरे समाज का है। जैसे कोई स्कूटर, मोटरसाइकिल शुरू करता है तो मोटर शुरू करना होता है।इसके लिए पहले चाबी घूमाकर स्टार्ट किया जाता है। फिर दूसरा प्रकार होता है किक मारकर स्‍टार्ट करना। पहले तो वह स्टार्टर ही काम करता है लेकिन बाद में पूरा मशीन चलता है।

  • ‘संगठित हो हिंदू समाज’

उन्‍होंने आगे कहा कि ऐसे अपना समाज इसका प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक परिवार सुखी सुरक्षित निरामय बने। अपना कर्तव्य करे और पूरा समाज सुखी-सुरक्षित प्रतीत हो, जिससे विश्व की आवश्यकताओं को पूरा करने का उसका सामर्थ्‍य बने और वह वैसा करे। इसलिए यह काम शुरू हुआ। यह काम है हिंदू संगठन का काम। भारतवर्ष अपना परम्‍परा से हिन्‍दू समाज का घर है और इसलिए हिन्‍दू समाज उसके लिए उत्तरदायी है जो अपने आपको हिंदू कहता है। उनको इस देश के भले-बुरे के बारे में पूछा जाएगा। जवाबदेही उनकी बनती है। उस हिंदू समाज को तैयार होना चाहिये क्योंकि भारत उनकी मातृभूमि है। उस भारत माता की भक्ति वे करते हैं। उस भारतवर्ष में हुई जो अखंड परम्‍परा है, महापुरुषों के भक्तों की, ऋषियों की, राजर्षियों की, ब्रह्मर्षियों की। उस परम्‍परा के अपने आपको वंशज कहलाते हैं। इस भारत देश के भाग्योदय पर उनका भाग्योदय निर्भर है। यह भारत देश दुनिया में प्रतिष्ठित हो रहा है तो उनकी सुरक्षित हो रहा है तो विश्व भर के हिंदुओं की सुरक्षा प्रतिष्ठा बढ़ रही है। ऐसा नहीं था तब विश्‍व भर के हिंदू न तो सुरक्षित थे और न ही प्रतिष्ठित। हिंदू समाज का यह काम है भारतवर्ष के लिए अपने आपको ऐसा बनाना। यह कार्य है और उस कार्य का यह आलय है। कार्य तो सर्वदूर चल रहा है लेकिन कहीं एक जगह से उसे देख सकते हैं। ऐसा करना होता है। यह जो सारे विश्व में चल रहा है हिंदू समाज के संगठन का काम। भारत में चल रहा है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वारा हिंदू समाज के संगठन का काम। कहां आने से उसका पूरा अनुभव मिल सकेगा। उस जगह को हम कहते हैं संघ कार्यालय। कार्यालय एक भवन नहीं होता। कार्यालय केवल कुछ कागज-पत्रों के रखने की या कुछ लोगों के रहने की जगह नहीं होती। वहां पर संघ का घनीभूत अनुभव मिलता है। संघ का काम सबको जोड़ने का है तो कार्यालय में वह जोड़ने वाले स्वभाव का अनुभव मिलता है।

  • ‘संघ एक जीवन है, संघ एक वातावरण है’

संघ प्रमुख ने कहा कि संघ का कार्य सबके जीवन में सत्य, करुणा, शुचिता और तप की प्रवृत्तियां भरना है तो कार्यालय में सत्य, करुणा, शुचिता, तपस का प्रत्यक्ष अनुभव मिले। कार्य के लिये आवश्‍यक जो यांत्रिकी की बातें हैं। टेक्‍नोलॉजिकल बातें हैं। वित्‍त लेना देना। सूचना लेना देना। भंडार में पुस्तक उपलब्ध रहना। यह सब तो यहां होगा ही। परंतु कार्यालय का जो भावात्मक स्वरूप है वह मुख्य बात है। आप किसी भी संघ कार्यालय में जाएंगे तो आपको प्रश्न मिलेगा कि यह संघ का ऑफिस है। मगर यह ऑफिस जैसा दिखता नहीं। यह तो हॉस्‍टल जैसा दिखता है या घर जैसा दिखता है लेकिन हम उसे कार्यालय कहते हैं। कुछ लोग उसे ऑफिस कहते हैं। वहां से नोटिस जाता है तो नोटिस आती है। वहां भंडार रहता है। उसमें संघ की जानकारी देने वाला साहित्य मिलता है। गणवेश खरीदना है तो गणवेश मिलता है। मगर यह सारी बातें रहती हैं मगर उसके कारण वह कार्यालय नहीं है। वह कार्यालय इसलिये क्‍योंकि वहां संघ होता है। संघ कोई बॉडी का इंडिविजुअल्स नहीं है। मनुष्‍यों का जमावड़ा नहीं है। संघ एक जीवन है। संघ एक वातावरण है। वह जीवन और उस जीवन से उत्‍पन्‍न हुआ वातावरण संघ कार्यालय में अनुभूत होता है और जैसा मैंने कहा कि यह करने वाले केवल संघ के स्वयंसेवक नहीं रहते। सभी लोग रहते हैं। कार्यालय में आने जाने वाले लोग भी रहते हैं। कार्यालय को बनाने वाले लोग भी रहते हैं। उन्‍होंने आगे कहा कि आज आपने सुना कि काम तो पूरा हो गया लेकिन रंगाई-पुताई करने वाले अभी गए नहीं। वे यहीं पर विद्यमान हैं। इतनी भक्ति से इसको बनाने वाले लोग यह भी कार्यालय का वातावरण बनाते हैं। इसीलिए आप सबलोग आज यहां उपस्थित हैं।

  • ‘समाज को योग्‍य बनाने में खपाया जीवन’

सरसंघचालक ने कहा कि आप सबके भाव से भी यह कार्यालय बनता है लेकिन हम सबके लिए यह काम है कि कार्यालय का भवन तो बन गया लेकिन कार्यालय का भाव बना रहना चाहिए। बढ़ते रहना चाहिए और वह भाव क्या है, स्‍वातन्‍त्रय, समता, बंधुता। आज जिनकी जयंती है वही डॉ बाबासाहेब अंबेडकर साहब कहते थे कि स्‍वातन्‍त्रय, समता, बंधुता यह तत्‍वत्रयी यह मैंने फ्रांसीसी राज्‍य क्रांति से नहीं ली है। उसको मैंने भगवान बुद्ध के विचार से भारत की मिट्टी में पाया है। दुनिया का यह अनुभव है और आज दुनिया फिर से इस अनुभव से जूझ रही है। उस पर बात करना चाह रही है। उन्होंने कहा कि दुनिया का यह अनुभव है कि स्‍वातन्‍त्रय प्राप्‍त करने गये तो समता नष्‍ट होती है और समता लाने जाएंगे तो स्‍वातन्‍त्रता के साथ संकोच करना पड़ता है। स्‍वातन्‍त्रय और समता एक साथ लानी है तो तीसरा तत्व अनिवार्य है और वह है बंधुभाव। लिबर्टी, इक्वलिटी एक साथ आनी है तो फ्रेटरनिटी आवश्यक है और बंधुभाव ही धर्म है। भारत धर्मप्राण देश है। बाबा अंबेडकर इस धर्म तत्व के पक्के पुरस्कर्ता थे। उनका काम क्या था? समाज के जड़-मूल से विषमता को उखाड़ देना। संघ अगर एक चाबी वाला स्‍टार्टर है तो बाबा साहब का काम किक वाला स्‍टार्टर था क्‍योंकि हिंदू समाज सुन नहीं रहा था। इसलिए हिंदू समाज को इस विषमता से बाहर लाने के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन व्यतीत किया। दीक्षा परिवर्तन भी किया क्योंकि उनकी प्रामाणिक इच्छा यही थी कि भारत देश को अच्‍छा बनाना है तो भारत देश के सारी आपत्तियों के मूल में यह जो विषय होता है असमानता का। एक-दूसरे के प्रति प्रेम की कमी का। यह सब कारण है उसको घटना चाहिए। वह भुक्‍तभोगी थे। संघ का कार्य भी जिन डॉक्‍टर ने शुरू किया। उनको सामाजिक विषमता का शिकार तो नहीं होना पड़ा परंतु दारिद्रय एवं उपेक्षा का शिकार वे भी होते रहे। बचपन से ही उन्होंने कठिन परिस्थिति में अपनी शिक्षा को पूर्ण किया और उन्होंने भी अपना पूरा जीवन इस समाज के सारे विषमता को हटाकर उसको बंधुता एवं आत्मीयता के एकसूत्र में पिरोने में लगा दिया। अपने लिए दोनों डॉक्टरों ने कुछ नहीं किया। जब डॉक्टर अंबेडकर साहब चले गए तो उनके बाद उनकी स्‍टेट क्‍या थी, उनका पुस्‍तकालय और डॉक्टर हेडगेवार जब चले गए तो उनके बाद उनकी स्टेट क्या थी, उनका पत्राचार। अपने लिए कुछ नहीं लिया। जीवनभर हिंदू समाज में एकता-समानता बनी रहे और यह हिंदू समाज अपने आपको स्‍वतंत्र करे और सारी दुनिया को जो सब प्रकार के शोषण- विषमता चलती है उससे मुक्त करने का रास्ता बताये। ऐसा योग्‍य अपना समाज बने। इसी‍ में दोनों की जिंदगी खप गयी।

  • ‘संघ किसी से नहीं मांगता’

उन्‍होंने कहा कि यह बड़ा संयोग है और अपना सौभाग्य है कि आज इस केशव स्‍मृति का लोकार्पण डॉक्टर बाबासाहेब अंबेडकर के जन्म दिवस पर उनका स्मरण करने के लिए आज यहां पर हो रहा है। काम दोनों का एक ही था। मगर दोनों ने प्रारम्‍भ अलग-अलग अवस्था में अलग-अलग दिशा से किया था। इसलिए जब 1934 में महाराष्ट्र में सतारा के पास कराड़ की शाखा में डॉ आंबेडकर आये थे तो उसके स्मरण में वहां की शाखा ने अभी-अभी एक कार्यक्रम सम्‍पन्न किया और डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर संघ की शाखा में आये थे तो उसका समाचार छपा था। केसरी में समाचार पत्र में डॉक्टर बाबा साहब अंबेडकर का शाखा पर जो भाषण हुआ उसका तीन पंक्तियों में वृतांत दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि कुछ बातों में हमारे में मतभेद है तो भी मैं संघ को अपनत्‍व के भाव से देखता हूं। यह अपनत्‍व दो बातों का परिणाम था। डाॅ हेडगेवार और डॉक्टर अंबेडकर दोनों में अपने समाज के लिए कूट-कूट कर अपार आत्मीयता भरी थी। दोनों का जो कार्य था वह समाज में उसी आत्मीयता को उत्पन्न कर सब स्वार्थ और भेदों को तिलांजलि देने का काम था। उस काम के लिए दोनों चले। सब कार्यकर्ता चले। आज भी हम चल रहे हैं। उस संघ के कार्यालय का आज लोकार्पण है। इस भाव को हम याद करें। कार्यालय एक भावना है आज अपना भवन बन गया है। संघ की यह स्थिति है कि स्वयंसेवक संघ के लिए सुविधा खड़ी कर सकते हैं। अन्‍यत्र तो संघ मांगता नहीं। संघ अपना काम अपने स्‍वयंसेवकों के बलबूते चलाता है। समाज के काम के लिए समाज से सहयोग लेता है। अपने काम के लिए समाज से कुछ नहीं लेता। स्वयंसेवक साल में एक बार जो करते हैं उससे काम करता है। आज संघ की यह स्थिति है कि वह ऐसा कार्यालय खड़ा करे।

  • ‘संघ एक भावना है, संघ एक जीवन है’

उन्‍होंने आगे कहा कि अंदर जाकर आप देखेंगे तो आपको ध्यान में आएगा कि इस प्रांत की जितनी आवश्यकता है उतना ही नाप-तोलकर बना है। उससे ज्यादा नहीं बना है क्योंकि हम लग्जरीज पर विश्‍वास नहीं करते। परिश्रम की सादगी की मितव्ययिता की आदत बनी रहनी चाहिए। जैसे भवन बनाते हैं तो स्थानीय नगर निगम आदि के जो मानक होते हैं वैसे ही संघ के भी कुछ मानक हैं। जहां आवश्यकता है वहां बनाना। आवश्यकता से ज्‍यादा नहीं बनाना। आवश्‍यकताएं भी पूर्ण हों। बाहर के लोग भी आते हैं, उनके लिये भी असुविधाजनक न हो लेकिन चैन-अय्याशी का चिन्‍ह न हो। आपको यह कार्यालय देखकर ऐसा ही ध्‍यान में आयेगा। यह उन मानकों पर बना है। ऐसा ही यह कार्यालय बना है। लेकिन ऐसा भी बनाने की स्थिति नहीं तो संघ कार्यालय कहां होता था, संघ कार्यालय कार्यकर्ताओं के घरों में होता था और जब कार्यकर्ता भी नहीं थे कार्यालय कहां होता था, डॉक्टर हेडगेवार के जीवन में होता था। संघ एक भावना है। संघ एक जीवन है। वह जीवन और भावना देशकाल परिस्थिति के अनुसार जहां रहनी है वहां रहती है। कभी दिखाई नहीं देती, इतनी सूक्ष्म हो कर रहती है कभी सबको दिखे ऐसा वट वृक्ष जैसा विस्‍तार लेकर खड़ी होती है। संघ के कार्यालय भी ऐसे ही हैं। कभी लोगों को पता भी नहीं होता था कि कहां है? आज प्रसिद्ध है। दिखाई देते हैं। परन्‍तु वह तो बाहर का रूप है। वास्‍तविक जो रूप है जो अनण्‍य परिस्थितियों में, अनण्‍य रूपों में अपना कार्य करता रहता है। वह संघ भाव है। उस भाव को हमें सुरक्षित रखना है। कार्यालय में यह सब होना चाहिये। संघ के कार्यकर्ता इसका ध्‍यान तो रखेंगे ही। आप भी इस भाव का नित्‍य वर्धन करते रहिये। आप भी संघ कार्य को आगे बढ़ाइये क्‍योंकि डॉ बाबासाहब आम्‍बेडकर और डॉ हेडगेवार दोनों की आंखों के सामने विश्‍व का मार्गदर्शन करने वाला भेदरहित, स्‍वार्थरहित, समतायुक्‍त, शोषणमुक्‍त ऐसा भारत का हिंदू समाज था। वह समाज हम खड़ा करें। भारत को विश्‍वगुरु बनाने में सहयोग करें।

इस अवसर पर संघ के कानपुर प्रांत के क्षेत्र प्रचारक अनिल जोशी, प्रांत संघचालक शरद कुलकर्णी समेत अनेक वरिष्ठ कार्यकर्ता मंच पर उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम को लेकर शहर में सुरक्षा के कड़े प्रबंध किये गये थे। भारी संख्या में पुलिस बल और प्रशासनिक अधिकारी तैनात दिखे। उद्घाटन समारोह के बाद सभी कार्यकर्ताओं ने सामूहिक प्रार्थना के साथ कार्यक्रम का समापन किया।