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उत्तर प्रदेश की सियासत कब किस तरफ करवट बदल जाए इसका कोई भरोसा नहीं है। यहां हमेशा से जातिगत राजनीति होती रही है। जाति के आधार पर तुष्टिकरण की राजनीति यहां का इतिहास रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अब राजधानी में भगवान परशुराम जी की मूर्ति लगाने का फैसला लिया है ये मूर्ति दुनिया की सबसे विशाल मूर्ति होगी।

अखिलेश यादव के इस फैसले से उत्तर प्रदेश की सियासत में एक बार फिॅर ब्राम्हणों की अहमियत और वोट बैकं को कैस करने कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। प्रदेश में राम बनाम परंशुराम करने की कोशिश की जा रही है। अयोध्या में 5 अगस्त को भूमि पूजन हुआ तो 7 अगस्त को अखिलेश यादव ने भगवान परशुराम की मूर्ति लगाने का फैसला ले लिया। इसको लेकर तमाम राजनीतिक प्रति​क्रियाएं आ रही हैं।

विश्व हिंदू परिषद की फायरब्रांड नेता डॉ. साध्वी प्राची ने कहा है कि अखिलेश सरकार षड़यंत्र रच रही है। अखिलेश यादव ब्राम्हणों और ठाकुरों के बीच वैमनस्यता पैदा करने का काम कर रहे थे।
परशुराम जी का मंदिर बनाने का मैं विरोध नहीं कर रही लेकिन जब ये सत्ता में थे तो वह परशुराम की मुर्ति क्यों नहीं लगवाए। आज उनके अंदरअचानका परशुराम प्रेम क्यों जगा।

अखिलेश यादव हिंदुओं में बिखराव करना चाह रहे है। बीजेपी से पूरी तरह परासत हो चुके अखिलेश
ये इनका खानदानी गुण है हिंदुओं के वोटबैंक पर सेंधमारी करना। ये इनका पूर्वग्रही संस्कार हैं जो इनके संस्कार है वही ये कर रहे हैंं
इससे पहले मायावती ने ब्राम्हणों को भाई

सपा बसपा को प्रदेश की जनता पूरी तरह समझ चुकी है। उत्तर प्रदेश में ये दोनों दलों को जनता ने नकारा साबित कर दिया हे। यूपी प्रदेश के सबसे श्रेष्ठ मुख्यमंत्री साबित होगए हैं। यह लोग मिलकर योगी जी को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं।