(www.arya-tv.com)बिग बी…एंग्री यंगमैन…शहंशाह…डॉन…स्टार ऑफ द मिलेनियम। ऐसे कई नाम हैं अमिताभ बच्चन के। सदी के महानायक अमिताभ आज 80 साल के हो गए हैं। सात हिंदुस्तानी से शुरू हुआ फिल्मों का सफर ब्रह्मास्त्र और गुडबाय तक जारी है। 4-5 फिल्में रिलीज की कतार में हैं। जिंदगी के 8वें दशक में अमिताभ किसी यंगएज स्टार की तरह एक्टिव हैं।
अमिताभ बॉलीवुड का कोई किस्सा नहीं हैं, एक मुकम्मल चैप्टर हैं। इस चैप्टर में कई कहानियां हैं। कुछ बहुत सुनी-सुनाई और कुछ अनसुनी सी। 110 साल के इंडियन सिनेमा में 50 साल अमिताभ के हैं। इन 50 सालों को एक साथ समेटना भी लगभग नामुमकिन ही है। कैसे कोलकाता में एक लड़की से अधूरी मोहब्बत अमिताभ को मुंबई ले आई। यहां एक के बाद एक ऑडिशन में रिजेक्ट हुए ऑल इंडिया रेडियो से फिल्मों तक। एक फिल्म मिली सात हिंदुस्तानी, लेकिन फ्लॉप। 14 में से 12 फिल्में फ्लॉप और करियर लगभग खत्म होने को था। फिर मिली जंजीर। जंजीर ने बॉलीवुड और अमिताभ को आपस में ऐसा बांधा कि आज भी इन दोनों को अलग-अलग सोचना संभव नहीं है।
पहली अधूरी मोहब्बत, जो ले आई मुंबई
किस्से की पहली कड़ी शुरू होती है अमिताभ की अधूरी मोहब्बत से। जब 1963 में 21 साल के अमिताभ काम की तलाश में इलाहबाद से कोलकाता आए। कोलकाता में शॉ वैलेस नाम की शराब कंपनी और शिपिंग फर्म बर्ड एंड क. में क्लर्क बने। एक्टिंग में रुचि थी तो खाली समय में थिएटर किया करते थे। कोलकाता में रहते हुए अमिताभ ने ICI कंपनी में भी काम किया, जहां उनकी मुलाकात एक लड़की चंद्रा से हुई जो कि महाराष्ट्रियन थी। अमिताभ की तनख्वाह 1500 थी और चंद्रा की 400 रुपए। साथ काम करने वाली चंद्रा अमिताभ का पहला प्यार थीं। वो शादी भी करना चाहते थे, लेकिन लड़की ने इनकार कर दिया। दिल टूटने के गम से उबरने के लिए अमिताभ ने पहले नौकरी छोड़ी, फिर शहर। 26 दिन की तनख्वाह भी काट ली गई, लेकिन वो बस दूर जाना चाहते थे। बाद में वही लड़की एक फेमस बंगाली एक्टर की पत्नी बनी। कोलकाता छोड़कर अमिताभ सपनों के शहर मुंबई आ पहुंचे। काम ढूंढने की मशक्कत फिर शुरू हुई।
6 फीट 3 इंच का कद और छरहरा शरीर, सांवली रंगत और भारी आवाज। जहां गए वहां निराशा हाथ लगी। नौकरी मांगने के सिलसिले में अमिताभ रेडियो स्टेशन भी पहुंचे। ऑडिशन दिया तो उस जमाने की मशहूर आवाज रहे अमीन सयानी ने ये कहते हुए भगा दिया कि तुम्हारी आवाज सुनकर लोग डर जाएंगे।
अमिताभ को बचपन से ही अभिनय में रुचि थी, लेकिन मां-बाप चाहते थे कि वो कोई नौकरी करें। एक दिन ट्रेन से मुंबई से दिल्ली जाते हुए अमिताभ के भाई अजिताभ को साथ बैठे लड़के से पता चला कि ख्वाजा अब्बास अपनी फिल्म के लिए नए चेहरे की तलाश में हैं। उन्होंने झट से भाई की तस्वीर निकाली और उस लड़के को थमा दी। अगले ही दिन ख्वाजा अब्बास ने अमिताभ को मिलने बुलाया। वो दिल्ली से मुंबई आए। सफेद चूड़ीदार, सफेद कुर्ते के साथ नेहरू जैकेट पहनकर अमिताभ पहुंच गए। नाम पूछने पर जवाब मिला- अमिताभ और फिर बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ।
ख्वाजा- क्या तुमने इससे पहले कभी फिल्मों में काम किया है।
अमिताभ- जी नहीं, लोगों ने मुझे कभी फिल्मों में लिया ही नहीं।
ख्वाजा ने वजह पूछी तो जवाब में अमिताभ ने कई बड़ी हस्तियों के नाम लिए।
ख्वाजा- उन्हें आप में क्या दिक्कत नजर आई।
अमिताभ- उन्हें लगता था कि मैं हीरोइनों के हिसाब से काफी लंबा हूं।
ख्वाजा- हमारे साथ ऐसी कोई दिक्कत नहीं है, क्योंकि हमारी फिल्म में हीरोइन नहीं है। होती तब भी तुम्हें ले लेते।
अमिताभ- आप मुझे फिल्म में ले रहे हैं? क्या वाकई आप मुझे फिल्म में ले रहे हैं? बिना टेस्ट के?
ख्वाजा- पहले तुम स्टोरी सुन लो फिर रोल और फीस जान लो। अगर तुम तैयार हुए तो कॉन्ट्रैक्ट साइन करेंगे।
बातों-ही-बातों में जब ख्वाजा अब्बास को पता चला कि अमिताभ हरिवंश राय बच्चन के बेटे हैं तो उन्होंने पूछा- क्या घर से भागकर आए हो। अमिताभ ने जवाब में ना कहा। इसके बावजूद ख्वाजा अब्बास ने हरिवंश राय बच्चन को खत लिखकर पूछा कि कहीं उन्हें बेटे के फिल्मों में आने पर ऐतराज तो नहीं। जब खत के जवाब में सहमति मिली तो ख्वाजा ने 5 हजार रुपए देकर अमिताभ को साइन कर लिया। 15 फरवरी 1969 को अमिताभ ने फिल्म साइन की जो 7 नवंबर 1969 को रिलीज हुई।