चार साल बाद भारी हंगामा, तीखी नोकझोंक और वार-पलटवार के बीच लोकसभा के बाद राज्यसभा ने भी बुधवार को नागरिकता संशोधन बिल पर मुहर लगा दी। इसके साथ ही तीन पड़ोसी देशों बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यक शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने का रास्ता साफ हो गया है। बिल के समर्थन में 125 और विरोध में 105 मत पड़े। इसके साथ ही विपक्ष की ओर से पेश सभी 43 संशोधन भारी अंतर से गिर गए। बिल को सेलेक्ट कमेटी में भेजे जाने का प्रस्ताव भी गिर गया।
 इससे पहले इस बिल पर चर्चा के दौरान सरकार और विपक्ष के बीच तीखी बहस हुई। हंगामा इतना बढ़ा कि सभापति वेंकैया नायडू को कार्यवाही का प्रसारण दो बार रोकना पड़ा। विपक्ष ने सरकार पर इस बिल के जरिये अपना सांप्रदायिक एजेंडा चलाने और मुसलमानों को निशाने पर लेने का आरोप लगाया। बिल को असंवैधानिक और संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत मिले समानता के अधिकार के खिलाफ बताया। विपक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार ध्यान बंटाने के लिए इस बिल के जरिए देश में सांप्रदायिक भेदभाव पैदा कर रही है।
इससे पहले इस बिल पर चर्चा के दौरान सरकार और विपक्ष के बीच तीखी बहस हुई। हंगामा इतना बढ़ा कि सभापति वेंकैया नायडू को कार्यवाही का प्रसारण दो बार रोकना पड़ा। विपक्ष ने सरकार पर इस बिल के जरिये अपना सांप्रदायिक एजेंडा चलाने और मुसलमानों को निशाने पर लेने का आरोप लगाया। बिल को असंवैधानिक और संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत मिले समानता के अधिकार के खिलाफ बताया। विपक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार ध्यान बंटाने के लिए इस बिल के जरिए देश में सांप्रदायिक भेदभाव पैदा कर रही है।
जवाब में गृह मंत्री ने विपक्ष के सभी आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि अगर देश का बंटवारा धर्म के आधार पर नहीं होता और पूर्व में विभिन्न दल महज सरकार बचाने के लिए परिस्थितियों से दो-दो हाथ कर समाधान निकालते तो बिल की जरूरत नहीं पड़ती। शाह ने कहा कि बिल न तो सांप्रदायिक है न ही किसी विशेष धर्म को निशाना बनाने के लिए लाया गया है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान इस्लामी देश हैं। इन देशों में धार्मिक आधार पर प्रताड़ित हो कर करोड़ों लोग भारत आए। मोदी सरकार ऐसे शरणार्थियों को मानवीय आधार पर न्याय दिलाना चाहती है।
जदयू का फिर मिला साथ तो शिवसेना का वाकआउट
बिल के समर्थन में विरोध के स्वर उठने के बावजूद सरकार की सहयोगी ने लोकसभा की तरह राज्यसभा में भी बिल का समर्थन किया। लोकसभा में बिल का समर्थन करने वाली शिवसेना के सांसदों ने एनसीपी और कांग्रेस के दबाव में बीच का रास्ता अपनाते हुए मतदान के दौरान वॉकआउट किया।
पूर्वोत्तर के राज्यों को कई राहत
बिल का पूर्वोत्तर में भारी विरोध के बाद इसमें शामिल कई राज्यों को राहत दी गई है। मसलन संविधान की छठी अनुसूची वाले क्षेत्र, इनर और इनर परमिट वाले राज्यों में बिल के प्रावधान लागू नहीं होंगे। हालांकि इसके बावजूद पूर्वोत्तर में विरोध-प्रदर्शन जारी हैं।
शाह की अगुवाई में एक और एजेंडा पूरा
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में भाजपा ने गृह मंत्री शाह की अगुवाई में अपनी विचारधारा से जुड़े कई मुद्दों का समाधान किया। पहली पारी में तीन तलाक कानून को दंडनीय अपराध बनाने के बाद दूसरी पारी के महज छह साल के कार्यकाल में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के कई अहम प्रावधान निरस्त किए गए।
अब नागरिकता संशोधन बिल का कानूनी जामा पहनने का रास्ता साफ हुआ। इसी छोटे से कार्यकाल में अयोध्या विवाद का समाधान निकला। अब हिंदुत्ववादी एजेंडे के रूप में सरकार के पास सभी राज्यों में एनआरसी लागू कराना, धर्मांतरण विरोधी कानून बनाना, समान नागरिक संहिता और राष्ट्रीय जनसंख्या नीति लागू करना रह गया है।
चार साल बाद मिली कामयाबी
मोदी सरकार के पहले ही कार्यकाल में नागरिकता संशोधन बिल पारित कराने की कोशिश हुई थी। तब साल 2015 में इसे राज्यसभा की मंजूरी भी मिल गई थी। हालांकि संख्या बल के अभाव में सरकार इसे राज्यसभा में पारित नहीं करा पाई थी।

 
 
						 
						