(www.arya-tv.com) भारतीय जनता पार्टी हरियाणा विधानसभा चुनाव जीतने के बाद आत्मविश्वास से लबरेज हो गई है. बीजेपी अब ऐसे-ऐसे होमवर्क को पूरा करने का प्रण ले रही है, जो सालों और दशकों से पार्टी नहीं कर पाई है. खासकर आडवाणी-वाजपेयी युग में भी जो काम बीजेपी नहीं कर सकी थी. वह काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और होम मिनिस्टर अमित शाह की टीम कई बार प्लान कर अंजाम तक पहुंचाया है. इसका ताजा उदाहरण हरियाणा चुनाव है. बीजेपी यूपी में अब अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के अभेद्य दुर्ग करहल को भेदने की रणनीति बना रही है. इसको हरियाणा वाले फॉर्मूले से ही मात देने का प्लान है.
आपको बता दें कि यूपी के 10 विधानसभा सीटों पर अगले कुछ दिनों में उपचुनाव होने हैं. हरियाणा जीत से उत्साहित बीजेपी को लगने लगा है कि जब हरियाणा में गैरजाट वोटों को साधा जा सकता है तो करहल में मुस्लिम-यादव समीकरण को साधना कौन सी बड़ी बात है. ऐसे में करहल को साधने के लिए बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह भी सक्रिय हो गए हैं. रविवार को ही दिल्ली में पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह, सीएम योगी आदित्यनाथ, यूपी प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष की मौजूदगी में मीटिंग हुई है.
सपा मुखिया अखिलेश यादव के इस्तीफे के चलते करहल में उपचुनाव होना है. दो दशक से यह सीट सपा का अभेद्य गढ़ कहा जाता है. इस दौरान बीजेपी सहित कई विपक्षी पार्टियां एसपी को लड़ाई तो दूर कभी मजबूत चुनौती भी नहीं दे पाई. लेकिन इस बार बीजेपी इस किले में ऐसी घेराबंदी कर रही है जिससे सपा की नाक का सवाल बनी करहल के दुर्ग में सभी सपाई दिग्गजों को घेरा जा सके. इसके लिए बीजेपी जातीय लिहाज से मजबूत प्रत्याशी सपा के सामने उतारने की तैयारी में है. सपा ने मैनपुरी के पूर्व सांसद तेज प्रताप यादव को टिकट दिया है.
क्या इस बार नहीं बच पाएगा अखिलेश यादव का दुर्ग?
वहीं, बीजेपी के टिकट दावेदारों की लिस्ट बहुत लंबी है. लेकिन बीजेपी आलाकमान चुनावी मैदान में वैसे उम्मीदवार को उतारने की रणनीति में जुटी है, जिसे यादव के 40 प्रतिशत और मुस्लिम के 5 प्रतिशत वोटबैंक के साथ-साथ अन्य जातियों के 55 प्रतिशत वोटर भी पसंद करते हों. इस लिहाज से देखें तो लंबे समय से हाशिये पर चल रहे स्वामी प्रसाद की बेटी संघमित्रा मौर्य को प्रत्याशी बना सकती है. संघमित्रा मौर्य पहले भी बीजेपी की टिकट पर सांसद रह चुकी हैं, लेकिन पिछले चुनाव में पिता के बगावत के कारण बेटी को टिकट नहीं मिल सका था. बीजेपी गैर मुस्लिम-यादव वोटबैंक को साधने का प्रयास में लगी है.
बीजेपी इन चेहरों में से किसी पर खेलेगी दांव
बीजेपी इसके अलावा भी मुलायम सिंह के सामने चुनाव लड़ने वाले पुराने भाजपाई प्रेम सिंह शाक्य को चुनावी मैदान में उतार सकती है. करहल से केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल की बेटी सलोनी बघेल के नाम को लेकर भी चर्चा हो रही है. शिवम चौहान, अशोक चौहान और योगेश प्रताप बघेल के नाम की भी चर्चा है. लेकिन, कहा जा रहा है कि कुछ सीटों पर इस बार आलाकमान प्रदेश को नाम फाइनल कर भेजेगी और फिर इसके बाद उपचुनाव होंगे.
मुस्लिम-यादव पर ये गठबंधन भारी होगा?
आपको बता दें कि बीजेपी ने करहल जीतने के लिए मैनपुरी को सियासी लिहाज से मजबूत करने के लिए प्रतिनिधत्व भी दिया है. जयवीर सिंह को बड़ा मंत्रालय देकर कैबिनेट मंत्री बनाया और मुलायम सिंह यादव के खिलाफ चुनाव लडने वाले प्रेम सिंह शाक्य को पैक्सफेड का अध्यक्ष बनाया. लेकिन यह सीट अब भी बीजेपी के लिए चुनौती बनी हुई है. करहल में अगर जातीय समीकरण के लिहाज से अगर देखा जाए तो कुल वोटरों में लगभग 40% यादव हैं और लगभग 5% मुस्लिम। सपा के इस लगभग 45% कोर वोटरों के साथ मजबूत स्थिति में है.
वहीं बीजेपी की नजर करहल में बघेल, शाक्य व लोधी समुदाय के 80 हजार हजार से अधिक वोटों पर है. ब्राह्मण-क्षत्रिय वोटरों की संख्या भी करहल में 50 हजार के करीब है. इसके लिए अलावा लगभग 50 हजार के करीब एससी वोटर हैं. साल 2022 में भाजपा को यहां 80 हजार वोट मिले थे. इसके बावजूद भी पार्टी हार गई थी.