(www.arya-tv.com)अयोध्या में राम मंदिर का मुख्य हिस्सा बनकर तैयार हो रहा है. 22 जनवरी को इसमें भगवान राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होगी. इस मंदिर के बनने का सफर लंबा और मुश्किल रहा है. 31 साल पहले तक यहां बाबरी मस्जिद होती थी. जिसे 06 दिसंबर 1992 को वहां पहुंचे हजारों कारसेवकों ने तोड़ दिया था. जब ये मस्जिद टूटी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव पर भी आरोप लगे. विरोधी दलों ने उन पर जानबूझकर मस्जिद टूटवाने का आरोप लगाया. कई किताबें भी इसी तरह की आईं कि तब नरसिंहराव इसके जरिए राजनीति की चालें चल रहे थे. एक किताब में कहा गया कि उन्होंने मस्जिद को टूटने से बचाने के लिए कुछ नहीं किया बल्कि उसी समय घंटों पूजा पर बैठ गए. क्या है सच्चाई. तब क्या कर रहे थे पीवी नरसिंहराव.
जाने माने दिवंगत पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी आत्मकथात्मक किताब ‘बियॉंड द लाइन्स’ में इस बारे में विस्तार से लिखा है. उन्होंने लिखा, “समाजवादी नेता मधु लिमये ने मुझे बताया कि इस पूजा के दौरान जब राव के एक सहयोगी ने उनके कान में कहा कि मस्जिद नेस्तनाबूद कर दी गई, तब कुछ ही सेकंडों में पूजा संपन्न कर राव उठे. वह मस्जिद टूटने के दौरान घंटों पूजा पर बैठे रहे. बल्कि ये हिदायत भी दे गए कि मुझको डिस्टर्ब नहीं किया जाए.’ क्या ये बात वाकई सच है.
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक कुलदीप नैयर ने इस किताब में सीधे तौर पर तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव कोबाबरी ध्वंस के लिए ज़िम्मेदार ठहरा दिया था. हालांकि उनके दावों को राव के बेटे पीवी रंगा राव ने पूरी तरह नकार दिया. इन्हें बेबुनियाद करार दिया. रंगा राव ने कहा था :

वास्तव में, 6 दिसंबर 1992 को सुबह से ही हजारों की संख्या में कारसेवक बाबरी ढांचे के आसपास इकट्ठे होने लगे थे. ये भीड़ दोपहर के बाद तक बढ़ती चली गई. शाम होते होते भीड़ में बहुत से कारसेवक ढांचे के गुंबद पर चढ़ गए. इसे तोड़ा जाने लगा. कुछ घंटे की मेहनत के बाद इसे ढहा दिया गया.