(www.arya-tv.com) शेयर बाजार बच्चों का खेल नहीं है. यहां बड़े-बड़े लोगों का पैसा डूब जाता है. डूबने का कारण कोई एक नहीं, बल्कि अनेक हैं. कभी कोरोना जैसे वायरस का प्रकोप होता है तो शेयर कौड़ियों के भाव पर पहुंच जाते हैं तो कभी उन्हीं शेयरों का भाव सातवें आसमान पर होता है. शेयर बाजार में लगा पैसा दुनियाभर में होने वाली विभिन्न गतिविधियों से प्रभावित होता है. रूस और यूक्रेन के बीच लड़ाई के दौरान दुनियाभर के शेयर बाजार दबाव में नजर आए थे. अब एक बार फिर एक खतरनाक युद्ध दुनिया के सामने है. हमास के हमले के बाद इज़राइल ने घोषणा कर दी कि वह युद्ध में है. इस खबर के फैलते ही भारत के शेयर बाजार में कई शेयर प्रभावित होते देखे गए.
बता दें कि हाल ही में अडानी पोर्ट्स ने इज़राइल में एक पोर्ट लिया है. जाहिर है अडानी पोर्ट्स के शेयर (Adani Ports Share) को झटका लगा. इज़राइल और हमास के इस युद्ध से केवल अडानी पोर्ट्स ही प्रभावित नहीं है, बल्कि लगभग 14 स्टॉक ऐसे हैं, जिन पर सीधा असर देखने को मिल रहा है या मिल सकता है.
सोमवार की बात करें तो अडानी पोर्ट्स के शेयर में 5 फीसदी की गिरावट देखने को मिली थी. मंगलवार को हालांकि अडानी ग्रुप समेत ज्यादातर स्टॉक्स को ऊपर की तरफ बढ़ते हुए देखा गया. इसके अलावा, सन फार्मा (Sun Pharma) 2 फीसद गिरा. इज़राइल की कंपनी टारो फार्मा (Taro Pharma) में सन फार्मा की बड़ी हिस्सेदारी है. तेल-अवीव बेस्ड टेवा फार्मा (Teva Pharma) चूंकि फार्मा सेक्टर की अगुवा कंपनी है तो भारत की जेनरिक दवा निर्माता कंपनियां डॉ. रेड्डीज़ लैब (Dr. Reddy’s) और लूपिन (Lupin) के शेयरों पर भी असर देखा गया.
NMDC, टाइटन, विप्रो जैसी कंपनियां शामिल
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट ने ब्लूमबर्ग के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि माइनिंग करने वाली कंपनी NMDC, कल्याण जूलर्स और टाटा ग्रुप की कंपनी टाइटन का भी इज़राइल कनेक्शन है. केवल यही कंपनियां नहीं, कई आईटी सेक्टर की कंपनियां भी इज़राइली कंपनियों के साथ मिलकर काम कर रही हैं. इनमें भारत की आईटी सेक्टर की सबसे बड़ी कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), विप्रो, टेक महिंद्रा, और इंफोसिस शामिल हैं. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) और लार्सन एंड टर्बो (L&T) की भी इज़राइल में उपस्थिति है.
टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक इन 14 कंपनियों के अलावा मध्य पूर्व (Middle East) में चल रहे अलग-अलग विवादों के चलते ऑयल मार्केटिंग कंपनियों को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. वजह यह है कि रिटेलर्स को आम चुनावों से लगभग ठीक पहले क्रूड ऑयल के बढ़ते भावों के चलते कीमतों को स्थिर रखने का दबाव झेलना पड़ सकता है.