BHU के वैज्ञानिक येति के रहस्य से उठाएंगे पर्दा:लद्दाख पर चीन के दावे की पता चलेगी सच्चाई

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(www.arya-tv.com) हिम मानव यानी ‘येति’ कौन थे? उनका अस्तित्व था भी या नहीं। यह केवल एक कल्पना है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के रिसर्चर इन रहस्यों से पर्दा उठाएंगे। इस पर रिसर्च किया जा रहा है। जूलॉजी विभाग के वैज्ञानिक प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे 15 शोधार्थियों के साथ हिमालय पर 18 हजार फुट की ऊंचाई से सैंपल इकट्‌ठा किया है।

BHU की रिसर्च टीम 1 से 11 अगस्त तक लद्दाख में रही। वहां के इंसानों, 2 कूबड़ वाले ऊंटों, चींटा और गर्म पानी के जल स्रोतों के सैंपल लिए। दल 12 अगस्त को वाराणसी लौटा है। 13 से सैंपल पर एनालिसिस शुरू हो गई है। BHU के लैब में गर्म जल स्रोतों के सैंपल पर टेस्टिंग चल रही है।

इससे हिमालय में एनिमल बायो डायवर्सिटी काे समझने में मदद मिलेगी। हिमालय के पहले मानव की ओरिजिन, विस्तार और उनकी विकास यात्रा की भी जानकारी होगी। लद्दाख के हॉट स्प्रिंग एरिया, घाटियों, लद्दाख के लोगों और तमाम संसाधनों पर से चीनी दावों को खारिज किया जा सकेगा।

“पांच साल तक चलेगा रिसर्च”
प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया, “मैं अपनी टीम के साथ लद्दाख पहुंचा। वहां 3 लाख की आबादी है। वहां के लोगों के सैंपल लिए। लेह में चांगपा जनजाति बस्तियों में गए। वहां पर जियो टैगिंग भी किया। लेह घाटी, चामथांग घाटी और मूंगा घाटी से लेकर गरम पानी के नेचुरल कुंड और पैंगोंग लेक से सैंपल लिए गए हैं। इस पर 5 साल तक रिसर्च होगा।”

प्रोफेसर ज्ञानेश्वर ने बताया, “हिमालय पर पहले इंसान डेनिशॉवन जाति के थे। इनका अस्तित्व 40 हजार साल पहले ही खत्म हो गया। कुछ लोग इन्हें भी हिम मानव कहते हैं। वहीं, पहले के रिसर्च में साबित हो चुका है कि इन लोगों में पाए जाने वाला EPAS 1 जीन ही ऊंचाई वाले (हाई एल्टीट्यूड) क्षेत्रों में रहने के लिए मदद करता था।”

प्रोफेसर ज्ञानेश्वर ने कहा, “मैदानी लोगों में यह जीन नहीं देखा गया। वहीं, 40 हजार साल पहले इनका आधुनिक हिमालयी मानवों के साथ मेल-मिलाप हुआ था। डेनिशवन तो विलुप्त हो गए, मगर उनका जीन आज भी हिमालयी जनजातियों में मौजूद है। इस रिसर्च के बाद यह जान सकेंगे कि हिम मानवों का क्या वजूद है।”

BHU और CCMB हैदराबाद में सैंपल पर होगा एनालिसिस
राखीगढ़ी उत्खनन में रहे पुराविद प्रोफेसर वसंत शिंदे ने कहा, “इस रिसर्च से यह पता चलेगा कि इतनी ऊंचाई पर कम ऑक्सीजन में लोग कैसे सरवाईव कर रहते हैं? माइनस 30-40 डिग्री सेल्सियस ठंड सहने के बाद भी कोई बीमारी नहीं होती। आखिरकार, इनके पीछे जिम्मेदार जीन का इतिहास क्या है? लद्दाख की किन-किन जातियों में पाया जाता है? सारे सैंपल BHU और CCMB हैदराबाद में एनालिसिस किए जाएंगे।”

चीन के दावों को भी खारिज किया जाएगा
प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया, “इस रिसर्च से चीनी दावों को भी खारिज किया जा सकेगा कि लद्दाख के लोग उनसे संबंधित थे। चीन पैंगोंग लेक और हॉट स्प्रिंग एरिया समेत कई जगहों पर दावा करता रहता है।जवाब देने के लिए इन सारे जगहों से स्टडी के लिए सैंपल जुटाया है।”

पूरे देश के वैज्ञानिक रहे शामिल
BHU के वैज्ञानिकों की टीम ने यूनिवर्सिटी ऑफ लेह के वाइस चांसलर प्रो. एसके मेहता से मुलाकात कर वैज्ञानिक शोधों के एक्सचेंज पर भी चर्चा की। उस स्कूल में भी गए जहां पर थ्री इडियट फिल्माया गया था। सदस्यों ने नोमेडिक बच्चों के रिहायशी स्कूल में इस रिसर्च के उद्देश्यों से परिचित कराया।

इस रिसर्च टीम में BHU से डॉ. सचिन तिवारी, डॉ. चंदना बसु, डॉ. राहुल मिश्रा, उरग्यन चोरोल, प्रज्ज्वल प्रताप सिंह, अंशिका श्रीवास्तव, देबश्रुति दास, अद्दितिया बंदोपाध्याय, रुद्र पांडे, वान्या सिंह और CSIR-CCMB से प्रो. वसंत शिंदे, डॉ. नागार्जुन, पदमश्री डॉ. त्सेरिंग नोरबू और हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ आर्कियोलॉजी एंड एलाइड साइंसेज की निदेशक डॉ. सोनम स्प्लांजिन और डॉ. स्टैनजेन शामिल थे।