राम के दरबार में मजहबी दीवारे नहीं हैं

Lucknow
Suyash Mishra

अंग्रेजी नेलकटर से मरा हुआ नाखून काटकर शहीदों की किताब में अपना नाम अंकित करने वालों का आखिर इतना विरोध क्यों हो रहा है? क्या राम सिर्फ सीता के हैं? या फिर हसीना, मरजीना, दुलारी, ​पियारी, रमेश दिनेश, फुलकान समेत हम हम सबके? अब यह तय हमें और आपको करना है। वह अलग बात है कि 137 साल लड़ाई लड़ी गई। रामलला तिरपाल में जाड़ा, गर्मी, बरसात गुजारते रहे। पर कोई भी मंदिर निर्माण के लिए ईंट लेकर नहीं गया। कोर्ट से जब जीत मिली तो आज एक भीड़ उमड़ पड़ी है। कोई मिट्टी लेके राजस्थान से आ रहा है।

कोई ईंटा लेके गुजरात से निकल चुका है…चलो देर से ही सही पर कोई राम की सरण में आ रहा है तो उसे रोकने का अधिकार हमें, आपको किसने दिया। मामा मारीच हो या फिर रावण सभी ने राम के साथ शत्रु जैसा व्यवहार किया। पर अंत में मरने के समय मुंख से राम राम किया तो खुद राम भी उन्हें मुक्ति देने से नहीं रोक पाए। राम के दरबार में मजहबी दीवारें नहीं हैं यहां हर इंसान मत्था टेक सकता है।

हर कोई भक्ति भाव से साधना करके कृपा पात्र हो सकता है। इतिहास गवाह है पुराने चावल गाया करते थे कि आजादी की लड़ाई मेें सभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने सामने से तलवारें नहीं खींची थी। कुछ ने सामने से खींची थी कुछ दूर से ही लुहा लुहा कर रहे थे। पर जब सेनानियों का रजिस्टर बना तो उन्होंने ऊपर वाली लाइन में अपना नाम लिखवा लिया। …किस्मत किस्मत की बात है। ये दूर दराज से ईंटा मिट्टी लाने वाले वही किस्मती लोग हैं। इन पर भी राम की कृपा मालूम होती है। इसलिए इनका विरोध नहीं होना चाहिए।