नोटा करेगा राजनीतिक दलों के चुनावी दलों को धराशायी

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AryaTvNews: Shikha Patel

छत्तीसगढ़ में अगले  महीने होने वाले विधानसभा चुनाव में राजनितिक दलों को यह सवाल परेशान कर रहा है कि क्या फिर नोटा यानी ‘इनमें से कोई  नहीं’ का विकल्प ही राज्य की राजनीति की दिशा को तय करेगा क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में नोटा ने राजनीतिक दलों के सारे चुनावी गणित धराशायी कर दिये थे. इसलिए पिछले दिनों संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी लोगों से नोटा का बटन न दबाने की अपील की है. इससे सिद्ध होता है कि छत्तीसगढ़ में नोटा की लोकप्रियता कितनी बढ़ गयी है. साल 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में राज्य की 90में से 35 सीटों में नोटा तीसरे नंबर पर था. पिछले चुनाव के आंकड़ों के अनुसार भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच केवल 0.75 % का अन्तर था जबकि मतदाताओं ने नोटा में 3.16प्रतिशत वोट डाले थे. यानी हार-जीत के अंतर से तीन गुणा अधिक वोट नोटा में डाले गये थे.

छत्तीसगढ़ में राजनीतिक मामलों के जानकार ब्रजेंद्र शुक्ला ने कहा कि नोटा केवल असंतोष नहीं दिखाता है बल्कि यह बताता है कि हमारी प्रजातांत्रिक व्यवस्था में किस तरह की गड़बड़ियां हैं.नोट के आंकड़ो से यह सिद्ध होता है कि सरकार केवल आदिवासी इलाको में विकास करने के दावे ही करती है जबकि छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाक़ों में विकास की रोशनी अब तक नहीं पहुँची.

नोटा का डर

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान नवंबर महीने की 12 और 20 तारीख़ को होनाहै. इस बार सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और विपक्षी दल कांग्रेस के अलावा  एक तीसरा मोर्चा भी है. नोट के डर से पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी  छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का गठबंधन पहली बार एक साथ मैदान में उतरा है. आम आदमी पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी जैसे राजनीतिक दल तो हैं ही. लेकिन कई इलाक़ों में राजनीतिक दलों की चिंता नोटा से कहीं अधिक जुड़ी हुई है और यह चिंता अस्वाभाविक भी नहीं है क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में राज्य की 11 सीटों में से पांच सीटों पर मतदाताओं ने नोटा का जमकर इस्तेमाल किया और नोटा तीसरे नंबर पर रहा.