(www.arya-tv.com) लखनऊ. लखनऊ नबावों का शहर है. यहां के रिवाज नफासत और नजाकत के हैं. एक से बढ़कर एक इमारतें और परंपराएं इस शहर की हैं. यहां की हवेलियां महल, इमारतें, बाजार पर्यटकों को हमेशा लुभाते रहते हैं. नवाबी दौर की इन इमारतों के बीच एक ऐसी कोठी है जहां संगीत की मधुर धुन सुनायी देती हैं.
लखनऊ में यूं तो तमाम कोठियां और इमारतें हैं जिसे नवाबों ने बनवाया था. इन सभी में आपको पर्यटक घूमते मिल जाएंगे लेकिन नवाबों के गढ़ से काफी दूर आलमबाग नाम की ऐसी कोठी है जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं. यह कोठी बाहर से देखने में यह जितनी आकर्षक लगती है, अंदर से पूरी तरह खंडहर है. खास बात यह है इस कोठी के अंदर जाते ही आपको ऐसा लगेगा जैसे चारों ओर से मधुर धुन बज रही हो. यह ध्वनि काफी धीमी होती है लेकिन साफ सुनाई देती है.
वाजिद अली शाह ने अपनी बेगम के लिए बनवायी थी ये कोठी
आलमबाग कोठी को अवध के आखिरी नवाब नवाब वाजिद अली शाह ने बनवाया था. कहते हैं 1822 से1887 के बीच उन्होंने इस कोठी को अपनी पहली बेगम आलम आरा के लिए बनवाया था. नवाब वाजिद अली शाह संगीत और साहित्य में काफी दिलचस्पी रखते थे. उनकी पहली बेगम आलम आरा भी शायरी करती थीं.उन्हें भी कविताएं लिखना बेहद पसंद था. दोनों इसी कोठी में बैठकर संगीत, धुन, साहित्य, कला और कविता पर चर्चा करते थे. कहते हैं गर्मियों में सुकून के लिए भी नवाब वाजिद अली शाह अपनी बेगम के साथ यहीं पर रहते थे.
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की निशानी
इतिहासकार डॉ. रवि भट्ट कहते हैं 1857 की क्रांति के दौरान क्रांतिकारियों ने इसे ही अपनी ठिकाना बनाया था. यहां बेगम हजरत महल को भी हाथी पर बैठकर सेना का नेतृत्व करते देखा गया था. 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों ने इस पर कब्जा कर लिया और इसे अस्पताल बना दिया था. जब भारत को आजादी मिली और देश का विभाजन हुआ तब कई शरणार्थी यहां रहने लगे थे.
कोठी में संगीत की धुन
आलमबाग कोठी दो मंजिला है. इमारत भव्य है. यह लखौरी ईटों से बनाई गई है. इसमें दीवारों से लेकर सीढियों तक पर खूबसूरत कारीगरी की गयी है. अंदर की एक-एक दीवार पर बारीक कारीगरी है. पीछे काफी बड़ा बाग है. इसके सामने भी काफी खुला हुआ मैदान है. देखने लायक इस कोठी को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित नहीं किया गया है. इसलिए ज्यादातर पर्यटक इसके बारे में जानते ही नहीं हैं.