मध्यप्रदेश में राजनीतिक उठापटक को लेकर कांग्रेस नेता भले ही भाजपा पर विधायकों को प्रलोभन देकर सरकार गिराने का आरोप लगा रहे हैं लेकिन उसके ठीक उलट इसे कांग्रेस की गुटबाजी और पद की लड़ाई से भी जोड़कर देखा जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि नाराज चल रहे नौ विधायकों में अभी तक जिन चार विधायकों की वापसी नहीं हुई हैं वे कांग्रेस के हैं। जिसमें तीन मुरैना और एक भिंड से ताल्लुक रखते हैं।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मंगलवार को केंद्रीय नेतृत्व को आश्वास्त किया कि राज्य सरकार पर कोई खतरा नहीं है और विधायकों की संख्या बहुमत से अधिक है। सूत्रों की मानें तो कमलनाथ ने केंद्रीय नेतृत्व से कांग्रेस के बागी विधायकों को लेकर नाराजगी जताई है जिन्हें गुट विशेष के पार्टी नेताओं से जोड़कर देखा जाता है।
मध्यप्रदेश के घमासान को राज्यसभा की खाली हो रही तीन सीटों से भी जोड़कर देखा जा रहा है। अभी दो पर भाजपा और एक सीट कांग्रेस के दिग्विजय सिंह की है। अभी तक कांग्रेस मानकर चल रही थी इस बार दो सीट उसकी होंगी लेकिन बदले हालात में खींचतान होनी तय है।
राज्य के राजनीतिक उथल-पुथल और विधायकों की खरीद-फरोख्त की सूचना सबसे पहले दिग्विजय सिंह ने दी। वहीं राज्य छोड़कर हरियाणा के मानेसर में एक होटल में रुके विधायकों को छुड़ाने मंगलवार रात वापस ले जाने वालों में दिग्विजय सिंह के विधायक बेटे जयवर्धन सिंह और मंत्री जीतू पटवारी ने अहम भूमिका निभाई है।
कांग्रेस के चार विधायकों में तीन सुमावली से ऐदल सिंह कंसाना, रघुराज कंसाना और कमलेश जाटव जिला मुरैना की विभिन्न विधानसभाओं से जीतकर आए हैं। ऐदल सिंह कंसाना दिग्विजय के सिंह के करीबी कहे जाते हैं। सूत्रों की मानें तो विधायकों की भगदड़ में उनकी ही अहम भूमिका बताई जा रही है।
सिंधिया खेमे के कहे जाने वाले भिंड के गोहद से विधायक रणवीर जाटव हैं। पिछले दिनों रणवीर जाटव ने भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी केप्रति आस्था जताई थी। रणवीर जाटव ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की मांग करने वालों में भी शामिल रहे हैं।
दरअसल दिग्विजय सिंह हर हाल में फिर से राज्यसभा में वापसी चाहेंगे। वहीं लंबे समय से राज्यसभा का इंतजार कर रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया भी इस मौके को नहीं छोडना चाहेंगे। चूंकि एक सीट कांग्रेस आसानी से जीत जाएगी। लिहाजा घमासान दूसरी सीट को लेकर होगा।
नेतृत्व भी कांग्रेस शासित राज्यों से खाली हो रही सीटों पर भविष्य की रणनीति को ध्यान में रखकर कुछ अन्य नेताओं को राज्यसभा भेजना चाहता है। बतौर मुख्यमंत्री कमलनाथ भी चाहेंगे कि उनके राज्य से उनकी पसंद को भी महत्व दिया जाए। ऐसे में जब तक पार्टी की ओर से अधिकृत उम्मीदवारों के नाम घोषित नहीं हो जाते हगैं मध्यप्रदेश की राजनीतिक उथल-पुथल थमती नहीं दिखती।