जब लंदन में ऐसे ही घने स्मॉग ने एक दिन में ले लीं थीं हजारों जानें, दिन में छा गया था गहरा अंधेरा, भर गए थे अस्पताल

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(www.arya-tv.com) जिस तरह का स्मॉग इन दिनों दिल्ली-एनसीआर में छाया हुआ था. उसी तरह का स्मॉग करीब 70 साल पहले जब लंदन में भी गहराया तो लोगों को लगा कि कुछ नहीं होगा लेकिन ये समझना उनकी भूल थी. स्मॉग ने इतनी खतरनाक शक्ल अख्तियार कर ली कि दिन में अचानक अंधेरा छा गया. हजारों लोग मर गए. अस्पताल भर गए. वो भी एक बहुत भयावह मंजर था.

ठीक 70 साल पहले लंदन का वो दिन यकायक काला हो गया. दिन में रात हो गई. सूरज की रोशनी दिखनी बंद हो गई. हवा इतनी काली और दमघोंटू हो गई कि लोग टपाटप मरने लगे. आज भी वो घटना इंग्लैंड ही नहीं पूरी दुनिया को डराती है.  उसे “ग्रेट स्मॉग ऑफ लंदन” कहते हैं. लंदन की सड़कों पर हर ओर कालिमा छाई हुई थी. लोग अस्पतालों की ओर भाग रहे थे. देखते ही देखते चार दिनों में 4000 लोगों की मौत हो गई. वैसे इस स्मॉग से कुल मिलाकर 12000 लोगों की जानें गईं. ये भयावह अंधेरा ब्रिटेन की राजधानी लंदन में 1952 में दिसंबर के शुरुआती दिनों में बरपा था.

इस अंधेरे स्मॉग से लंदन के लोग थर्रा उठे थे. इससे बड़ा वायु प्रदूषण यहां उससे पहले नहीं देखा गया था. दिसंबर की शुरुआत में स्मॉग से अंधेरे की चादर ही नहीं फैली बल्कि ठंड भी चरम पर थी. हवाएं नहीं चल रही थीं. इसने हवा में प्रदूषण को पैर पसारने का पूरा मौका दिया. वैसे ये स्मॉग पैदा हुआ कोयले के इस्तेमाल से-जिसने पूरे शहर के ऊपर एक मोटी काली चादर बिछा दी थी.

ये स्मॉग एक दो दिन नहीं रहा बल्कि 05 दिसंबर से शुरू होकर अगले पांच दिनों यानि 09 दिसंबर 1952 तक बना रहा. तभी छंटा, जब मौसम में बदलाव आया. दृश्यता कम हो गई. ये स्मॉग घरों और बंद जगहों में भी घुस आया. हालांकि लंदन पहले भी दशकों से स्मॉग को झेलता आया था लेकिन ये सबसे बड़ा झटका था. कुछ लोगों ने इसे पी-सूपर्स कहा यानि मटर के सूप जैसा घना.सरकार की मेडिकल रिपोर्ट्स जो अगले कुछ हफ्तों तक इस आपदा के बारे में बताती रहीं. अनुमान लगाया गया कि 08 दिसंबर 1952 तक चार दिनों में ही इससे 4000 लोग मर गए. ये स्मॉग की उनके सेहत पर सीधी मार थी. इसके अलावा एक लाख से ज्यादा इसके प्रभावों से बीमार पड़े.

लोगों का स्नायु तंत्र बुरी तरह से प्रभावित हुआ. फेफड़े संक्रमित हो गए. सांस की बीमारियां हो गईं. गले में समस्या हो गई. आंखों में बुरी तरह जलन शुरू हो गई. हालांकि बाद में हुए शोध बताते हैं कि उसमें 6000 से ज्यादा लोग मरे थे और एक लाख से ज्यादा लोग स्मॉग के असर से बीमारियों का शिकार हो गए. इसका प्रभाव आने वाले महीनों में भी जारी रहा.

हालांकि लंदन में हवा में प्रदूषण 13वीं सदी से ही शुरू हो गया था. 1301 में एडवर्ड प्रथम ने लंदन में इसी के चलते कोयला जलाने पर रोक लगा दी थी. 16वीं सदी तक आते आते हवा खासी जहरीली हो चली थी. लेकिन ग्रेट स्मॉग ब्रिटेन के इतिहास में वायु प्रदूषण की सबसे खराब घटना थी.