(www.arya-tv.com) पितरों को प्रसन्न करने के लिए पितृपक्ष में तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान किया जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितृपक्ष में ऐसा करने से पितरों के आत्मा को शान्ति मिलती है. इसके अलावा घर में भी सुख शांति और समृद्धि बनी होती है. इस साल पितृपक्ष की शुरुआत 29 सितंबर से हो रही जो 14 अक्टूबर तक चलेगा. पितृपक्ष में तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान के समय कुशा को जरूर धारण करना चाहिए.
काशी के अस्सी घाट के तीर्थ पुरोहित ने बताया की कुशा एक पवित्र घास है. जिसे प्रवित्रता के लिए धारण किया जाता है. दाएं हाथ की अनामिका अंगुली में कुशा को धारण करते है. अंगूठी के रूप में कर्मकांड के समय इसे धारण किया जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कुशा धारण करने से पवित्रता बनी रहती है जिससे तर्पण और श्राद्ध को पितर स्वीकार करते हैं
.प्यूरीफायर के तौर पर होता है इस्तेमाल
विज्ञान भी ऐसा मानता है कि कुशा को प्यूरीफायर के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. यह घास जहां भी पैदा होता है वहां पवित्रता बनी रही है. इसके अलावा कुश के जरिए जल से बैक्टीरिया को भी दूर किया जाता हैं. सप्तपुरियों में से एक काशी में पितृपक्ष के 15 दिनों में तर्पण,श्राद्ध और पिंडदान के लिए भीड़ लगी होती है.वाराणसी के घाटों के अलावा,माता कुंड,पिशाच मोचन के साथ दूसरे कुंड कुंड तालाबों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखने को मिलती है.