(www.arya-tv.com) पूरे विश्व में मधुमेह यानि diabetes के रोगीओं कि संख्या दिन प्रतिदिन बढती जा रही है .अपना देश भी इससे अछूता नहीं है गुर्दा रोग इसी समस्या से जनित रोग है . मधुमेह आज गुर्दा रोग की समस्या का पहला कारण है यदि आप मधुमेह से पीड़ित है और आपके चिकित्सक ने परीक्षणों और जांचों के आधार पर आपके गुर्दों पर मधुमेह का असर बताया है तो इसमें निराश होने की कोई बात नहीं है गुर्दा रोग को किसी भी स्टेज में आपके सहयोग से नियंत्रित किया जा सकता है जरूरत इस बात की है कि आप अपने रोग की स्थिति के बारे में विस्तार से जाने और उपचार में किसी भी तरह की लापरवाही ना बरते.
मधुमेह के कारण होने वाला गुर्दा रोग जिसे डायबिटिक नेफ्रोपैथी कहा गया है लंबे समय से चल रहे अनियंत्रित मधुमेह के कारण होता है सामान्यतः वे रोगी जो पिछले 10 -15 वर्षों से मधुमेह से पीड़ित है और उनका ब्लड शुगर अनियंत्रित रहा है इस रोग की चपेट में आ जाते हैं यह रोग तब और जल्दी देखने को मिलता है जब रोगी अनियंत्रित रक्तचाप से भी पीड़ित रहा हो. जिन मधुमेह रोगियों में गुर्दा रोग का प्रारंभिक इतिहास रहा है वह भी इस रोग से पीड़ित होने की अधिक प्रवृत्ति रखते हैं.वयस्क अवस्था में होने वाली जिसे टाइप टू डायबिटीज कहा गया है प्रायः प्रारंभ में विशेष कोई लक्षण नहीं देती और उसका निदान प्रायः बहुत देर में हो पता है सही समय पर इसका पता तभी चलता है जब व्यक्ति अपने रक्त की जांच समय-समय पर करता रहे अतः यह संभव है की आपको मधुमेह काफी पहले से रहा हो और उसके नियंत्रण में ना रहने से गुर्दे और अन्य अंगों में क्षति प्रारंभ हो गई हो जिस समय आपको डायबिटीज की जानकारी हुई हो सकता है उसे समय गुर्दा रोग भी उपस्थित हो
प्रायः डायबिटीज का असर आंख के पर्दे ( रेटिना ) पैरों की नसें और गुर्दों पर एक साथ पड़ता है इन्हें एक साथ माइक्रो वैस्कुलर जटिलता कहा जाता है इसके साथ दिमाग ‘हृदय ‘पैरों की रक्त बहनिया और लीवर को भी मधुमेह जनित गुर्दा रोग से ग्रसित पाया जाता है इसलिए आवश्यक होता है इन सभी अंगों की जांच कर ली जाए यदि शुरुआती असर है तो उनको भी बढ़ने से रोका जा सकता है मधुमेह का गुर्दों पर असर एक लंबी प्रक्रिया है जिसकी शुरुआत में पता भी नहीं चल पाता है व्यावहारिक रूप से मधुमेह जनित गुर्दा रोग को तीन चरणों में बांटा जा सकता है
1 माइक्रो प्रोटीन यूरिया स्टेज
इस चरण का पता कुछ खास जांचों से चल पाता है सामान्यतः मूत्र में एल्ब्यूमिन की मात्रा प्रतिदिन 30 मिलीग्राम से कम निकलती है यह इस मात्र से अधिक है तो रोगी इस स्टेज में आता है इस स्टेज में यदि शुगर पर प्रभावी नियंत्रण किया जाए तो रोगी में गुर्दों की बीमारी को रोका जा सकता है
2 Mekoprotine यूरिया स्टेज
यह रोग का दूसरा चरण है इसमें गुर्दों से प्रोटीन का रिसाव 300 मिलीग्राम से कुछ ग्राम प्रतिदिन तक हो सकता है इस स्टेज में गुर्दों की कार्य क्षमता धीरे-धीरे कम हो जाती है और यदि रोग की तीसरी और अंतिम स्थिति आ जाती है तो इस चरण में उच्च रक्तचाप को अच्छा कंट्रोल रोग को आगे बढ़ाने की दर को कम करता है
3 गुर्दा रोग की बढ़ी स्थिति
इस चरण में रोगी को अपने जीवन को बचाने के लिए डायलिसिस या गुर्दा प्रत्यारोपण की आवश्यकता पड़ती है
गुर्दा रोगियों को अपना रक्तचाप 130-70 या उससे कम रखने का प्रयास करना चाहिए अनेक दवाई विशेष लाभप्रद पाई गई है इससे न केवल गुर्दा अपितु हृदय को भी सुरक्षा मिलती है. रोगी को चाहिए कि वह नमक ,पानी का प्रयोग भी कम करें पानी की अधिक मात्रा रोगी के शरीर में रुक जाती है और उसके रक्तचाप को भी प्रभावी ढंग से नियंत्रित नहीं किया जा सकता
गुर्दा रोगियों को रोग नियंत्रण के लिए अधिक प्रोटीन और फास्फेट युक्त भोजन फलों के रस तथा नमक और पानी के अत्यधिक प्रयोग से बचना चाहिए हमारे देश में शुद्ध शाकाहारी भोजन में प्राय प्रोटीन की मात्रा अधिक नहीं होती अतः उसमें किसी तरह की कटौती की आवश्यकता नहीं होती
जीवन शैली में परिवर्तन
जीवन शैली में परिवर्तन करते हुए प्रातः कालीन 20 से 30 मिनट तक क्षमता के हिसाब से सैर करना एक अच्छा व्यायाम है साइकिलिंग और तैराकी यदि व्यावहारिक हो तो रोगी को करना चाहिए धूम्रपान अल्कोहल और नशीले पदार्थों का सेवन रोगी के लिए विशेष रूप से हानिकारक है रोगी को मानसिक तनाव और अवसाद से बचना चाहिए अवसाद या डिप्रेशन रक्तचाप शुगर को नियंत्रित किया जाना चाहिए बाहर की खुली चीज ना खाएं फलों के रस से बचे एक या दो कम मीठे फल ले सकते हैं दर्द नाशक दवाई गुर्दों के लिए विशेष रूप से हानिकारक होती है यदि मधुमेह के कारण पहले से गुर्दा रोग है तो दवाओं के कारण इस रोग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है केवल कुछ सुरक्षित दवाई अपने चिकित्सक से पूछ कर ले सकते हैं
डॉ संत पाण्डेय
एमबीबीएस एमडी डीएम नेफ्रोलॉजी वरिष्ठ किडनी रोग विशेषज्ञ हैं