(www.arya-tv.com) आज श्राद्ध पूर्णिमा है। गया तीर्थ की मान्यता रखने वाले काशी के चेतगंज क्षेत्र स्थित पिशाच मोचन कुंड पर आज से पितरों (पूर्वजों) को अकाल मृत्यु और प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध शुरू हो गया है। पितृ पक्ष का समापन आगामी 25 सितंबर को होगा। इस दौरान जिसके पितर जिस तिथि को परलोक सिधारे होंगे, उसी तिथि को उनका श्राद्ध कर्म किया जाएगा।
बीते दो साल कोरोना महामारी की काली छाया के कारण पितृ पक्ष में सनातन धर्मी पिशाच मोचन कुंड नहीं आ पाए थे। तीर्थ पुरोहितों का कहना है कि अब सब कुछ सामान्य हो गया है। इसलिए पहले के जैसे ही पितृ पक्ष में रोजाना 40 से 50 हजार श्रद्धालु अपने पितरों के श्राद्ध कर्म के लिए मोक्ष की नगरी काशी के पिशाच मोचन कुंड आएंगे।
पिशाच मोचन कुंड के बारे में गरुड़ पुराण में बताया गया है। काशी खंड के अनुसार पिशाच मोचन तीर्थ स्थल गंगा के धरती पर आने से पहले का है। इस कुंड के किनारे बैठ कर अकाल मृत्यु की शिकार हुए पितर के लिए श्राद्ध कर्म करने से उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है।तीर्थ पुरोहितों के अनुसार पितृ पक्ष में पितरों के लिए 15 दिन स्वर्ग का दरवाजा खोल दिया जाता है। पिशाच मोचन कुंड अनादि काल से है। अकाल मृत्यु का शिकार हुए सनातन धर्मियों के लिए देश भर में सिर्फ यहीं त्रिपिंडी श्राद्ध होता है और नारायण बलि का प्रावधान भी है। त्रिपिंडी श्राद्ध से उनकी आत्मा को शांति और मुक्ति मिलती है।
पिशाच मोचन कुंड पर यह पीपल का पेड़ है। मान्यता के अनुसार पीपल के वृक्ष पर भटकती आत्माओं को बैठाया जाता है। इसके लिए पेड़ पर सिक्का रखवाया जाता है ताकि पितरों का सभी उधार चुकता हो जाए और वह सभी बाधाओं से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकें। इसके साथ ही श्राद्ध कर्म करने वाला यजमान भी पितृ ऋण से मुक्ति पा सकें।काशी को प्रथम पिंड कहते हैं। सबसे पहले लोग काशी में पिशाच मोचन कुंड पर आकर पिंड दान करते हैं। उसके बाद गया और फिर अंत में केदारनाथ जाते हैं। मान्यता यह भी है कि पिशाच मोचन कुंड में स्नान करने से तमाम तरीके की बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
पिशाच मोचन तीर्थ पर अश्वदान की निराली परंपरा है। यह विधान न तो प्रयागराज और ना श्राद्ध के तीर्थ स्थल गया में ही है। काशी में भी अश्व दान का स्थान निर्दिष्ट है। श्राद्ध कर्म के दौरान यह दुर्लभ दान है। अश्वदान के बाद यजमान प्रेत कुंड में पिंड डालने का अधिकारी होता है।काशी के ज्योतिषाचार्य आचार्य दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री के अनुसार पितृ पक्ष में पितरों की प्रसन्नता के लिए 15 दिन तक बाल और दाढ़ी नहीं कटवाना चाहिए। बाल और दाढ़ी कटवाने से धन की हानि होती है। श्राद्ध पक्ष में सात्विक भोजन करना चाहिए। पितृ पक्ष में तामसिक भोजन से परहेज करना चाहिए। श्राद्ध पक्ष में लहसुन-प्याज नहीं खाना चाहिए।
ब्रह्म पुराण में पंचबलि का बहुत ही बड़ा महत्व है, इसे करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। पंचबलि के लिए सबसे पहला ग्रास (भोजन) गाय के लिए निकाला जाता है। दूसरा ग्रास कुत्ते को देना चाहिए। तीसरा ग्रास कौआ को दिया जाता है। चौथा ग्रास देव बलि होता है, जिसे जल में प्रवाहित कर दें या फिर गाय को दें। पांचवा ग्रास चीटियों के लिए रख देना चाहिए।