गोरखपुर में बांसगांव के इस दुर्गा मंदिर में रक्त चढ़ाने की परंपरा; नवजात से लेकर बुजुर्ग तक होते हैं शामिल

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(www.arya-tv.com) मां दुर्गा की आस्था में लीन भक्‍तों के जप-तप, संयम, त्याग और बलिदान की गाथाएं तो हम सभी ने सुनी है। लेकिन गोरखपुर के बांसगांव तहसील कस्बा में एक ऐसा दुर्गा मंदिर है, जहां पिछले 300 से शरीर के किसी हिस्से से मां दुर्गा को रक्त चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है। इसमें 12 दिन के नवजात से लेकर 100 साल के बुजुर्ग तक का रक्त चढ़ाया जाता है। मान्‍यता है कि जिन नवजातों के ललाट (लिलार) से रक्त निकाला जाता है, वे इसी मां की कृपा से प्राप्त हुए होते हैं।

श्रीनेत वंश के लोग निभाते हैं ये परंपरा
बांसगांव तहसील में स्थित मंदिर में क्षत्रियों के श्रीनेत वंश के लोगों द्वारा नवरात्र में नवमी के दिन मां दुर्गा के चरणों में रक्त चढ़ाने की अनोखी परंपरा है। यह पिछले 300 साल से चली आ रही है। देश-विदेश में रहने वाले लोग यहां नवमी के दिन मां दुर्गा को अपना रक्त अर्पित करते हैं। खास बात यह है कि यहां नवजात के जन्म लेने के 12 दिन (बरही का कार्यक्रम समाप्त होने के बाद) बाद से ही उनका रक्त मां के चरणों में अर्पित किया जाता है। इन नवजातों को मां के दरबार में लेकर श्रद्धालु पहुंचते हैं। उस नवजात के पिता या मां, जवान और बुजुर्ग भी इस परंपरा का निर्वहन करते हैं।

उपनयन संस्कार के पूर्व तक एक, बाद में 9 जगह से निकाला जाता है रक्त
उपनयन संस्कार के पूर्व तक एक जगह ललाट (लिलार) और (जनेऊ धारण करना-14 वर्ष की उम्र) हो जाने के बाद युवकों-अधेड़ों और बुजुर्गों के शरीर से नौ जगहों से रक्त निकाला जाता है। उसे बेलपत्र में लेकर मां के चरणों में अर्पित किया जाता है। खास बात ये है कि एक ही उस्‍तरे से विवाहितों के शरीर के नौ जगहों पर और बच्‍चों को माथे पर एक जगह चीरा लगाया जाता है।

बेलपत्र पर रक्त को लेकर मां के चरणों में अर्पित कर दिया जाता है। इसके बाद धूप, अगरबत्ती और हवनकुंड से निकलने वाली राख को कटी हुई जगह पर लगा लिया जाता है। पहले यहां पर जानवरों की बलि दी जाती थी पर अब मंदिर परिसर में पशु बलि को रोककर रक्त चढ़ाया जाता है।