आर्य भट्ट शोध एवं प्रेक्षण विज्ञान संस्थान (एरीज) के वैज्ञानिकों ने गहन शोध के बाद खुलासा किया है कि देश में वायु प्रदूषण का कारण केवल अपने देश की प्रदूषित हवा नहीं है बल्कि दक्षिण यूरोप और अफ्रीका तक से यहां पहुंचने वाली विषैली हवाएं भी इसका कारण हैं।
यह शोध एरीज में हाल ही में कार्य शुरू करने वाले विश्व के पहले 206.5 मेगा हर्ट्ज फ्रीक्वेंसी वाले स्ट्रेटोस्फियर-ट्रोपोस्फीयर (एसटी) रडार के माध्यम से किए गए विश्लेषण से संभव हो सका है।
प्रयोगशाला में स्थापित किया गया है यह राडार
एरीज में दस करोड़ रुपये के उपकरणों और छह करोड़ की राशि से नवनिर्मित प्रयोगशाला में यह रडार स्थापित किया गया है। रडार क्षैतिज और लंबवत दोनों दिशाओं में 18 किमी दूरी तक वायुमंडल का अध्ययन करने में सक्षम है।
इसके जरिये किए गए विश्लेषण में यह भी जानकारी मिली कि पश्चिमी विक्षोभ के साथ ही ओजोन की परत में भी अंतर देखने को मिलता है और यह कुछ नीचे को खिसक जाती है। ओजोन परत संरक्षण के लिए यह बहुत अहम जानकारी है।
प्रदूषित हवा यूरोप और अफ्रीका से आईं थीं
एसटी रडार से डाटा संग्रहण और विश्लेषण कर रहे वैज्ञानिक डॉ. मनीष नाजा ने बताया कि इस रडार से पहली बार हवा के दबाव में बदलाव के साथ ही उस हवा के स्रोत का भी अध्ययन संभव हो पाया और पता लगा कि प्रदूषित हवा यूरोप और अफ्रीका से आईं थीं। अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों ने सेंसर लगे गुब्बारे भी छोड़े जिन्होंने 18 किमी की ऊंचाई तक जाकर सफलतापूर्वक आंकड़े भेजे।
डॉ. मनीष ने बताया कि वायुमंडल के अध्ययन के लिए विश्व में 50 और 400 मेगा हर्ट्ज के रडार प्रचलित हैं। 50 मेगा हर्ट्ज के रडार से 30-40 किमी जबकि 50 मेगा हर्ट्ज से आठ किमी तक के वायुमंडल का अध्ययन किया जाता है। 18-20 किमी रेंज के स्पष्ट आंकड़े इन दोनों से ही नहीं मिल पाते। यहां स्थापित 206.5 मेगा हर्ट्ज रडार से इस रेंज के बेहतरीन आंकड़े मिले हैं जिनसे ये नई खोज संभव हो सकी। इस टीम में एरीज के निदेशक डॉ. वहाबुद्दीन, इंजीनयर समरेश भट्टाचार्जी और डॉ. मनीष शामिल हैं।