देश का पहला विश्वविद्यालय, जहां खुला हिंदी विभाग:1920 में हिंदी बनी ग्लोबल भाषा

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(www.arya-tv.com)  आज से 103 साल पहले काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से हिंदी की विधिवत पढ़ाई शुरू हुई। देश में पहली बार भारतीयों द्वारा डिजाइन किए गए सिलेबस के आधार पर हिंदी की शिक्षा विश्वविद्यालय में शुरू हुई। हिंदी की शिक्षा को 1916 से ही दी जा रही है, मगर 1920 में बीएचयू में हिंदी विभाग की स्थापना हुई। हालांकि, इससे पहले कोलकाता के फोर्ट विलियम कॉलेज में हिंदी को एकेडमिक विषय के तौर पर शामिल किया गया था। मगर, भारत सहित विदेशों में हिंदी की पहुंच बीएचयू ने बनाई।

हिंदी में पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्स की शुरुआत करने वाला पहला विश्वविद्यालय भी बीएचयू बना। हिंदी को ग्लोबल भाषा का दर्जा दिलाने में यहां के शिक्षक आचार्य रामचंद्र शुक्ल, संस्थापक भारतरत्न पंडित मदन मोहन मालवीय और आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का बहुत बड़ा रोल था

बीएचयू में हिंदी के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. सदानंद शाही ने बताया कि देश में पहली बार हिंदी आलोचना की शुरुआत यहीं से हुई। नामवर सिंह बीएचयू को भारत का कैंब्रिज मानते थे। कहते थे कि कैंब्रिज में चार बड़े आलोचक हुए- आईए रिचर्ड्स, एफआर लीविस, विलियम एम्पसन और रेमंड विलियम्स। बीएचयू के तीन आलोचकों का नाम मैं ले सकता हूं- रामचंद्र शुक्ल, नंददुलारे वाजपेयी और हजारी प्रसाद द्विवेदी। रामस्वरूप चतुर्वेदी ने जब काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग को “हिंदी आलोचना का गुरुकुल” कहा।

पंडित मालवीय ने कोर्ट में हिंदी को दिलाया दर्जा

बीएचयू के पूर्व कार्यविशेष अधिकारी डॉ. विश्वनाथ पांडेय के मुताबिक, 1893 से लेकर 1903 तक महामना मदन मोहन मालवीय कोर्ट की भाषा हिंदी करने की लड़ाई लड़ते रहे। 1903 में उन्हीं की बदौलत काेर्ट में अंग्रेजी और उर्दू के साथ हिंदी को भी शामिल कर लिया गया। इसके बाद जब बीएचयू का पहला प्रस्ताव 1905 में कांग्रेस के बनारस अधिवेशन में महामना मदन मोहन मालवीय ने प्रस्तुत किया तो, विज्ञान और तकनीक की शिक्षा भारतीय भाषाओं में कराने की बता कही थी। 1920 में बनारस के एक साहित्य सम्मेलन में उन्होंने कहा था कि हिंदी की जननी कही जाने वाली संस्कृत भाषा का शब्द भंडार दुनिया के हर भाषाओं से बड़ा है। हम यह कैसे कह सकते हैं कि हिंदी इंजीनियरिंग और आधुनिक विज्ञान के लिए अयोग्य है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने बीएचयू के लिए छोड़ा अलवर राज दरबार

चिथड़े लपेटे चने चाबेंगे चौखट चढ़ि, चाकरी न करेंगे ऐसे चौपट चांडाल की। ये लाइन बीएचयू के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष आचार्य रामचंद्र शुक्ल के हैं।​​ ये उन्होंने राजस्थान के अलवर राज के लिए बोली थी। रात को 12 बजे अलवर राजा ने आचार्य शुक्ल को जगाकर ‘खेहर’ शब्द का अर्थ पूछा, उन्होंने अर्थ बताया और अगले दिन वापस काशी आ गए। राजा ने अपने सचिव को बनारस भेजा। शुक्ल जी को वापस अलवर आने का आग्रह किया। मगर, उन्होंने इंकार करते हुए ऊपर वाला काब्य लिख कर भेजा था।