स्पेशल फोर्स के जवानों को रूह कंपा देने वाले सैन्य अभ्यास के कठिन दौर से गुजरना पड़ता है। प्रशिक्षण के दौरान ये जवान न केवल अपनी तकनीक और युद्ध कौशल को संवारते हैं बल्कि विपरीत परिस्थितियों में जीवित रहने के गुर भी सीखते हैं।
यूं तो भारतीय थलसेना की एलीट कमांडो फोर्स पैरा रेजीमेंट की स्थापना आजादी से पहले साल 1941 में ही हो गई थी। लेकिन 1965 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध के बाद एक स्पेशल कमांडो यूनिट की जरूरत महसूस की गई।
एक जुलाई 1966 को भारतीय सेना की पहली स्पेशल फोर्स 9 पैरा यूनिट की स्थापना की गई। इसका बेस ग्वालियर में बनाया गया। इसके एक साल बाद पैरा कमांडो की दूसरी यूनिट को स्थापित किया गया जिसे राजस्थान में तैनात किया गया।
कैसे होता है चुनाव
सेना में कमांडो (पैरा, घातक) बनने के लिए चयन सेना की विभिन्न रेजिमेंट्स में से ही होता है। इनका अनुपात 10 हजार में से एक का होता है मतलब पैरा या घातक स्पेशल फोर्स में शामिल होने के लिए 10 हजार में से एक जवान का चयन होता है। पैरा स्पेशल फोर्स बनने के लिए आवेदन जवान की इच्छा पर निर्भर करता है।
रूह कंपा देने वाली ट्रेनिंग के बाद बनते हैं कमांडो
वैसे तो सभी कमांडो यूनिट अपने-अपने जवानों के ट्रेनिंग के लिए लगभग एक से पैटर्न को ही अपनाते हैं। जैसे पैरा कमांडो बनने के लिए 90 दिनों की कठिन ट्रेनिंग दी जाती है। इसकी कठिनाई का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुछ ही सैनिक इसे सफलतापूर्वक पूरा कर पाते हैं।
इस प्रशिक्षण के दौरान जवानों के मानसिक, शारीरिक क्षमता और इच्छाशक्ति का जबरदस्त इम्तिहान लिया जाता है। इसके दौरान दिनभर में जवानों को पीठ पर 30 किलो सामान जिसमें हथियार व अन्य जरूरी साजो-सामान शामिल होते हैं उसे उठाकर 30 से 40 किमी की दौड़ लगाना होता है।
इसके अलावा इन जवानों को तरह-तरह के हथियारों को चलाना और बमों-बारूदी सुरंगों का प्रयोग आदि सिखाया जाता है। जवानों को ट्रेनिंग के दौरान 36 घंटे जिसमें भूखे पेट बिना सोए एक मिशन को अंजाम देना होता है।
हाथ-पैर बांधकर तैरना 
थलसेना के पैरा और नौसेना के मार्कोज कमांडो तैरने में भी माहिर होते हैं। ट्रेनिंग के दौरान इनके हाथ-पैर बांधकर पानी में फेंक दिया जाता है। इसमें इन्हें पांच मिनट बिताना होता है। मार्कोज कमांडो का फिजिकल टेस्ट इतना कठिन होता है कि 80 फीसदी आवेदक शुरू के तीन दिन में ही इसे छोड़ देते हैं।
छलांग लगाने में माहिर होते हैं पैरा एसएफ
थलसेना के पैरा स्पेशल फोर्स के कमांडो ऊंचाई से छलांग लगाने में माहिर होते हैं। ये पांच हजार से 30 हजार फीट की ऊंचाई से छलांग लगाकर दुश्मन का खात्मा कर सकते हैं। एक पैरा कमांडो के पास दो पैराशूट होते हैं। पहले पैराशूट का वजन 15 किलोग्राम होता है जबकि रिजर्व का पांच किलोग्राम होता है।
दुश्मन को मार गिराने में माहिर है घातक फोर्स
थलसेना की घातक कमांडो फोर्स आमने-सामने लड़ाई के दौरान दुश्मन को मार गिराने में माहिर होती है। यह दुश्मन के हथियार डिपो, एयरफोर्स अड्डा और सैन्य मुख्यालयों पर छापेमारी में माहिर होते हैं। इन्हें कीचड़, गंदगी और दुर्गम परिस्थिति में हमला करने की ट्रेनिंग दी जाती है।
गरुड़ कमांडो का जवाब नहीं
भारतीय वायुसेना की स्पेशल फोर्स गरुड़ कमांडो काउंटर इंसर्जेंसी और बचाव कार्यों में माहिर होते हैं। इनकी ट्रेनिंग इतनी मुश्किल होती है कि अधिकतर जवान ट्रेनिंग पूरा नहीं कर पाते। इन जवानों को तीन साल तक अलग-अलग तरह की ट्रेनिंग दी जाती है।
कोबरा कमांडो: इनसे सीखिए जंगल में जिंदा रहने के गुन
सेना और अर्धसैनिक बलों के कोबरा कमांडो जंगल वारफेयर और छापेमार युद्ध में माहिर होते हैं। इसमें ट्रेनिंग के दौरान जवानों को खुद कोबरा सांप को मारकर उसका खून पीना होता है। इनकी कई ट्रेनिंग विदेशों के जंगलों में भी कराई जाती है। ये जंगली वनस्पतियों को समझने और जीव-जंतुओं की आवाज निकालने में भी माहिर होते हैं।
भारतीय स्पेशल फोर्सेज के हथियार
ग्लॉक-17, बैरोटा-92 और 1ए 9 एमएम सेमी ऑटोमैटिक पिस्टल
हैकलर और कोच एमपी5, 1ए एसएमजी सब मशीनगन
माइक्रो यूजी 9एमएम सब मशीनगन
टीएआर-21 टावोर असॉल्ट रायफल
एम4ए1 -कार्बाइन
एमपीआई केएमएस-72-असॉल्ट रायफल
पीएम एमडी-90 असॉल्ट रायफल
वीएजेड-58 असॉल्ट रायफल
ये हथियार भी हैं स्पेशल फोर्सेज की पसंद
एसवीडी ड्रगोनोव सेमी ऑटोमैटिक स्नाइपर रायफल
आईएमआई गलिल स्निपर ऑटोमैटिक स्नाइपर रायफल
मऊसेर एसपी 66 बोल्ट एक्शन स्नाइपर रायफल
पीकेएम लाइट मशीनगन
यूके वीजेड-59एल लाइट मशीनगन
एमजी 2ए1 जनरल पर्पज मशीनगन
एजीएस ऑटोमैटिक ग्रेनेड लांचर
बी-300 शीपोन 82 एमएम रॉकेट लांचर
